Friday, 3 September 2010

नूर की बूंद











तन्हा बादलों  की गोद से
निकल, एक बूंद 
धरती लोक को चली ...

प्रेम, दया, श्रद्धा,
कोमलता और मासूमियत
अपने वज़ूद में सुशोभित किये 
सौंदर्य - सुषमा से तिरोहित,
मूर्तिमंत वो हो चली ...

हैरान हुई वो देख 
धरा वासियों  के रंग-ढंग..
साथ ना मिला जब 
अपनो का भी कहीं 
दिल की निश्छ्लता भी 
शक की सुइयों  से 
बीन्धी गयी...!

मानस विकारो से जन्मे 
तूफ़ान से  जूझती..
हर कदम पर वो 
तार - तार हो गयी,

तब .....
सुगंधित, 
खुद-गरजी से परे..
अलमस्त हवा के एक 
एक झोंके  से 
वो जा मिली !

ले आलिंगन में 
उस नूर की बूंद को 
अलंघ्य बंदिशो से परे 
उस झोंके ने 
नयी आशाओ का  स्फुरण 
उसमे  कर दिया  !

सीप के मोती की मानिंद 
उसे मन में सजा 
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया !


52 comments:

rashmi ravija said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया !
अहा...बहुत बहुत प्यारी अभिव्यक्ति..आनंद आ गया...इस निर्दोष,मासूम सी रचना पढ़कर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया

अंत भला तो सब भला ....हरि सिंह उपाध्याय हरिऔद्ध की कविता याद आ गई ..
ज्यों निकल कर
बादलों से

बहुत अच्छी प्रस्तुति

दीपक बाबा said...

सभी ही अच्छे शब्दों का चयन
और
अपनी सवेदनाओ को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सुंदर रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

मनोज कुमार said...

खुद-गरजी से परे..
अलमस्त हवा के एक
एक झोंके से
वो जा मिली !
सुंदर भावनाओं कि निश्छल अभिव्यक्ति।
आपकी प्रस्तुति का जवाब नहीं!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बूंद की अभिलाषा को नई मंज़िल प्रदान करती रचना बहुत अच्छी लगी.

कुमार संतोष said...

बहुत ही सुन्दर कविता शुभकामनाओ सहित इज़ाज़त...

http://santoshkumar.tk

सूबेदार said...

मदहोस , अनाहत कितने अच्छे शब्दों क़ा चयन किया है बहुत अच्छी रचना .बहुत-बहुत शुभकामनाये.

mai... ratnakar said...

साथ ना मिला जब
अपनो का भी कहीं
दिल की निश्छ्लता भी
शक की सुइयों से
बीन्धी गयी...!


किस खूबसूरती से सच उजागर किया गया है इंसान का बूंद के ज़रिए

Sadhana Vaid said...

कोमलता के अहसास से परिपूर्ण एक बहुत सुन्दर एवं मनभावन रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

सु-मन (Suman Kapoor) said...

वाह..............क्या ख़्यालात हैं ......... बहुत सुन्दर..................

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

लोग यों ही हैं झिझकते सोचते,
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूंद लौ कुछ और ही देता है कर!
हरिऔध जी का आठवाँ क्लास में पढा हुआ कबिता मन में बसाए हैं आज तक... अऊर आज आपका ई कबिता, मन मोह लिया...
ईश्वर आपको इसी तरह लिखने का सामर्थ्य दे!!

Anupama Tripathi said...

अपना रास्ता स्वयं तय करती बूँद की सुंदर अभिव्यक्ति -
सुंदर कविता-
शुभकामनाएं.

Padm Singh said...

सुन्दर !

रंजू भाटिया said...

bahut sundar abhivykati ...

रश्मि प्रभा... said...

अद्भुत रचना ....

राजभाषा हिंदी said...

सीधे सीधे जीवन से जुड़ी रस कविता में नैराश्य कहीं नहीं दीखता । एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है ।


हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

स्‍वच्‍छंदतावाद और काव्‍य प्रयोजन , राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हैरान हुई वो देख
धरा वासियों के रंग-ढंग..
साथ ना मिला जब
अपनो का भी कहीं
दिल की निश्छ्लता भी
शक की सुइयों से
बीन्धी गयी...!
बहुत बेहतरीन भाव पूर्ण रचना !

