मंगलवार, 14 सितंबर 2010

मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं...























अशांत सागर है ये पत्थर ना फैंको ए हमनशीं 
दर्द की लहरें  हैं, ना  खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं 

कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो 
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो .

ठंडी आहों का भी असर तुम पर अब होता नहीं
मनुहार कर के भी तो ये दिल पिघलता नहीं .

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी 
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.

लो बुझा लेती हूँ अरमानों की इस कसकती  लौ को 
दफ़ना देती हूँ तुझमें  ही इन दगाबाज़ चाहतों  को.

प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी 
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती 
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती 

टूटे खिलोने भी कहीं  जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.

65 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

अनुभूति की सघनता एवं संश्लिष्ट संवेदना अपना प्रभाव छोड़ती हैं।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियाँ .....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरी पंक्तियाँ सीधी हृदय में उतर गयीं।

Sadhana Vaid ने कहा…

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ! बहुत प्यारी रचना ! दिल को कहीं गहराई तक छू गयी ! आभार !

रचना दीक्षित ने कहा…

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं
vaah अनामिका कितना दर्द भर दिया आज तो छू गयी दिल को

सूबेदार ने कहा…

अशांत सागर है ----------
बहुत सुन्दर कबिता है दिल की गहरायियो को छू जाती है
अभी तक की हमारे दृष्टि से श्रेष्ठ
बहुत-बहुत धन्यवाद

राज भाटिय़ा ने कहा…

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.
वाह कया बात है .... बहुत सुंदर

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

बहुत खूब लिखा है - अशांत सागर है ये पत्थर ना फैंको ए हमनशीं
दर्द की लहरें हैं, ना खेलो, दर्द ना मिल जाए कहीं

कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो . बहुत गहरी उतरती हैं ये लकीरें , अच्छी अभिव्यक्ति ,बधाई ।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

kya baat hai..
bahut sundar hai anamika ji...

Vandana Singh ने कहा…

ek chatpatati si najm padhkar dil paseez gya....

Asha Joglekar ने कहा…

मेरी मै तुम्हारी मै से मिलती नही । वाह क्या खूब लिखती हैं .

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhut khub likhaa he. akhtar khan akela kota rajsthan

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shaant jal ko jhankrit na karo, ... waah

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है!! वाह!




हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

वाणी गीत ने कहा…

अब मेरी "मैं " तुम्हारी "मैं "से मिलते नहीं ...
नजर बदलते ही नज़ारे बदल जाते हैं ...
खूबसूरत ग़ज़ल !

Anamikaghatak ने कहा…

आपकी हर कविता पढ़ते ही बनती है ............बहुत सुन्दर लिखा है आपने

vandana gupta ने कहा…

गहरी और भावमयी प्रस्तुति।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

भाव तो अच्‍छे हैं लेकिन विधा क्‍या है? मुक्‍तक की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसलिए विधा-विशेष में लिखने पर प्रभाव अधिक होता।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन में उड़ने वाली अशांत लहरों को लफ़्ज़ों में ढाला है ..जिसके लिए भी लिखा है बहुत निष्ठुर ही होगा वो शख्स और शायद बद्ददिमाग भी ...खैर
बहुत भावपूर्ण रचना हर शब्द से जैसे आंसू नहीं लहू टपकता हो ..

बहुत शिद्दत से निभायी तुमने प्रीत है
जिसके लिए लिखा , वो शायद बदनसीब है ..

कुमार संतोष ने कहा…

अनामिका जी बहुत ही अच्छी रचना ! हर्फ़ हर्फ़ मन की पटल पर अंकित हो रहे हैं ! हार्दिक बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए !

SAKET SHARMA ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना..

arvind ने कहा…

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
..vah sundar rachna.

ZEAL ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती

What an expression !

Awesome !
.

शिवम् मिश्रा ने कहा…


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

shikha varshney ने कहा…

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं

बेमिसाल पंक्तियाँ अनामिका जी !

kshama ने कहा…

Ye sadayen dilo dimaag tak pahunch hi jati hain! Sach kitna dard hota hai jab,apni 'mai' aur unki 'mai' itne alag thalag ho jate hain!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अचिंत्य भाव!अद्भुतशब्दावलि अऊर शानदार अभिव्यक्ति!!

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| तीक्ष्ण अनुभूति|
ब्रह्माण्ड

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो ..

बहुत खूब ... संवेदनाओं से ओतप्रोत रचना .... कमाल का लिखा है ...

Anupama Tripathi ने कहा…

कसक बन के दिल में तुम हलचल सी करते हो
पास आकार भी ना अपने से बन के मिलते हो ..

वह क्या बात कही है -
मन को छू गयी -
अनेक शुभकामनाएं .

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

हर पंक्ति लाजवाब---और गहन अनुभूतियों को प्रतिबिम्बित करने वाली।

www.choupatiarocks.blogspot ने कहा…

bahut sunder

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती

बहुत सुंदर लिखा है...सीधी चोट करने वाली पंक्तियां....

