रविवार, 10 अप्रैल 2011

मृग-तृष्णा

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मेरे जीवन के
ये कैसे मंथन हैं 
और इस गहरे मंथन में
कैसी प्यास..
और प्यार की तृष्णा है ....?

जिसे प्यार समझ
उसकी प्राप्ती में
दिशा शून्य हो रही  हूँ ,
जिसे जीवन का
वरदान समझे बैठी हूँ ...,
जिसकी तृप्ति को
मैं  आलोकिक  आनंद की
अनुभूति  माने बैठी हूँ ...
इस प्यास को  बुझाने में 
मेरे सारे प्रयत्न खो रहे  हैं .

कैसी मृग-तृष्णा  है ये 
इतनी भटकन के 
बाद भी 
जिन्दगी विश्राम नहीं चाहती ...
प्यार के अनंत सागर 
को पाने के लिए 
संघर्ष के  घने जंगलों में 
घुसने को तत्पर...
प्रयत्नशील .....
प्यार की ये तृष्णा 
बस एक मकड़ - जाल बन के 
रह गयी है.

प्यास  की इस मरुभूमी से 
गुज़रती  हुई मैं 
विचार शून्य हो
भटक  गयी हूँ .

और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की  उद्विग्नता 
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.




  

51 टिप्‍पणियां:

vedvyathit ने कहा…

prem pnth tedho bhuri auru kthin khdg ki dhar
प्यास बहुत बलवती प्यास ने कितने ही सागर सोखे
प्यास नही बुझ सकी प्यास बुझने के हैं सारे धोखे
प्यास यदि बुझ गई तो समझो आग भी खुद बुझ जाएगी
प्यास को समझो आग ,आग ही रही प्यास को है रोके ||
sundr rchna bdhai

Sadhana Vaid ने कहा…

धैर्य और आशा का दामन मत छोड़िये हमें पूरा विश्वास है कि आपकी मृगतृष्णा भी तृप्त होगी और आपकी थकन का भी शमन होगा ! जीवन की संघर्ष भरी राहों में आपको प्रेम का संबल भी मिलेगा एवं भटकी हुई ज़िंदगी को विश्राम भी मिलेगा ! इतनी भावपूर्ण रचना के लिये मेरी बधाई स्वीकार कीजिये !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
अंतर्मन की वेदना और खुद को तलाशती सोच..... बहुत सुंदर अनामिकाजी

Anupama Tripathi ने कहा…

प्रेम की पीड़ा दर्शाती
गहन अभिव्यक्ति ..
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना .......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्रोत मिलने के पहले की प्यास बहुधा असहनीय हो जाती है।

Unknown ने कहा…

पीड़ा दर्शाती
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना

मनोज कुमार ने कहा…

दु:खों से भरी इस दुनिया में सच्‍चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्‍थल में सागर की तरह है। प्रेम एक बड़ी शक्ति है परन्‍तु पवित्र प्रेम करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए।

kshama ने कहा…

और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.

Bahut bada saty kah dala aapne!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

अंतर्मन की वेदना और खुद को तलाशती सोच..... बहुत सुंदर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

तृष्णा में मृग तृष्णा नहीं समझ आती ...
मरिचिका के पीछे भागने से अतृप्ति ही मिलती है ...संवेदनाओं को खूबसूरती से समेटा है ...अच्छी रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय अनामिका जी
नमस्कार !
गहन अभिव्यक्ति ..
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ...

रचना दीक्षित ने कहा…

जीवन में इस तरह के भटकाव अनेकों बार आते हैं लेकिन जो धैर्य का दामन थामे आगे बढते जाते हैं मुश्किलें उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती और मंजिल उनसे दूर कभी नहीं रहती.

भावनात्मक और मर्मस्पर्शी रचना, बधाई अनामिका जी. नवरात्री की शुभकामनायें.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

भावनाओं की कशमकश को बखूबी पेश किया है अनामिका जी.

निर्मला कपिला ने कहा…

प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
ये मृगत्रिशःणायें ही तो आदमी के दुख का कारण है मगर इस चक्कर्व्यूह से कौन निकल सका है। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

प्यार की ये तृष्णा
बस एक मकड़ - जाल बन के
रह गयी है.

बहुत सुन्दर रचना !

vandana gupta ने कहा…

अन्तर्मन की वेदना को लफ़्ज़ों मे साकार कर दिया है।

संध्या शर्मा ने कहा…

कैसी मृग-तृष्णा है ये
इतनी भटकन के
बाद भी
जिन्दगी विश्राम नहीं चाहती ...
प्यार के अनंत सागर
को पाने के लिए
संघर्ष के घने जंगलों में
घुसने को तत्पर...
प्रयत्नशील .....

अनामिका जी आपने भावनाओं की कशमकश और अन्तर्मन की वेदना को शब्दों में ढाल दिया है.. भावपूर्ण प्रस्तुति...

वाणी गीत ने कहा…

तृष्णा चीज ही ऐसी है बालिके ...
प्रेम को स्वयं में जीओ , मत भटको ...
और कोई राह नहीं है इस वेदना से बाहर आने की ...

पीड़ा और वेदना को शब्दों की पनाह मिल गयी है...इस तरह भी अगर सुकून मिलता है तो यही सही !

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

अंतर्मन की संवेदना का इतना जीवंत चित्रण वही कर सकता है जो इस प्यास की तासीर से वाकिफ हो !
गहन एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
आभार !

Kailash Sharma ने कहा…

प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .

