अशांत सागर है ये पत्थर ना फैंको ए हमनशीं
दर्द की लहरें हैं, ना खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं
कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो .
ठंडी आहों का भी असर तुम पर अब होता नहीं
मनुहार कर के भी तो ये दिल पिघलता नहीं .
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
लो बुझा लेती हूँ अरमानों की इस कसकती लौ को
दफ़ना देती हूँ तुझमें ही इन दगाबाज़ चाहतों को.
प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
65 comments:
अनुभूति की सघनता एवं संश्लिष्ट संवेदना अपना प्रभाव छोड़ती हैं।
बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियाँ .....
गहरी पंक्तियाँ सीधी हृदय में उतर गयीं।
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ! बहुत प्यारी रचना ! दिल को कहीं गहराई तक छू गयी ! आभार !
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं
vaah अनामिका कितना दर्द भर दिया आज तो छू गयी दिल को
अशांत सागर है ----------
बहुत सुन्दर कबिता है दिल की गहरायियो को छू जाती है
अभी तक की हमारे दृष्टि से श्रेष्ठ
बहुत-बहुत धन्यवाद
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
वाह कया बात है .... बहुत सुंदर
बहुत खूब लिखा है - अशांत सागर है ये पत्थर ना फैंको ए हमनशीं
दर्द की लहरें हैं, ना खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं
कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो . बहुत गहरी उतरती हैं ये लकीरें , अच्छी अभिव्यक्ति ,बधाई ।
kya baat hai..
bahut sundar hai anamika ji...
ek chatpatati si najm padhkar dil paseez gya....
मेरी मै तुम्हारी मै से मिलती नही । वाह क्या खूब लिखती हैं .
bhut khub likhaa he. akhtar khan akela kota rajsthan
shaant jal ko jhankrit na karo, ... waah
क्या बात है!! वाह!
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
अब मेरी "मैं " तुम्हारी "मैं "से मिलते नहीं ...
नजर बदलते ही नज़ारे बदल जाते हैं ...
खूबसूरत ग़ज़ल !
आपकी हर कविता पढ़ते ही बनती है ............बहुत सुन्दर लिखा है आपने
गहरी और भावमयी प्रस्तुति।
भाव तो अच्छे हैं लेकिन विधा क्या है? मुक्तक की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसलिए विधा-विशेष में लिखने पर प्रभाव अधिक होता।
मन में उड़ने वाली अशांत लहरों को लफ़्ज़ों में ढाला है ..जिसके लिए भी लिखा है बहुत निष्ठुर ही होगा वो शख्स और शायद बद्ददिमाग भी ...खैर
बहुत भावपूर्ण रचना हर शब्द से जैसे आंसू नहीं लहू टपकता हो ..
बहुत शिद्दत से निभायी तुमने प्रीत है
जिसके लिए लिखा , वो शायद बदनसीब है ..
अनामिका जी बहुत ही अच्छी रचना ! हर्फ़ हर्फ़ मन की पटल पर अंकित हो रहे हैं ! हार्दिक बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए !
बहुत सुन्दर रचना..
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
..vah sundar rachna.
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
What an expression !
Awesome !
.
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं
बेमिसाल पंक्तियाँ अनामिका जी !
Ye sadayen dilo dimaag tak pahunch hi jati hain! Sach kitna dard hota hai jab,apni 'mai' aur unki 'mai' itne alag thalag ho jate hain!
अचिंत्य भाव!अद्भुतशब्दावलि अऊर शानदार अभिव्यक्ति!!
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| तीक्ष्ण अनुभूति|
ब्रह्माण्ड
कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो ..
बहुत खूब ... संवेदनाओं से ओतप्रोत रचना .... कमाल का लिखा है ...
कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो ..
वह क्या बात कही है -
मन को छू गयी -
अनेक शुभकामनाएं .
हर पंक्ति लाजवाब---और गहन अनुभूतियों को प्रतिबिम्बित करने वाली।
bahut sunder
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
बहुत सुंदर लिखा है...सीधी चोट करने वाली पंक्तियां....
bahut bhavpoorn abhivykti gahra asar chod gayee .
Anamika regular nahee rah pane ke liye kshamaprarthee hoo .
अनामिका जी !
भावपूर्ण पंक्तियाँ .....
मन को छू गयी !!!
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
अनामिका जी
ज़बरदस्त लेखन की श्रंखला में कुछ और मोती जोड़ने के लिए शुक्रिया और बधाई
गज़ब फलसफा और शिद्दत सहित हालात की बेहतरीन पेशकश की है
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
...बहुत ही सुंदर शब्दों की माला!
वाह! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! हर एक शब्द में गहराई है और इस लाजवाब रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
क्या खूब कहा अनामिका जी..
ठंडी आहों का भी असर तुम पर अब होता नहीं
मनुहार कर के भी तो ये दिल पिघलता नहीं .
और...
लो बुझा लेती हूँ अरमानों की इस कसकती लौ को
दफ़ना देती हूँ तुझमें ही इन दगाबाज़ चाहतों को.
बहुत अच्छे शेर हैं...
भावनाओं की अभिव्यक्ति में आप बुलंदी हासिल कर चुकी हैं.
vaah ...sabhi sher bahut umda hai...
कंकड़ी फेको नहीँ
फूल भी बोरो नही
और कागज की तरी
छोड़ो नही
खेल मे तुमको पुलक
उन्मेष होता है
लहर बनने मे सलिल को
क्लेश होता है ।
दिनकर
बहुत सुन्दर रचना
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
क्या लिखा है आपने.... बहुत ही असुंदर.....दिल को छू गया...
kya baat hai..
bahut sundar hai anamika di...
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
लाजवाब शेर !!!
हर शेर बहुत सुंदर है ..........
वाह! क्या बात है!
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
सबसे अच्छी पँक्ति ....
प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.
अच्छी पंक्तिया ........
इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??
..मिलन में 'मैं' ही तो बाधा है.
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाहीं
सब अंधियारा मिटि गया, दीपक देख्या माहीं।
"मैं" है,इसलिए मिलना सदैव असम्भव था। वह भाव मात्र तिरोहित हो जाए,फिर किसी प्रयास की ज़रूरत नहीं।
मन को छू गये भाव।
................
खूबसरत वादियों के इस जीव को पहचानते हैं?
टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
बहुत सुंदर अनामिका जी....सुंदर रचना
शॄंगार रस से ओतपोत प्रभावकारी रचना
Sundar rachna...
beautiful words relly every line is in balance and words touches to the heart.ah murde ka kafan hun jisme jebe nahi ho ti kya bbat hai wonder ful line
par tum to ho wo mashal jo andhere me roshni kar sako
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
bahut hi khoobsurat ,wo nasamjh hote jo pyaar ki kadra nahi karte hai aur sachchi bhavnao ko nahi padh paate .mujhe ek gaana yaad aa raha -jaane kyo log mohbbat kiya karte hai ....................
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती ....
बहुत ही गहन और दिल को उद्वेलित करनेवाली अनुभूति.......बहुत सुन्दर...
बहुत ही उम्दा ....बहुत ही उम्दा रचना .
सभी पंक्तियाँ एक से बढ़कर एक हैं .
आभार .
superb!
मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती ।
सुन्दर शब्दों का साथ लिये हुये, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं
बेमिसाल पंक्तियाँ हैं ...सुन्दर कविता
सुन्दर,भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति.ढेरों शुभकामनायें.
bahot sunder.
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