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मेरे जीवन के
ये कैसे मंथन हैं
और इस गहरे मंथन में
कैसी प्यास..
और प्यार की तृष्णा है ....?
जिसे प्यार समझ
उसकी प्राप्ती में
दिशा शून्य हो रही हूँ ,
जिसे जीवन का
वरदान समझे बैठी हूँ ...,
जिसकी तृप्ति को
मैं आलोकिक आनंद की
अनुभूति माने बैठी हूँ ...
इस प्यास को बुझाने में
मेरे सारे प्रयत्न खो रहे हैं .
कैसी मृग-तृष्णा है ये
इतनी भटकन के
बाद भी
जिन्दगी विश्राम नहीं चाहती ...
प्यार के अनंत सागर
को पाने के लिए
संघर्ष के घने जंगलों में
घुसने को तत्पर...
प्रयत्नशील .....
प्यार की ये तृष्णा
बस एक मकड़ - जाल बन के
रह गयी है.
प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.
51 comments:
prem pnth tedho bhuri auru kthin khdg ki dhar
प्यास बहुत बलवती प्यास ने कितने ही सागर सोखे
प्यास नही बुझ सकी प्यास बुझने के हैं सारे धोखे
प्यास यदि बुझ गई तो समझो आग भी खुद बुझ जाएगी
प्यास को समझो आग ,आग ही रही प्यास को है रोके ||
sundr rchna bdhai
धैर्य और आशा का दामन मत छोड़िये हमें पूरा विश्वास है कि आपकी मृगतृष्णा भी तृप्त होगी और आपकी थकन का भी शमन होगा ! जीवन की संघर्ष भरी राहों में आपको प्रेम का संबल भी मिलेगा एवं भटकी हुई ज़िंदगी को विश्राम भी मिलेगा ! इतनी भावपूर्ण रचना के लिये मेरी बधाई स्वीकार कीजिये !
प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
अंतर्मन की वेदना और खुद को तलाशती सोच..... बहुत सुंदर अनामिकाजी
प्रेम की पीड़ा दर्शाती
गहन अभिव्यक्ति ..
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना .......
स्रोत मिलने के पहले की प्यास बहुधा असहनीय हो जाती है।
पीड़ा दर्शाती
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना
दु:खों से भरी इस दुनिया में सच्चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्थल में सागर की तरह है। प्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।
और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.
Bahut bada saty kah dala aapne!
अंतर्मन की वेदना और खुद को तलाशती सोच..... बहुत सुंदर
तृष्णा में मृग तृष्णा नहीं समझ आती ...
मरिचिका के पीछे भागने से अतृप्ति ही मिलती है ...संवेदनाओं को खूबसूरती से समेटा है ...अच्छी रचना
आदरणीय अनामिका जी
नमस्कार !
गहन अभिव्यक्ति ..
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ...
जीवन में इस तरह के भटकाव अनेकों बार आते हैं लेकिन जो धैर्य का दामन थामे आगे बढते जाते हैं मुश्किलें उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती और मंजिल उनसे दूर कभी नहीं रहती.
भावनात्मक और मर्मस्पर्शी रचना, बधाई अनामिका जी. नवरात्री की शुभकामनायें.
भावनाओं की कशमकश को बखूबी पेश किया है अनामिका जी.
प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
ये मृगत्रिशःणायें ही तो आदमी के दुख का कारण है मगर इस चक्कर्व्यूह से कौन निकल सका है। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
प्यार की ये तृष्णा
बस एक मकड़ - जाल बन के
रह गयी है.
बहुत सुन्दर रचना !
अन्तर्मन की वेदना को लफ़्ज़ों मे साकार कर दिया है।
कैसी मृग-तृष्णा है ये
इतनी भटकन के
बाद भी
जिन्दगी विश्राम नहीं चाहती ...
प्यार के अनंत सागर
को पाने के लिए
संघर्ष के घने जंगलों में
घुसने को तत्पर...
प्रयत्नशील .....
अनामिका जी आपने भावनाओं की कशमकश और अन्तर्मन की वेदना को शब्दों में ढाल दिया है.. भावपूर्ण प्रस्तुति...
तृष्णा चीज ही ऐसी है बालिके ...
प्रेम को स्वयं में जीओ , मत भटको ...
और कोई राह नहीं है इस वेदना से बाहर आने की ...
पीड़ा और वेदना को शब्दों की पनाह मिल गयी है...इस तरह भी अगर सुकून मिलता है तो यही सही !
अंतर्मन की संवेदना का इतना जीवंत चित्रण वही कर सकता है जो इस प्यास की तासीर से वाकिफ हो !
गहन एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
आभार !
