बुधवार, 6 अप्रैल 2011

फितरत

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घर  के आंगन को

रोशन कर दिया है  
असीम प्रकाश से
मन के आंगन में
पसरा अंधेरा मगर
सिमटता ही नही है .

हालात की कंटीली झाड़ियाँ 
छेदे जाती हैं वज़ूद को 
रिस रिस कर भी लहू 
जिस्म सांसे छोडता नही है  .

बहुत कोलाहल है  
जिंदगी के इर्द-गिर्द 
तन्हाइयों  का तूफ़ान 
मगर  भीतर का 
सिमटता ही नही है .

शिकवे लाखों  किये,
अश्क बहाये बहुत,
पुकारा किया मेरी सदाओं  ने,
सजदे किये तेरी राहों  में,
तूने मगर ना आना था,
और तू आया भी नही है .

बंद कर दिये हैं रोशनदान 
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद 
फिर क्यूँ  रुकती नही है ?

मजबूरियों  की आढ में 
दगा दिया है  तूने मुझे
तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ 
ये भी तो मुझसे होता नही है.

चाहत है कि मैं  भी 
तुझसे दगा करू, 
उफ्फ, 'तन्हा' की ये भी तो
फितरत नही है .


43 टिप्‍पणियां:

रजनीश तिवारी ने कहा…

भूलना चाहते भी हैं तुम्हें भूल ना पाते हैं
चाहत भी है तुमसे कुछ चाहते भी नहीं हैं ।
भावों की अच्छी अभिव्यक्ति ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मन में उठ रही भावों की तरंगों को
आपने बहुत सुन्दर ढंग से अपनी रचना में पिरोया है!
--
बढ़िया रचना!

Parul kanani ने कहा…

ye awsaad kahin na kahin todta bhi hai aur apne aap se jodta bhi hai...beautiful!

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना !
बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?
यही उम्मीद है जो अनंत है, अमर है, शाश्वत है और जीने की वजह बन जाती है ! बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

नीलांश ने कहा…

acchi rachna..

Amit Chandra ने कहा…

चाहत है कि मैं भी
तुझसे दगा करू,
उफ्फ, 'तन्हा' की ये भी तो
फितरत नही है .

खुबसुरत रचना।

monali ने कहा…

Har pal tujhe paane ki dua aur har pal tujhe khone ka darr sath lie chalti hu... m ishq k nuksaano se waaqif hote hue bhi tujhse bepanaah ishq karti hu...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन का प्रकाश, कब आयेगी किरण?

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दगा पाए मन से निकली भावनाएं ...खूबसूरती से लिखी हैं ..अच्छी प्रस्तुति

Rajesh Kumar 'Nachiketa' ने कहा…

बढ़िया गीत...

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

मजबूरियों की आढ में
दगा दिया है तूने मुझे
तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ
ये भी तो मुझसे होता नही है.

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !

kshama ने कहा…

Gazab dha rahee ye rachana!Nihayat sundar!

Pawan Rajput ने कहा…

wah kya likha. bhut khoob.. app bhut hi gahrai se likhti ho so thanks

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

सुंदर अभिव्यक्ति...बेहतरीन पंक्तियाँ

वाणी गीत ने कहा…

घर का आँगन तो प्रकाश से भर गया मगर मन का अँधेरा मिटता नहीं ...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

केवल राम ने कहा…

मजबूरियों की आढ में
दगा दिया है तूने मुझे
तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ
ये भी तो मुझसे होता नही है.

जीवन की यही तो विडंबना है हम जिस पर विश्वास करते हैं वह हमें दगा दे जाता है .. हम उसके प्रति समर्पित होते हैं और हम उसे अपने दिल से नहीं निकाल पाते .....हमें ऐसे लोगों से सजग रहना चाहिए पर क्या करें दिल है की मानता नहीं ...आपका आभार

vandana gupta ने कहा…

अनन्त से मिलन की सार्थक अभिव्यक्ति…………सुन्दर रचना।

संध्या शर्मा ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?
अनंत आस की सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
बेहतरीन पंक्तियाँ..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Dil mein uthte dard ko shabd de diye hain ... baht hi gahri abhivyakti ..

