मंगलवार, 17 अगस्त 2010

कोई अपने गिरेबान में झाँक के बताये..


















सब की जुबा पर एक ही राग है
देश का कैसा बिगड़ा हाल है ?
कोई गरीबी को रोता है
तो किसी ने नेता को कोसा है
कोई चीखता कानून पे
तो कोई गुंडागर्दी पे भड़कता है .

कोई मुझे एक बात बताये ...
अपने गिरेबान में झाँक के आये ...

कितनों ने अँधेरे झोपड़ों में
दीपक जलाए ?
कितनों ने सड़क पे घूमते
फटेहाल बच्चों को
पाठशाला के रस्ते बताये ?
कितनों ने एक वक्त की
थाली किसी भूखे को खिलाई ?

ऊँगली उठाते हैं देश के विकास पर ?
बराबरी करते हैं अमरीका से ?
बात करते हैं बच्चों के संस्कारों की ?

उँगलियों पे जरा वो गिन के बता दें
देश के विकास में कितने काम कर दिखाए ?
अमेरिकन जैसा ईमानदारी से
कितने टैक्स भर पाए ?
अपने बच्चों को कितना
देशभक्ति का पाठ पढा पाए ?

विकास की बात आती है
जब अपने देश की तो
लायक होते ही अपने बच्चों को
कमाने के लिए
विदेशों की तरक्की का
पहिया बना देते हैं .
खुद का बुढापा चाहे दुख में बीते
हरे नोटों की चमक में
मगर जी ललचाता है .
और बड़े गर्व से कहते हैं
हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं.

आज के बच्चों को पता नहीं
राम -सीता कौन थे ?
और महाभारत में पांडव कौन थे..?

उन्हें पता नहीं राष्ट्र पिता कौन हैं ?
आजादी किसको कहते हैं
और आजादी के दीवाने कौन हैं ?

हमारा राष्ट्रीय गान क्या है ?
कितनी बार जय हो जय हो
का घोष होता है
और कितनी नदियों के
नाम आते हैं ?

हर माता पिता फौज में
भेजने की बजाये
विदेश भेजना पसंद करते हैं ...
तो कैसे बात करते हैं
देश में कानून की ?
किसको फ़िक्र है
देश की सुरक्षा की ?
किसे चिंता है
भ्रष्ट नेता को
पर्दाफ़ाश करने की ?

बस रोना सभी रोते हैं
फिर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं
और चैन की नींद सोते हैं.
सब की जुबा पर एक ही राग है
देश का कैसा बिगड़ा हाल है .


यहाँ भी देखे....http://www.aakharkalash.blogspot.com/

53 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत खूब .......एकदम सरल और स्पष्ट .। बहुत सुंदर भावाव्यक्ति

मनोज कुमार ने कहा…

इस कविता में बिल्कुल भिन्न स्वाद है, यह खलल पैदा करता है, विचलन पैदा करता है। ऐसी कविताओं का अपना एक अलग महत्व है। इस कविता की कोई बात अंदर ऐसी चुभ गई है कि उसकी टीस अभी तक महसूस कर रहा हूं।

honesty project democracy ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती ..

Avinash Chandra ने कहा…

अमेरिकन जैसा ईमानदारी से
कितने टैक्स भर पाए ?

हाथ पकड़ के रोक लिया सच ने...

बिलकुल सटीक थप्पड़ मारे हैं आपने...आपका ब्लॉग खुल ही नहीं रहा था ४ दिनों से. पिछली वाली कविता भी नहीं पढ़ पाया था...वहां हो कर आता हूँ.
और काहे का ट्यूशन...?? क्यूँ बच्चे का मज़ाक बना रही हैं...बस ऐसे ही कुछ लिख देता हूँ बस...कभी कुछ पढ़ा ही नहीं, मास्साब कहाँ से लाऊं. :)

आप सच को बिलकुल खरा खरा पटक देती हैं ... हमेशा ही.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सटीक प्रश्नावली ....सच है कोसते सब हैं पर बस कोस कर ही रह जाते हैं ...एक कदम सही दिशा में दृढ़ता से उठा कर तो देखें ...

