शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

सात फेरो का छळ















न जाने वो कैसे छली गई???
अपने भाग्य की रेखाओं से??

उसने तो भरोसा किया था खुदा पर
खुदा का फ़ैसला मान सर झुकाती गई...

उफ़ ये क्या खता हो गई...
सात फेरो के बंधन मे वो छली गई...!!

उम्र भर के गमो की सलाखो मे देखो..
बे-गुनाह...मासूम वो कैद हो गई....!!

त्याग कर के भी उसे दुत्कारे मिली...
ना-समझ बन्दे की वो साथी बनी..

एहसास जिसको नही था..ना समझ थी कोई..
एक वहशत थी जो पविर्त्र बंधन का मकसद बनी..

ना अच्छा बेटा..ना पति..ना अच्छा पिता बन सका..
जिसकी खातिर वो सुकोमला...उसकी भार्या बनी...

बे-दर्द रस्म-ओ-रिवाजों तले बच्चो की खातिर वो घुटने लगी..
अभिशापित सा जीवन बिताना था उसको..बिताती रही..

उम्र भर के गमो की सलाखो मे देखो..
बे-गुनाह...मासूम वो कैद हो गई....!!

उफ़ ये क्या खता हो गई...
सात फेरो के बंधन मे वो छली गई...!

17 टिप्‍पणियां:

Fauziya Reyaz ने कहा…

bahut hi achha likha hai aapne...waqai bahut khoobsurat tariqe se naari ke dard ko bayaan kiya hai apne..

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

अनामिका,
ये जो भी है...
उससे कहो इस छलना से निकल जाए..
अपना जीवन अभिशप्त न बनाये...
समय बदल गया है....
एक जीवन मिला है
उसे जी भर कर जी जाए
कोई कुछ नहीं कहेगा...
हम साथ हैं..
बहुत ही मार्मिक कविता है....
स्त्री हूँ न ..खुद ही जुड़ गई इस कविता से .....
अपने आस-पास ना जाने कितनो को अभिशप्त होते देखती हूँ....
बस लगता है..शिव बन जाऊं और सारा गरल पी जाऊं...
सच कहती हूँ रे..!!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सुंदर बहुत भावनात्मक रचना....सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है
आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत दर्द भरी दास्तान....मार्मिक रचना....

दर्द को बखूबी उभारा है.सुन्दर लेखन

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

अनामिका जी, आदाब
...उम्र भर के गमो की सलाखो मे देखो..
बे-गुनाह...मासूम वो कैद हो गई....
बे-दर्द रस्म-ओ-रिवाजों तले बच्चो की खातिर वो घुटने लगी..
अभिशापित सा जीवन बिताना था उसको..बिताती रही..
हर पंक्ति में नारी जीवन की व्यथा का खूबसूरत
लेकिन दर्द में डूबे शब्दों में वर्णन किया है आपने..
वैसे....
कहीं इसके विपरीत भी देखने को मिलता है समाज में.!!!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

शाहिद जी बहुत बहुत शुक्रिया आपने रचना को सराहा...आपने लिखा की कही इसके विपरीत भी देखने को मिलता है समाज में...आप ठीक कहते है..आज के मार्डन वक्त में ऐसा भी होता हे की कल लड़की की शादी हुई और आज तलाक हो गया...ये भी एक विडंबना ही है.

और शाहिद जी मेरा नाम शिखा नहीं है.

Urmi ने कहा…

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!

SANJU ने कहा…

Achha likha hai, aapke anubhav kharab rahe honge mirja sahab ne ek ishara diya hai JARA GAUR FARMAIYE .aaine ka dusra rukha dekhiye .
JARA APNI RACHNAO ME HUM PURUSHON KA DARD BHI BAYAN KIJEEYE .

SSHRIVAS GUJRAT

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरी है रचना बहुत ...... गुबार समेटे ...............

ज्योति सिंह ने कहा…

ada ji aakhri me bahut hi khoobsurat baat kah gayi,jo dil ko chhoo gayi aapki rachna ki tarah ,dosh sab samjh ka hai ,umda .

Apanatva ने कहा…

adajee kee soch ke saath poora samarthan hai mera ........abhishap chup chap sahana bhee to apane sath anyay hai . Bahut hee marmik......aur jeevant prastuti .........

Akhilesh Soni ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना भावों की गहराई...बधाई..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति के साथ... बहत सुंदर रचना...

नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

Razi Shahab ने कहा…

sundar rachna

रचना दीक्षित ने कहा…

देरी के लिए माफ़ी बहुत सुन्दर अभिवक्ति ये छलावे तो जन्मों से चले आ रहे हैं