प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
अंतर्मन की वेदना का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
--
अन्तरमन का विश्लेषण बहुत चतुराई से किया है आपने इस रचना में!
और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.
laazwaab ,badi unchi baat kah di .
बेहतरीन!!
इतनी गहराई और व्यापकता से बात कही गयी है कि बात पूरी तरह उतर गयी. भावनाओं के वेग में विचारों पर नियंत्रण बना हुआ है जो इस कविता की एक विशेषता है.
Bhaavanaaye gahari hai...
bahut badiya..
...तृष्णा! तू न गई मेरे मन से।
प्यार के अनंत सागर
को पाने के लिए
संघर्ष के घने जंगलों में
घुसने को तत्पर
प्रयत्नशील
प्यार की ये तृष्णा
बस एक मकड़-जाल बन के
रह गयी है।
जीवन का लक्ष्य है, प्रेम की प्राप्ति, और प्रेम एक मृगतृष्णा हे, ज़िंदगी के इस विरोधाभास को आपने सुंदर कविता में रेखांकित किया है।
अंतर्मन की व्यथा का अत्यंत भावपूर्ण चित्रण.बहुत सुन्दर प्रस्तुति.आभार!
"कस्तूरी मृग सा भटक चुका
ना शांत हुई तृष्णा मेरी ..."
यथार्थ की अभिव्यक्ति...
सादर..
अनामिका जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
क्या धरती और क्या आकाश
सबको प्यार की प्यास … … …
बहुत सुंदर भावमयी रचना … अंदर तक स्पर्श करती हुई
साधुवाद !
* श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
खाली पन भरना आसान तो नहीं ....
एक ऐसी मृग मरीचिका का वर्णन आपने किया है जो यथार्थ है..
मृग तृष्णा में जिंन्दगी भटकना चाहती है विश्राम नहीं चाहती बहुत गहरी अनुभूति। और वाकई ये मृगतृष्णा जीवन को एक मकडजाल बनादेती है एसी स्थिति में व्यक्ति का विचारशून्य होजाना स्वाभाविक है और हाथ कुछ आता नहीं है। एक आम व्यक्ति की अभिव्यक्ति आपकी इस रचना में ।
bahut khubsurat rachna likhi hai..badhai..
bahut khoob likhti ho... badhaayee...
anamika ji
satya to yahi hai ki ichhaen kabhi bhi marti nahi .shayad hi koi bhagy shali hoga jiski koi trishhhna sheshhh na rahi ho.
dil ke ahsaas ko jagati bahut bhavnatmak prastuti .
bahut bahut badhai
itni achhi abhivykti ke liye
dhanyvaad
poonam
प्रेम की अभिव्यक्ति में आशा और निराशा का मिश्रण रचना को अलौकिक बनाता है . मन अह्वलादित हुआ .
jeevan ek mrigtrishna hi hai.....
प्रेम ..
एक ऐसा विषय !!
जिसकी अभिव्यक्ति करना नामुमकिन है..
मृगतृष्णा ही कहा जाए तो बेहतर है..
अनामिका जी बहुत सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
प्रेम, प्यार... का दूसरा नाम ही पीड़ा है.... मनोभावों का सजीव वर्णन...असर करता है.
वाह अनामिका,
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत अच्छी रचना है
प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ।
जी बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति ।
bhavnao ko shbdbdhh krte pryas me bhut safal hoti ek sshkt prstuti .
अनामिका जी,नमस्कार.
"और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता"-
जीवन का यही भटकाव और यही अतृप्ति प्रगति का आधार भी है.जिंदगी होती ही ऐसी है-बहता पानी.रचनाकार कि बैचैनी और उसकी व्यग्रता को उजगर करती रचना.
bahut sunder kavita hai bhavo se aot prot
rachana
सूक्ष्म एवं गहन प्रेम भावों की व्याकुल रचना...
ह्रदयस्पर्शी - मार्मिक अभिव्यक्ति ...
"मत बुझाओ प्यास मेरी , प्यास मेरी जिंदगी है
प्यास में विश्वास है, विश्वास मेरी जिंदगी है "
और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.
कभी ना खत्म होने वाली तृष्णा .....मार्मिक रचना
Kasturi ki tarah....
सुन्दर रचना.. इसी विषय पर मैने एक रचना लिखी थी जिसकी दो लाईन हैं
पोखर में सीप तलाश रहा तू क्या पायेगा
तृष्णा तेरी मृगतृष्णा है तू पछतायेगा.
नियती, तलाश और मिलन के सफ़र में किसी को क्या मिलता है... सब भाग्य पर निर्भर है.
लिखती रहें
purkashish rachna
daad hajir hai
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