अच्छी अभिव्यक्ति

राजेश उत्‍साही ने कहा…

खरे खरे सवाल पूछने की अदा बहुत भाई। असल में इसी की जरूरत है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत खरे खरे सवाल पूछे हैं आपने, अंदर तक झकझोरती रचना.

रामराम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

तार्किकता से भरपूर,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

Unknown ने कहा…

आपने तो प्रश्नों की झड़ी लगा दी
अच्छा किया ...
कुछ सवाल हम सदियों से ढो रहे है अनामिका जी किन्तु हर बार प्रश्न चिह्न से आगे ही नहीं बढ़ते ?

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

कविता में उभरते प्रश्नों से कोलाहल सा पैदा हो रहा है............क्या इनके उत्तर कभी मिल पायेंगें........या हल निकल पायेगा.......

सूबेदार ने कहा…

प्रथम तो आपकी भावनाओ को प्रणाम
बहुत अच्छी अभिब्यक्ति राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत प्रत्येक ब्यक्ति क़े मन को छूती हुई कबिता
बहुत-बहुत धन्यवाद

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं आपने...

ज्योति सिंह ने कहा…

कितनों ने अँधेरे झोपड़ों में
दीपक जलाए ?
कितनों ने सड़क पे घूमते
फटेहाल बच्चों को
पाठशाला के रस्ते बताये ?
कितनों ने एक वक्त की
थाली किसी भूखे को खिलाई ?
रचना बहुत ही उचित है ,मगर आपकी इन बातो का विरोध मै साहस के साथ कर सकती हू क्योकि मै सदा इन फ़र्जो को अदा करती आई हू . लोग इस बात को मानते भी है .सुखद और सुन्दर समाज के लिये व्यवस्था का रंग-ढंग भी कायदे का होना चाहिये ,नीव कमजोर होगी तो आधार डगमगायेगा ही .और सवालो की कतार यू ही लम्बी बनती जायेगी .करना चाहते है बहुत से लोग मगर करने भी दिया जाये उन्हे ,अच्छे बनने से ज्यादा ,अवसर का हाथ आना कही ज्यादा जरूरी होता है यहां .नेकी को जिन्दा कौन नही रखना चाहता भला मगर है कुछ विरोधी जो सवालो को ही जन्म देते है और इन्ही दायरो मे ही जिन्दगी को उलझाते रहते है .

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह वाह बहुत खुब लिखा आप ने, आप की कलम को चुमने को दिल चाहता है, नमन करता हुं इस कलम को, मैने एक लेख कुछ ऎसे ही लिखा था, बस युही पोस्ट नही कर पाया...
धन्यवाद

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

ha ha ha ha...
yahi to baat hai..lekin jab ham kahenge to log kahenge ki ham kahte hain...
haan nahi to...!!
bahut badhiyaa..

वाणी गीत ने कहा…

भारतीयों की मनःस्थिति पर अच्छा प्रहार किया है ...
राष्ट्रीय पर्वों या गाँधी जयंती पर जब रेडियो या टी वी पर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम देखते हैं तो लोगों के ऐसे सामान्य ज्ञान पर बहुत गुस्सा और शर्मिंदगी होती है ...
और तो और ...विद्यालयों में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ऐसे अवसरों पर फ़िल्मी गीत प्रस्तुत किये जाते हैं ... तो आजकल के बच्चों का दोष क्या है ...
बहुत बढ़िया ...!

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत खरी बात कही है
यहां तो सब अंगुली पर चिरा लगवाकर शहीद घोषित होना चाहते है

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत सुंदर भावाव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपने समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिये सबको प्रेरित कर दिया।

Satish Saxena ने कहा…

वाकई प्रेरणा दायक ...ईमानदारी के लिए शुभकामनायें हालांकि कांटे बहुत हैं तकलीफ तो होगी ही !

