हे उद्धो ...
मत जिरह करोउस छलिया की
जिसने भ्रमर रूप रख
हम संग प्रीत बढ़ाई
और अब हमारी
हर रात पर
पत्थर फैंक कर
जाता है ...
जाता है ...
मन को जख्मी
करता है ..
हमारे अंतस पर
करता है ..
हमारे अंतस पर
उसी का पहरा है.
द्रगांचल पर
जाले बुन दिए हैं ..
अपनी लीलाओं के उसने. .
द्रगांचल पर
जाले बुन दिए हैं ..
अपनी लीलाओं के उसने. .
हमारे वजूद की
अट्टालिका से
वो हठी
उतरता ही नहीं.
अट्टालिका से
वो हठी
उतरता ही नहीं.
हे उद्धो ...
क्या बिगाड़ा था हमनें
जो हमारे निश्छल मन को
ठग के ..
वो अब उपहास उड़ाता है .
क्या बिगाड़ा था हमनें
जो हमारे निश्छल मन को
ठग के ..
वो अब उपहास उड़ाता है .
हमारे गोकुल कुञ्ज को छोड़
वो नटवर
द्वारकाधीश
बना फिरता है...
मुंह में चाशनी रख
लच्छेदार बातों से
औरों का मन मोहता है .
वो नटवर
द्वारकाधीश
बना फिरता है...
मुंह में चाशनी रख
लच्छेदार बातों से
औरों का मन मोहता है .
अपने प्यार की
छाँव देता है
गैरों को..
अपने ह्रदय कोष में
बिठा..
सिर-आँखों पे रखता है...
कितने ही अभिनन्दन
और मनुहार करता है .
छाँव देता है
गैरों को..
अपने ह्रदय कोष में
बिठा..
सिर-आँखों पे रखता है...
कितने ही अभिनन्दन
और मनुहार करता है .
हमें तो आजतक
उसने अपने पास
बुलाया नहीं
गैरों को ..
निमंत्रण देता है.
हे उद्धो ..
कैसा है रे तेरा मोहना
चुरा के हमारा मन
हमीं को दर्द देता है .
उसने अपने पास
बुलाया नहीं
गैरों को ..
निमंत्रण देता है.
हे उद्धो ..
कैसा है रे तेरा मोहना
चुरा के हमारा मन
हमीं को दर्द देता है .
तल्ख़ बातों के
कोड़े मारता है
और तुम्हें भेजता है
हमें समझाने को ..
अरे ओ उद्धव..
ये मन अब
हमारी नहीं सुनता
कोड़े मारता है
और तुम्हें भेजता है
हमें समझाने को ..
अरे ओ उद्धव..
ये मन अब
हमारी नहीं सुनता
आज भी उस छलिया की
एक आवाज़ से
बावरा हो जाएगा .
जरा तो, वो
मिश्री से फाहे रखे रे ..
बावरा हो जाएगा .
जरा तो, वो
मिश्री से फाहे रखे रे ..
इसका भी कोई मोल लगे है ?
हम तो उसकी खातिर
बेमोल बिके रे उद्धव...!
जा उद्धो जा...
मत कर जिरह
हम तो दिल का..
बाज़ार लगाए बैठे हैं
हम तो उसकी खातिर
बेमोल बिके रे उद्धव...!
जा उद्धो जा...
मत कर जिरह
हम तो दिल का..
बाज़ार लगाए बैठे हैं
बस एक बार
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं.
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं.
45 टिप्पणियां:
ye prem ka pyala
pilata hai aisa
apne rang mein
dubata hai aisa
phir dooja rang
chadhta nahi
ek baar jo
ismein dooba
phir paar
lagta nahi
bahut hi sundar virah geet likha hai.........kya kahein ye shyam ki preet hoti hi aisi hai kahin ka nahi chodta.
aapki post kal ke charcha manch par hogi.
Anamika Jee aap jab bhi likhati hai. bahut aaraam se aur sahi likhati hai. bhramar geet ki yaad taazaa ho gayi
waah Anamika ji...dard likh diya aapne gopiyon ka....ye mohabbat ki baatein hain udhav ...jindagi mere bas me nahi hai...ye geet yaad aa gaya...bahut hi lajawaab virah geet...
अनामिका जी आपकी रचना में बहुत गहराई से भाव भरने की पूरी और ईमानदार कोशिश नज़र आती है.रचना कार्य सतत जारी रखें. विषय का चयन भी ऐसा लिया है कि लगभग सभी की रूचि का है,रही बात सरंचना की तो कविता एक एक करके सभी तरह के विचार मंथन को आगे बढाते हुए अपने अंजाम तक पहुँचती है.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव
अपनी माटी
माणिकनामा
pal bhar ke liya main bhi gopika ho gai...achhi rachna
अच्छे शब्द चुने है ...रचना सृजन का ढंग और शब्दों का तालमेल ...उत्तम है !
शुरुआत में लीला का वर्णन है....अंत में छलिया रूप की महिमा है ....अच्छी भाषा शैली
खूबसूरत शब्दों से भावों को कहा है...सुन्दर कथानक...सुन्दर शैली ..