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर ख्याल्………………खूबसूरत अभिव्यक्ति।

Aruna Kapoor said...

ले आलिंगन में
उस नूर की बूंद को
अलंघ्य बंदिशो से परे
उस झोंके ने
नयी आशाओ का स्फुरण
उसमे कर दिया !

.....सुंदर भाव!

Udan Tashtari said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया !

-अति सुन्दर रचना.

कविता रावत said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया
,...खूबसूरत अभिव्यक्ति।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

तन्हा बादलों की गोद से
निकल, एक बूंद
धरती लोक को चली ...
--
बादलों की बूंद की कथा-व्यथा बहुत बढ़िया रही!

पूनम श्रीवास्तव said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया !
-----------------प्रकृति और भावों का अनोखा संगम---बेहतरीन रचना।

दीपक 'मशाल' said...

एक बूँद की याद दिला दी आपने.. उसे नए ढंग से प्रस्तुत किया..

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

श्रद्धा जैन said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया !

waqayi Ek bund kavita ki yaad dila di aapne bachpan mein padhi thi ..
bahut sunder abhivayakti .....

aapse baat karna chahti hun magar aapka mail Id nahi mila

mera Id
shrddha8@gmail.com

अजित गुप्ता का कोना said...

नूर की बूँद हूँ सदियों से बहा करती हूँ, गीत की यह पंक्ति याद आ गयी। अच्‍छी रचना।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ...

रचना दीक्षित said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया
बहुत अलग ढंग से व्याख्या की है अच्छी लगी

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

bahut sunder kalpana.....

अरुणेश मिश्र said...

अनिर्वचनीय ।

अरुण अवध said...

सुन्दर सकारात्मक भाव ,
मनमोहक रचना!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

bahut pyari abhivyakti!!
achchha laga.......:)
manmohak!!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

पढ़ी-लिखी कविता!
आशीष
--
बैचलर पोहा!!!

शरद कोकास said...

बहुत सुन्दर रचना ।

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, भावमय प्रस्‍तुति, आभार ।

Sunil Kumar said...

सुंदर अभिव्यक्ति है ..

शोभा said...

bahut achha likha hai. bhav aur bhasha dono hi prabhavi . badhayi

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुबसुरत प्रस्तुति।

VIJAY KUMAR VERMA said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया
मनमोहक रचना!

Parul kanani said...

waah..anamika ji..shbdon ki aisi sundar bangi..
g8 job1

प्रज्ञा पांडेय said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया ..
chhotii see boond ke nanhen se dil men itane dard hain ise to aap hi mahsoos kar sakati hain..itani samvedanaon se bharii is baat ke liye badhaayi ..

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत ही सुंदर रचना.....मनमोहक प्रस्तुति।

ZEAL said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया !

awesome !
..

शोभना चौरे said...

प्यार की ताकत का अहसास करती सुन्दर कविता
बरबस मुझे यद् आगई"बूँद जो बन गई मोती "

Akhilesh said...

बहुत ही सुन्दर रचना...... बधाई

Vandana Singh said...

bahut sunader ...pichle saal maine bhi barish ki pehli boond ko kavitabaddh kiya tha .......aapki rahna padhkar mujjhe apni bhooli bisri kavita yaad aa gyi ......bahut khoob likha hai aapne :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सीप के मोती की मानिंद
उसे मन में सजा
मदहोश, अनाहत संगीत का
प्रादुर्भाव कर
अद्भुत सुधा सागर में डुबा
प्रेयसी अपनी बना लिया
--
इतनी सुन्दर रचना पर तो
टिप्पणी करने के लिए
शब्द कम पड़ रहे हैं!
--
सागर से निकल कर
बादलों की ओर चली
धरा पर वही तो
बूंद है बनकर गिरी
अनामिका को मिल गया
इक सुखद सा नाम है
स्नेहसिक्त कर देना
जलकणों का काम है
ःःःःः
बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!

Asha Lata Saxena said...

मनको छूते भाव लिए रचना |बहुत बहुत बधाई |
आशा

मेरे भाव said...

ADBHUD RACHNA ! MAN SE BHAVO KA SUNDER CHITRAN

Khare A said...

shandaar prastuti