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह वाह बहुत खुब लिखा आप ने,

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अनामिका आज तो तुमने मेरे मन की बात लिख दी। हम कुछ नहीं करेंगे बस हम तो कोसेंगे और दूर खड़े होकर तमाशा देखेंगे। अच्‍छी रचना।

vandana gupta ने कहा…

अच्छी फ़टकार लगाई है और सोचने पर विवश करती है आपकी कविता।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

वाह वाह वाह,
बहुत अच्छी रचना है
देश के हालात पर।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आप ने तो सभी सवाल देश की जनता पर डाल दिए...वो लोग तो सही मे नासमझ हैं जो भ्रष्ट नेता को रोते है.२५ सालों तक न्याय ना मिलने पर रोते हैं...जिन्का अपना पेट नही भर पाता वह दूसरों की मदद क्यों नही कर रहे?.....;))

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

वैसे अपने मनॊभावों को बहुत बढिया शब्द दिए हैं बधाई।

Parul kanani ने कहा…

anamika ji..billi ke gale mein ghanti kaun baandhega..sawaal yahi hai..ek sashakt rachna!

सुज्ञ ने कहा…

प्रेरित किया जब आपने गिरेबान में झांकने के लिये,
सारे प्रश्न तीर बनकर,गिरेबान में उतर गये।

समय चक्र ने कहा…

सुंदर भावाव्यक्ति....

रचना ने कहा…

samaj ka sach haen aap ki kavita

दीपक 'मशाल' ने कहा…

कविता नहीं आइना है ये..

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत सीधी भाषा में सचेत करती प्रस्तुति. ये सच है की अभी भी देर नहीं हुई है.आइना दिखा रही है और उसमे हमें दीखता है अपना ही वीभत्स चेहरा

Udan Tashtari ने कहा…

कोई मुझे एक बात बताये ...
अपने गिरेबान में झाँक के आये ...

-सही प्रश्न पूछा....बहुत उम्दा रचना...

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
अच्छा लगा यहाँ आकर .
__________________
पाखी की दुनिया में मायाबंदर की सैर करें...

रंजू भाटिया ने कहा…

bahut khub likha hai aapne sahi baat sapsht rup se likh di hai ...sahi swaal hain koi jwaab de kar bataaye

रंजना ने कहा…

बहुत सही और सार्थक कहा आपने....
सचमुच अपने गिरेबान में भी झाँकने की उतनी ही जरूरत है जितनी कि व्यवस्था पर उंगली उठाने की..बल्कि पहल तो खुद करनी चाहिए,बिना किसी का मुंह देखे,समय गंवाए...

Mithilesh dubey ने कहा…

bahut sahi likha hai aapne, ekdam sach

कामरूप 'काम' ने कहा…

नमस्कार,

हिन्दी ब्लॉगिंग के पास आज सब कुछ है, केवल एक कमी है, Erotica (काम साहित्य) का कोई ब्लॉग नहीं है, अपनी सीमित योग्यता से इस कमी को दूर करने का क्षुद्र प्रयास किया है मैंने, अपने ब्लॉग बस काम ही काम... Erotica in Hindi. के माध्यम से।

समय मिले और मूड करे तो अवश्य देखियेगा:-

टिल्लू की मम्मी

टिल्लू की मम्मी -२

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अनामिका बहिन...आज त तेवर बदला हुआ है! चलिए एगो कहानी सुनाते हैं...एक बार ईसा मसीह रास्ता में देखे कि बहुत सा लोग एगो औरत को पत्थर मार रहा है... पूछने पर लोग बताया कि ई कुलटा है... ईसा ने ओही सवाल सबसे पूछा जो आप पूछ रही हैं... जानती हैं नतीजा का हुआ????? गलत जवाब!!!! सबलोग अऊर जोर जोर से पत्थर मारने लगा ऊ औरत को... काहे कि सब लोग एही साबित करना चाहता था कि ऊ जिन्नगी में कोनो गलत काम नहीं किया है कभी…. अब देखिए आपके सवाल पर का बवाल होता है!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अब सबसे पहिले त हम ही मुँह लुका कर भागे जा रहे हैं...

