गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

एक कोशिश

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तमस भाव से
अंतस जब पूरित होगा
रूप बदलते जीवन से
नभ भी भरमाया होगा
कुंठाए फैलेंगी चहुँ ओर 
विकारों के दल दल में 
बोलो कैसे प्रेम सृजित होगा ?

कैसे दुख छिप जायेगा 
कैसे आहें थम पाएंगी ?
शब्दों के जब बाण चलेंगे 
गीली पलकें तब 
कैसे मल्हार सुनाएंगी ?

निर्मल रस का अंतस में 
आविर्भाव तो करना होगा 
उजले सूरज की चाहत में 
मन के अहम् को हरना होगा 
अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में 
फिर से उनको 
जीवन तो देना होगा.



50 टिप्‍पणियां:

kunwarji's ने कहा…

कमाल के प्रवाह के साथ समस्या के विश्लेषण और हल का प्रस्तुतीकरण....

सुन्दर!

कुंवर जी,

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

bahut sunder rachna ...badhai..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

निर्मल रस का अंतस में
आविर्भाव तो करना होगा
उजले सूरज की चाहत में
मन के अहम् को हरना होगा
अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा.
....
कवि पन्त ने कुछ ऐसे ही भाव मुझे लिखकर दिए था ...
अपने उर की सौरभ से जग का आँगन भर देना ...
आपकी रचना में सुकुमार कवि की चेतना है

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

कैसे दुख छिप जायेगा
कैसे आहें थम पाएंगी ?
शब्दों के जब बाण चलेंगे
गीली पलकें तब
कैसे मल्हार सुनाएंगी ?

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !
बहुत सुंदर !

Udan Tashtari ने कहा…

शानदार!!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सुन्दर कविता.. आपकी श्रेश्तम कवितों में एक...

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर -
तामस को मर कर ही अहम् पर विजय प्राप्त होगी -

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें !!

सूबेदार ने कहा…

kaise malhar sunayege.
bahut sundar abhibyakti.

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी लगी यह कविता। मन के गहरे भाव को सामने किया गया है, ऐसा लगता है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन के अहम का ढलना ही आनन्द का उदय होगा।

कुमार राधारमण ने कहा…

चरम के बाद पुनः नवोन्मेष ही होता है। शायद तमस,कुंठाएँ और विकार उसी के आगमन के सूचक हों!

Apanatva ने कहा…

prashansneey lekhan...sunder bhavo kee abhivykti .

Aabhar

monali ने कहा…

Sach.. jab tak ahem jeevit h prem ka udaya asambhav h.. sundar kavita :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचन जी, धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

निर्मल रस का अंतस में
आविर्भाव तो करना होगा
उजले सूरज की चाहत में
मन के अहम् को हरना होगा
अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा

जब विकार पराकाष्ठा पर होंगे तो उनका नष्ट होना लाज़मी है ....अमृत तो स्वयं ही जीवन दान ले लेगा ...बहुत भावमयी अभिव्यक्ति

kshama ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा.
Kitna anootha,pyara-sa khayal hai!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा.
बहुत ही विचारणीय कविता ...बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता.
सृजन शिखर पर -- इंतजार

babanpandey ने कहा…

दिल को छू गई ..सुंदर

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

उजले सूरज की चाहत में
मन के अहम् को हरना होगा

बिलकुल सही बात है ... जब तक मन में अहम् है ...प्रेम पनप नहीं सकता ...

Sadhana Vaid ने कहा…

कितनी प्यारी रचना है ! कुछ शिवम् सुन्दरम् की आशा में उदात्त भाव से सब कुछ भूलने को तत्पर, बहुत कुछ क्षमा करने को प्रस्तुत ! बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह रचना ! मेरा अभिनन्दन स्वीकार करें !

ZEAL ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा....

उम्दा प्रस्तुति !

.