छोटे मुह बढ़ी बात कहना चाहूँगा ...अंतिम पंक्ति पर गौर करे 'साँसों को अड़ाए बैठे हैं' और सुन्दर हो सकती थी
कविता की फुफकार इसे कहते हैं मनवादी होने में बड़ी तकलीफे हैं -देहवादी होने में शायद कम !
इसे पढ़ें -
http://mishraarvind.blogspot.com/2010/05/blog-post_5673.html
अनामिका जी
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
अनामिका जी अच्छी कविता है आपकी..... बेबाक.. प्रेम-निष्ठ.. पढ़ कर मजा आया और आपने मेरे ब्लाग पर जो टिप्पणी की थी मैने उसका जवाब वहीं दे दिया. समय निकाल कर पढ़ियेगा जरूर.
पु्त्री
तू होनहार है
तेरी मेहनत रंग लायेगी
पापा जी
कृष्ण को उद्धव के माध्यम से मिलने वाले उलाहनों की कड़ी में एक और प्रस्तुति... यह विषय हर काल में विरह का पर्याय बना है...आपने इसे फिर जीवंत कर दिया...
जा उद्धो जा...
मत कर जिरह
हम तो दिल का..
बाज़ार लगाए बैठे हैं
बस एक बार
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं.
बहुत ही सुन्दर रचना!
मनोभावों का बेहतरीन चित्रण!
भ्रमर परम्परा की नयी शैली का स्वागत ।
गहराई लिए .. राधा कृष्ण और उधाव के प्रसंद से जोड़ कर इस प्रेम रचना को नया आयाम दिया है आपने ... बहुत लाजवाब ...
आपने तो सूरदास और रत्नाकर की कविता की यादें ताज़ा कर दीं.
'ऊधो मन नाही दस बीस
एक हुतो सो गयो श्याम संग को आराधे ईस '
बेहतरीन प्रयास है आपका .
भ्रमर गीत की एक नई उद्भावना .
कोटिश: बधाइयाँ
शुभकामनाएँ.
बस एक बार
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं.
वाह ही निकलेगा इस सुन्दर रचना के लिये
एक शानदार सोच का नतीजा है ये रचना.. पर तस्वीर मीराबाई की.. वो क्यों?? यहाँ तो गोपी या राधा होनी थी ना???
आपकी रचना पढ़कर.....
मोहतरमा अंजुम रहबर साहिबा का एक शेर याद आ रहा है..
रोज़ जाते हो अयादत के लिये गैरों की
मुझको तरक़ीब से बीमार किया है तुमने.
सुन्दर शैली ..
.... बेहतरीन भाव !!!
जा उद्धो जा...
मत कर जिरह
हम तो दिल का..
बाज़ार लगाए बैठे हैं
बस एक बार
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं.
bahut khubsurat...as usual, saundraya se bhari rachna
आज कुछ नया सा लगा. ये विरह गीत बहुत कुछ कह गया. बहुत लाज़वाब
bahut khub
magar ek bat jo ham aap se kahna chahte he ki
mujhe behad pasand he krishna par rachit sahitya
aap ka shukriya itni achhi rachna padwane ke liye
जा उद्धो जा...
मत कर जिरह
हम तो दिल का..
बाज़ार लगाए बैठे हैं
बस एक बार
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं.
गोपियों के विरह की लाजवाब प्रस्तुति
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! उम्दा प्रस्तुती!
Are haan, Bhool gaya......Kshma kijiega... 7 may ki vishishit shubhkamnaen...k ye din bar-bar aaye..............
अच्छा लिखा है आपने..यूँ ही लिखती रहें ..
बधाई.
बस एक बार
वो अपना रूप
दिखा दे..
हम उसके लिए
साँसों को अड़ाए बैठे हैं
sundar rachna....badhiya shabd sanyojan...
अद्भुत रचना है आपकी...शब्दों में प्रशंशा संभव नहीं है...उद्धव को क्या खूब कहा है आपने ...इस कथा को नया दृष्टिकोण दिया है...मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज
कान्हा ने कहा था -"उधो मोहि ब्रज बिसरत नाही "
कितना भी बैरी हो जाय कान्हा १वो भी हमे भूलने वाला नही ?अभी थोडा व्यस्त है ;
बहुत ही प्यारी रचना |
उद्धो को तो अब जाना ही होगा ।
वाह! अद्भुत निमंत्रण...बहुत खूब!
आईये जानें .... मैं कौन हूं!
आचार्य जी
bahut sundar..adbhut rachana
उद्धो के प्रसंग का आधुनिकीकरण बहुत मन भाया ! अत्यंत हृदयग्राही एवं सुन्दर रचना ! बधाई एवं आभार !
prabhavshaali aur behtrin rachna ,udho ka prasang nirala laga jo man ko chhoo gaya .
Bhakti me leen man shikayat bhi karta hai,to pyari-si!
चुरा के हमारा मन
हमीं को दर्द देता है .
awesome !
Mai to kabse apne blog pe aapka intezaar kar rahe thee.Bahut achha laga aapka comment padh ke!
waah kya baat hai !
हरे कृष्ण आपका भाव अतिसुन्दर है
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