VIVEK VK JAIN ने कहा…

sach kaha.

Deepak ने कहा…

Hi..

Dosh dena asan hai aur, amal bahut hi hai mushkil..
Prashn bahut karti hai duniya, prashnon se hai kya haasil..

Apne andar jhanke koi..
Kuchh kahne se pahle gar..
Apni saari kamiyan usko..
Shayad aayen kabhi nazar

samayik prashn hai aapka.. Aksharkshah satya..

Sundar bhavabhivyakti

Deepak..

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

हंसना ज़रूरी है क्यूंकि …हंसने से सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।

बेनामी ने कहा…

wah,bahut khoob. bilkul sachchi bat likhi. badhai.

शरद कोकास ने कहा…

कविता मे ही सही चिंता जायज़ है ।

Sadhana Vaid ने कहा…

आज तो आपने सबकी खूब खबर ले डाली ! वास्तव में हरेक को आत्म मंथन करना ही चाहिए कि देश के प्रति चिंता व्यक्त करने के लिये केवल व्यवस्था और नेताओं को कोसने से ही काम नहीं चलेगा खुद को भी इस संग्राम में झोंकना होगा ! अगर सचमुच देश को विकसित देखना चाहते हैं तो इस महायज्ञ में अपने हाथों से भी आहुति डालनी होगी ! बेहद सार्थक और सशक्त रचना ! बधाई !

sheetal ने कहा…

bahut sahi baat kahi hain aapne.
furast mile to kabhi
mere blog par aai kabhi.

sandhyagupta ने कहा…

अनामिका जी, आपकी कविता कई गंभीर प्रश्न खड़े करती है.हमारी आदत हो गयी है व्यवस्था पर सवाल खड़े करने की किन्तु क्या हम खुद कभी बदलाव के वाहक बनने के बारे में सोचते भी हैं?

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

अनामिका जी बहुत सही बात कही आपने कविता के माध्यम से हर जगह लोग यही गाते फिरते है कि देश का हाल बुरा है पर क्या वो खुद सोचा कभी कि उसने देश को सुधारने के लिए क्या किए..सिर्फ़ कहने से कुछ नही होता सार्थक कदम बढ़ाने पड़ते है...एक सच्चे देशवासी का कर्तव्य है की सुधार के कुछ सार्थक कदम उठाए ना कि देश की विकट परिस्थितियों के बारे में गाता फिरे..बहुत बढ़िया प्रस्तुति..बधाई

अनिल ने कहा…

शब्दों की शिल्पकारी कोइ आपसे सीखे,
भावनाओं की चित्रकारी कोइ आपसे सीखे..
यूं तो लिख्नने वाले तो ढेर सारे हैं मगर,
लफ़्ज़ों मे चिन्गारियां लगाना आपसे सीखे...

भगवान आपको और आपकी कलम को हमेशा सलामत रखे...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bahut hi sundar bahut hi behatreen bilkulsach ka aaina dikhati aapki yah rachna behad hi pasand aai.
तो कोई गुंडागर्दी पे भड़कता है .

कोई मुझे एक बात बताये ...
अपने गिरेबान में झाँक के आये ...

कितनों ने अँधेरे झोपड़ों में
दीपक जलाए ?
कितनों ने सड़क पे घूमते
फटेहाल बच्चों को
पाठशाला के रस्ते बताये ?
कितनों ने एक वक्त की
थाली किसी भूखे को खिलाई ?
bdhai sweekaren----
poonam

मिताली ने कहा…

अनामिका जी,
आज आपकी ये रचना ज़रा हटके लगी पर थी बहुत ही ज़ोरदार और दमदार...देश के हालातोँ पर बहुत कुछ सोचने को विवश करती है...इस प्रयास के लिए शुभकामनाऐँ स्वीकार करेँ...

अरुणेश मिश्र ने कहा…

अनामिका जी !
कविता ने दिशाबोध किया ।