अंतर्मन की वेदना का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ .
--
अन्तरमन का विश्लेषण बहुत चतुराई से किया है आपने इस रचना में!

ज्योति सिंह ने कहा…

और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.
laazwaab ,badi unchi baat kah di .

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!!

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

इतनी गहराई और व्यापकता से बात कही गयी है कि बात पूरी तरह उतर गयी. भावनाओं के वेग में विचारों पर नियंत्रण बना हुआ है जो इस कविता की एक विशेषता है.

Unknown ने कहा…

Bhaavanaaye gahari hai...
bahut badiya..

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

...तृष्णा! तू न गई मेरे मन से।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

प्यार के अनंत सागर
को पाने के लिए
संघर्ष के घने जंगलों में
घुसने को तत्पर
प्रयत्नशील
प्यार की ये तृष्णा
बस एक मकड़-जाल बन के
रह गयी है।

जीवन का लक्ष्य है, प्रेम की प्राप्ति, और प्रेम एक मृगतृष्णा हे, ज़िंदगी के इस विरोधाभास को आपने सुंदर कविता में रेखांकित किया है।

Dr.Dayaram Aalok ने कहा…

अंतर्मन की व्यथा का अत्यंत भावपूर्ण चित्रण.बहुत सुन्दर प्रस्तुति.आभार!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

"कस्तूरी मृग सा भटक चुका
ना शांत हुई तृष्णा मेरी ..."
यथार्थ की अभिव्यक्ति...
सादर..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

अनामिका जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

क्या धरती और क्या आकाश
सबको प्यार की प्यास … … …

बहुत सुंदर भावमयी रचना … अंदर तक स्पर्श करती हुई
साधुवाद !

* श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Satish Saxena ने कहा…

खाली पन भरना आसान तो नहीं ....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

एक ऐसी मृग मरीचिका का वर्णन आपने किया है जो यथार्थ है..

BrijmohanShrivastava ने कहा…

मृग तृष्णा में जिंन्दगी भटकना चाहती है विश्राम नहीं चाहती बहुत गहरी अनुभूति। और वाकई ये मृगतृष्णा जीवन को एक मकडजाल बनादेती है एसी स्थिति में व्यक्ति का विचारशून्य होजाना स्वाभाविक है और हाथ कुछ आता नहीं है। एक आम व्यक्ति की अभिव्यक्ति आपकी इस रचना में ।

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

bahut khubsurat rachna likhi hai..badhai..

Pramod Kumar Kush 'tanha' ने कहा…

bahut khoob likhti ho... badhaayee...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

anamika ji
satya to yahi hai ki ichhaen kabhi bhi marti nahi .shayad hi koi bhagy shali hoga jiski koi trishhhna sheshhh na rahi ho.
dil ke ahsaas ko jagati bahut bhavnatmak prastuti .
bahut bahut badhai
itni achhi abhivykti ke liye
dhanyvaad
poonam

ashish ने कहा…

प्रेम की अभिव्यक्ति में आशा और निराशा का मिश्रण रचना को अलौकिक बनाता है . मन अह्वलादित हुआ .

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

jeevan ek mrigtrishna hi hai.....

***Punam*** ने कहा…

प्रेम ..

एक ऐसा विषय !!

जिसकी अभिव्यक्ति करना नामुमकिन है..

मृगतृष्णा ही कहा जाए तो बेहतर है..

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

अनामिका जी बहुत सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |

मीनाक्षी ने कहा…

प्रेम, प्यार... का दूसरा नाम ही पीड़ा है.... मनोभावों का सजीव वर्णन...असर करता है.

निर्मल सिद्धु - हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने कहा…

वाह अनामिका,
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत अच्छी रचना है

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

प्यास की इस मरुभूमी से
गुज़रती हुई मैं
विचार शून्य हो
भटक गयी हूँ।

जी बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति ।

RAJWANT RAJ ने कहा…

bhavnao ko shbdbdhh krte pryas me bhut safal hoti ek sshkt prstuti .

Rajiv ने कहा…

अनामिका जी,नमस्कार.
"और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता"-
जीवन का यही भटकाव और यही अतृप्ति प्रगति का आधार भी है.जिंदगी होती ही ऐसी है-बहता पानी.रचनाकार कि बैचैनी और उसकी व्यग्रता को उजगर करती रचना.

मेरा साहित्य ने कहा…

bahut sunder kavita hai bhavo se aot prot
rachana

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सूक्ष्म एवं गहन प्रेम भावों की व्याकुल रचना...

ह्रदयस्पर्शी - मार्मिक अभिव्यक्ति ...



"मत बुझाओ प्यास मेरी , प्यास मेरी जिंदगी है

प्यास में विश्वास है, विश्वास मेरी जिंदगी है "

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

और अंत में
मुझ थकी हुई को
प्रेम की उद्विग्नता
और अतृप्ति के अलावा
कुछ नही मिल पाता.

कभी ना खत्म होने वाली तृष्णा .....मार्मिक रचना

Amrita Tanmay ने कहा…

Kasturi ki tarah....

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर रचना.. इसी विषय पर मैने एक रचना लिखी थी जिसकी दो लाईन हैं

पोखर में सीप तलाश रहा तू क्या पायेगा
तृष्णा तेरी मृगतृष्णा है तू पछतायेगा.

नियती, तलाश और मिलन के सफ़र में किसी को क्या मिलता है... सब भाग्य पर निर्भर है.

लिखती रहें

निर्झर'नीर ने कहा…

purkashish rachna

daad hajir hai