पुराने रिश्तों के घाव गहरे हों तो
नए रिश्ते बनाने में वक्त तो लगता है.
डूबे ही गहरे हों दरिया-ए-इश्क़ में तो
उससे निकल आने में वक़्त तो लगता है.
बांधे जो बंधन प्यार में, बेरुखी से हों चटके तो
दौर -ए-मातम गुजरने में वक़्त तो लगता है.
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
हम तो दर्द की दवा ढूँढते ही रह गए जानम
ज़ख़्म-ए-नासूर सीने में वक़्त तो लगता है.
मुहब्बत की राहों में कांटे होने तो लाज़मी हैं
जब रूह ही बेवफा हो सँभलने में वक़्त तो लगता है
30 comments:
तभी तो कहते हैं कि रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चिटकाय, टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ पड़ जाए। अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई।
बांधे जो बंधन प्यार में, बेरुखी से हों चटके तो
दौर -ए-मातम गुजरने में वक़्त तो लगता है.
Wah!
Ham bhee aapko hamare blog pe sadayen dete hain!Chali aao!:)
कलात्मक पक्ष से रचना बहुत दाएँ बाएँ लगी, बाकी वक़्त लगने से तो पूरी तरह सहमत है, लिखते रहिये ....
मुहब्बत की राहों में कांटे होने तो लाज़मी हैं
जब रूह ही बेवफा हो सँभलने में वक़्त तो लगता है
बहुत सुन्दर अहसास..सुन्दर अभिव्यक्ति..
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
अभिव्यक्ति में सच्चाई के तारे टांक कर आपने इसे और सुन्दर बना दिया है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सम्बन्धों की गहराई समय के साथ ही आती है।
"...गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है....."
आपके द्वारा व्यक्त एक एक बात से सहमत.
मेरे ब्लॉग पर आकर आशीर्वाद देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
सादर
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन,
क्या प्रीतलाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
हम तो दर्द की दवा ढूँढते ही रह गए जानम
ज़ख़्म-ए-नासूर सीने में वक़्त तो लगता है.
.....
जितनी बड़ी उलझन उतना ज्यादा वक़्त ...
सच में कई रिश्ते इस तरह उलझ जाते हैं की वे ताउम्र नहीं सुलझ पाते .....
बहुत भावपूर्ण रचना ...आभार
खूबसूरत रचना ....मन के भावों को कहती हुई ...
चंद पंक्तियाँ पेश ए नज़र हैं ...
घाव खा कर भी रिश्ते बनाने की ललक नहीं जाती ..
नए रिश्तों के लिए भी तो हौसला बुलंद चाहिए
.
डूब ही गए दरिया ए इश्क में तो फिर सोचना क्या
डूब कर भी बाहर निकल आने का हुनर चाहिए
प्यार के बंधन में लग जाती है ज़रा सी बात भी बेरूखी सी
मातम के दौर में ज़रा बंधन ढीला छोड़ना चाहिए
उलझन के दौर में गर न रहे रिश्ता , न बंधन , न प्रीत
तो उलझी हुयी गांठ को कुछ देर यूँ ही छोड़ देना चाहिए
दर्द की दवा नहीं मिलती किसी को भी सरे राह यूँ ही
ज़ख्म नासूर न बने ,ज़रा थोड़ा खुला छोड़ना चाहिए
काँटों से जब डर नहीं है कोई इन राहों में
बेवफा कहने से पहले थोड़ा सा वक्त लेना चाहिए ..
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
sach hai , waqt to lagta hai!
sundar abhivyakti!
Waqt jitna bhi lage..dua h k aap ubar aayein kyuki zyadatar to ubar hi nahi paate..
Achhi hai di..jagjeet singh ki gayi ek ghazal
'pyar ka pahla khat likhne men waqt to lagta hai' se inspire lagti hai..
हम तो दर्द की दवा ढूँढते ही रह गए जानम
ज़ख़्म-ए-नासूर सीने में वक़्त तो लगता है.
मुहब्बत की राहों में कांटे होने तो लाज़मी हैं
जब रूह ही बेवफा हो सँभलने में वक़्त तो लगता है
वाह !!!वाह !!! वाह!!!!इतने दिनों बाद दर्शन दिए वो भी लाजवाब नगीने के साथ कितनी सही बात कही है आपने अनामिका. बहुत भावपूर्ण रचना
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
सुंदर भावपूर्ण रचना।
बेहद खूबसूरत गज़ल्…………शानदार प्रस्तुति।
खुबसूरत रचना
आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
http://charchamanch.uchcharan.com/
anamika
vkt ki kdr me bhi vkt lgta hai jiska nirvah kvita me bhut khoobsoorti se hua hai . bhut se bikhre bhavo ko ek moti me piro kr jo mala bnai hai vo bhut sundr lgi .
bhut bhut shubhkamnayen .
bhut hi sundar .....dil ko chu gayi ye rachna....aapki lekhni me ek jaadu hai,samohaan hai......behad sundar....badhai ho
मन के किसी कोने में भावुक पल एवं कोमलता आपना स्थायी रूप सुरक्षित रखता है। भाव तरंगे अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
बांधे जो बंधन प्यार में, बेरुखी से हों चटके तो
दौर -ए-मातम गुजरने में वक़्त तो लगता है.
बहुत ही गहरे भाव .....
बहुत उम्दा कविता
वाह
क्लिक कीजिये कमाईये !!
wah wah anamika ji....bahut khoob...
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
बहुत सुन्दर ...
रिश्तों मे उलझी हुई सी
सुंदर रचना । काश किसि को कोई बेवफ़ा रूह न मिले ।
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है....
सच है रिश्ते संभाल कर रखने चाहियें .... टूट गए तो वक़्त लगता है ....
रचना पढ़कर ढेर सारी यादें जीवन्त हो गयीँ ; जिन्हे भूलने मे वक्त तो लगता है ।
प्रशंसनीय ।
गांठे उलझी तो क्या रिश्ता, क्या बंधन, क्या प्रीत
लाख कोशिश करो सुलझाने में वक़्त तो लगता है.
दिल को गहराई तक छू गयी आपकी यह रचना ! बहुत डूब कर लिखा है आपने ! मन सीला सीला सा हो गया ! बहुत ही सुन्दर ! आभार एवं शुभकामनाएं !
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