Apanatva ने कहा…

bahut bhavpoorn abhivykti gahra asar chod gayee .
Anamika regular nahee rah pane ke liye kshamaprarthee hoo .

Shabad shabad ने कहा…

अनामिका जी !

भावपूर्ण पंक्तियाँ .....
मन को छू गयी !!!

mai... ratnakar ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
अनामिका जी
ज़बरदस्त लेखन की श्रंखला में कुछ और मोती जोड़ने के लिए शुक्रिया और बधाई
गज़ब फलसफा और शिद्दत सहित हालात की बेहतरीन पेशकश की है

Aruna Kapoor ने कहा…

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.


...बहुत ही सुंदर शब्दों की माला!

Urmi ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! हर एक शब्द में गहराई है और इस लाजवाब रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती
क्या खूब कहा अनामिका जी..

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

ठंडी आहों का भी असर तुम पर अब होता नहीं
मनुहार कर के भी तो ये दिल पिघलता नहीं .
और...
लो बुझा लेती हूँ अरमानों की इस कसकती लौ को
दफ़ना देती हूँ तुझमें ही इन दगाबाज़ चाहतों को.
बहुत अच्छे शेर हैं...
भावनाओं की अभिव्यक्ति में आप बुलंदी हासिल कर चुकी हैं.

शेफाली पाण्डे ने कहा…

vaah ...sabhi sher bahut umda hai...

अरुणेश मिश्र ने कहा…

कंकड़ी फेको नहीँ
फूल भी बोरो नही
और कागज की तरी
छोड़ो नही
खेल मे तुमको पुलक
उन्मेष होता है
लहर बनने मे सलिल को
क्लेश होता है ।
दिनकर

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.


क्या लिखा है आपने.... बहुत ही असुंदर.....दिल को छू गया...

संजय भास्‍कर ने कहा…

kya baat hai..
bahut sundar hai anamika di...

सुशीला पुरी ने कहा…

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
लाजवाब शेर !!!

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

हर शेर बहुत सुंदर है ..........

nilesh mathur ने कहा…

वाह! क्या बात है!

शरद कोकास ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
सबसे अच्छी पँक्ति ....

ओशो रजनीश ने कहा…

प्यास बुझाने को मयखाने भी कहाँ बचे साकी
छू भी लें तो वो एहसास कहाँ बचे बाकी.

अच्छी पंक्तिया ........

इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

..मिलन में 'मैं' ही तो बाधा है.
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाहीं
सब अंधियारा मिटि गया, दीपक देख्या माहीं।

कुमार राधारमण ने कहा…

"मैं" है,इसलिए मिलना सदैव असम्भव था। वह भाव मात्र तिरोहित हो जाए,फिर किसी प्रयास की ज़रूरत नहीं।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मन को छू गये भाव।
................
खूबसरत वादियों के इस जीव को पहचानते हैं?

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

टूटे खिलोने भी कहीं जुडा करते हैं भला..
फैंक दो दिल से कहीं दूर, चुभ ना जाए कहीं.

बहुत सुंदर अनामिका जी....सुंदर रचना

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

शॄंगार रस से ओतपोत प्रभावकारी रचना

monali ने कहा…

Sundar rachna...

iqbal uboveja ने कहा…

beautiful words relly every line is in balance and words touches to the heart.ah murde ka kafan hun jisme jebe nahi ho ti kya bbat hai wonder ful line
par tum to ho wo mashal jo andhere me roshni kar sako

ज्योति सिंह ने कहा…

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं.
bahut hi khoobsurat ,wo nasamjh hote jo pyaar ki kadra nahi karte hai aur sachchi bhavnao ko nahi padh paate .mujhe ek gaana yaad aa raha -jaane kyo log mohbbat kiya karte hai ....................

Kailash Sharma ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती ....
बहुत ही गहन और दिल को उद्वेलित करनेवाली अनुभूति.......बहुत सुन्दर...

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

बहुत ही उम्दा ....बहुत ही उम्दा रचना .
सभी पंक्तियाँ एक से बढ़कर एक हैं .
आभार .

Parul kanani ने कहा…

superb!

सदा ने कहा…

मुर्दे का कफ़न हूँ मैं भी जिसमें जेबें नहीं होती
मुंदी पलकों का अश्क हूँ जिसमें तपिश नहीं होती ।


सुन्‍दर शब्‍दों का साथ लिये हुये, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

rashmi ravija ने कहा…

छोडो रहने भी दो क्या जिरह करें साकी
अब मेरी 'मैं' तुम्हारी 'मैं ' से मिलते नहीं
बेमिसाल पंक्तियाँ हैं ...सुन्दर कविता

sandhyagupta ने कहा…

सुन्दर,भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति.ढेरों शुभकामनायें.

mridula pradhan ने कहा…

bahot sunder.