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

उम्दा प्रस्तुति

Suman Sinha ने कहा…

उजले सूरज की चाहत में
मन के अहम् को हरना होगा
जब तक अहम् का अँधेरा होगा , परिवर्तन संभव ही नहीं

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

जीवन समाधान है, इसलिए सकारात्‍मक ऊर्जा से ही नवीन पलों का सृजन होता है। बस ऐसा ही लिखती रहें, शुभकामनाएं।

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

प्रयास जारी रखिये, और सफलता मिलें तो हमें भी सूचित करें ..
लिखते रहिये ...

शारदा अरोरा ने कहा…

सचमुच खूब सूरत लिखा है

सदा ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा.

बहुत ही भावमय करते शब्‍द ।

रंजू भाटिया ने कहा…

bahut sundar likha hai aapne behtreen abhiwykti

vandana gupta ने कहा…

निर्मल रस का अंतस में
आविर्भाव तो करना होगा
उजले सूरज की चाहत में
मन के अहम् को हरना होगा
अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा.

भावों का सुन्दर समन्वय्…………ये कोशिश तो करनी ही चाहिये……………बेहतरीन अभिव्यक्ति।

शरद कोकास ने कहा…

गीली पलकों और मल्हार का बेहद सुन्दर बिम्ब है ।

Sunil Kumar ने कहा…

कैसे दुख छिप जायेगा
कैसे आहें थम पाएंगी ?
शब्दों के जब बाण चलेंगे
गीली पलकें तब
कैसे मल्हार सुनाएंगी ?
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही विचारणीय कविता ...बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता.

Satish Saxena ने कहा…

आज तो हरियाली नज़र आई अनामिका ....शुभकामनायें !

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

कैसे दुख छिप जायेगा
कैसे आहें थम पाएंगी ?
शब्दों के जब बाण चलेंगे
गीली पलकें तब
अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"कैसे मल्हार सुनाएंगी ?

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर कविता।
...निर्मल साहित्य का जन-जन द्वारा अध्ययन ही इस समस्या का समाधान है।

smshindi By Sonu ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता ।

"समस हिंदी" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को
"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

()”"”() ,*
( ‘o’ ) ,***
=(,,)=(”‘)<-***
(”"),,,(”") “**

Roses 4 u…
MERRY CHRISTMAS to U…

मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

bhut hi sundar avibyakti........behatrin rachna

Dorothy ने कहा…

क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.

आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

सादर
डोरोथी

केवल राम ने कहा…

कैसे दुख छिप जायेगा
कैसे आहें थम पाएंगी ?
शब्दों के जब बाण चलेंगे
गीली पलकें तब
कैसे मल्हार सुनाएंगी ?
xxxxxxxxxxxxxxxxxxx
और इसके आलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं ....

mridula pradhan ने कहा…

bahut sunder likhi hain aap.

Patali-The-Village ने कहा…

अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं ।

वाणी गीत ने कहा…

इतनी प्यारी कविता इतनी देर से पढ़ पायी ...
गीली पलकें तब कैसे मल्हार सुनाएंगी ..
जब तक भीतर निर्मल आनंद नहीं होगा ...
बहुत खूब !

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

उजले सूरज की चाहत में
मन के अहम् को हरना होगा
अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा...
बहुत उम्दा रचना.

बेनामी ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा
हा हा हा
ये हुई ना मर्दों वाली ....ईईईईईई यानि बहादूरों जैसी बात.अब आउंगी पागल तेरे ब्लॉग पर.हताशा,निराशा,जीवन से पलायन वाली कविताए हमारी शेरनी क्यों लिखे भई ?

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

बहुत शानदार और सशक्त रचना ......

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

कविता में बड़े ही सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने !
रचना में सम्प्रेषण पभावी ढंग से विद्यमान है !
साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

मंजुला ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा

बहुत सुन्दर... क्या बात है

Kailash Sharma ने कहा…

अमृत की बूंदे जो ...
सूख चली हैं मन आँगन में
फिर से उनको
जीवन तो देना होगा.

कोमल भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

सादर