लाल कलम ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

सुंदर अभिव्यक्ति...बेहतरीन पंक्तियाँ

मनोज कुमार ने कहा…

गहन एकाकीपन की अन्यतम भावाभिव्यक्ति से मन सिक्त हुआ।

ZEAL ने कहा…

Hi Anamika ji , I just keep thinking about you every moment ...

Kailash Sharma ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

कितनी कसक है हरेक पंक्ति में...बहुत मर्मस्पर्शी भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

कुमार राधारमण ने कहा…

इस ब्लॉग पर आकर अक्सर निराश होता हूं। शायद,कुछ कमी मेरी चाहत में ही है।

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

इन पंक्तियों में जिंदगी कितनी मासूमियत से सिमट आई है. यही तो है अनुराग. खूबसूरत.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपकी कविता हमेशा चकित करती है... शब्द स्वतः प्रवाह में बहते चलेजाते हैं.. और बहा ले जाते हैं पढ़ने वाले को अपने साथ..

Vivek Jain ने कहा…

बहुत ही बढ़िया!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

संजय भास्‍कर ने कहा…

तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

सुंदर अभिव्यक्ति...बेहतरीन पंक्तियाँ

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

मन में उठ रही भावों की तरंगों को
आपने बहुत सुन्दर ढंग से अपनी रचना में पिरोया है!
बढ़िया रचना!

M VERMA ने कहा…

चाहत है कि मैं भी
तुझसे दगा करू,
उफ्फ, 'तन्हा' की ये भी तो
फितरत नही है .
फितरत से अलग कौन जा सकता है भला ..
बेहतरीन रचना

vedvyathit ने कहा…

bhut sochta rha aaj din doobe nhi bcha loon
bhut sochta rha hwa ko apne sath bha loon
pr dono ne kiya vhijo un kee mjboori thi
mujh ko bhi smjhaya main apne mn ko smjha loon

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi aapki kavita.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता.. हर पंक्ति बहुत खूब..
हालात की कंटीली झाड़ियाँ
छेदे जाती हैं वज़ूद को
रिस रिस कर भी लहू
जिस्म सांसे छोडता नही है .

बहुत सुन्दर

प्रेम सरोवर ने कहा…

हो जाते हैं क्यू आद्र नयन,
मन क्यूं अधीर हो जाता है,
स्वयं का अतीत लहर बन कर ,
तेरी और बहा ले जाता है।
बहुत ही सघन भावों से सिक्त कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गयी। धन्यवाद।

Govind a Media Proffessional ने कहा…

Aapke is blog k liye dhanywaad...
bahut hi sundar rachna hai....

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ज्योति सिंह ने कहा…

बहुत कोलाहल है
जिंदगी के इर्द-गिर्द
तन्हाइयों का तूफ़ान
मगर भीतर का
सिमटता ही नही है .
bahut hi sundar ,dhero badhai .

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

रोशन कर दिया है
असीम प्रकाश से
मन के आंगन में
पसरा अंधेरा मगर
सिमटता ही नही है


bahut khoob....

Dr Varsha Singh ने कहा…

बंद कर दिये हैं रोशनदान
हर उम्मीद के ...
तेरे आने की उम्मीद
फिर क्यूँ रुकती नही है ?

उम्मीद से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।

Unknown ने कहा…

बहुत कोलाहल है
जिंदगी के इर्द-गिर्द
तन्हाइयों का तूफ़ान
मगर भीतर का
सिमटता ही नही है
बेहतरीन सम्वेदनशील रचना के लिए बधाई

Rajesh Kumari ने कहा…

achchi prastuti.uttam rachna.

Nityanand Gayen ने कहा…

"मजबूरियों की आढ में
दगा दिया है तूने मुझे
तुझे निकाल, जिगर से बाहर करूँ
ये भी तो मुझसे होता नही है"
वाह.

आनंद ने कहा…

घर के आंगन को

रोशन कर दिया है
असीम प्रकाश से
मन के आंगन में
पसरा अंधेरा मगर
सिमटता ही नही है ...
और ...
बहुत कोलाहल है
जिंदगी के इर्द-गिर्द
तन्हाइयों का तूफ़ान
मगर भीतर का
सिमटता ही नही है .
बहुत सुन्दर भाव प्रवाह !

http://anandkdwivedi.blogspot.com/

Amrita Tanmay ने कहा…

sundar likha hai....