बुधवार, 13 जुलाई 2011

कानून के ठेकेदारो सुनो ...

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सुधिजनो पिछले कई दिनों में ऐसे लेख और रचनायें पढने को मिली जो कन्या भ्रूण हत्या रोको का नारा लगा रही थी. ना... ना.... गलत मत सोचिये...मैं कोई इस नारे के विरोध में नहीं खड़ी हूँ.  मैं भी पूर्ण रूप से इसमें भागीदारी रखती हूँ. लेकिन, रह-रह कर एक सवाल जो इन लेखों को पढने के बाद मेरे मनो-मस्तिष्क में सिर उठाता रहा...वो मैं आपके समक्ष रखती हूँ...हलांकी मैने इसमे कानून के ठेकेदारों  से सुगठित कानून बनाने का  आह्वान किया है ....क्या आप भी इसमे अपनी आहुती डालना चाहेंगे.....?


child labour and society


सब थोथे ढोल पीटते हैं 
क़ानून के दो बोल बोल
कलम तकिये तले 
दबा के सोते  हैं
समाज-सेवक भी
वाह-वाही के लिए 
जनता से नारे लगवा
क़ानून को अँधा करते हैं.




कल क़ानून बनाया था
"कन्या भ्रूण हत्या को बंद करो "
पर क्या इसकी तफ्तीश भी की 
कि  कन्या को 
पूरी सुरक्षा  मिलेगी कभी  ?

कानून बनाने से पहले क्या 
कभी उस पिता के 
मन को टटोला है 
जो आज एक लड़की का
है पिता  बना ?
क्या उस माता की 
पीर को जाना है 
कल जिसने 
लड़की को था
जन्म  दिया.



क़ानून तो बना दिया 
तुमने कि  
कन्या भ्रूण हत्या पर 
अब दण्डित करो
पर क्या कोई 
ऐसा  कानून बनाया है
कि  उस बेटी पर 
राह चलते कोई 
कसीदे कसेगा नहीं.
पढने जाती बेटी से   
गाडी में कोई 
सामूहिक 
बालात्कार करेगा नहीं ?
या देर रात तक 
काम से लौटने वाली 
लडकी का पिता 
निश्चिंत हो कर 
सो पायेगा कभी ?
ससुराल विदा की बेटी को
जिंदा जला,
दहेज की मांग 
करेगा नही ?

इसी दहशत में 
कोई माता-पिता 
बेटी का पालन-हार
कहो कैसे बने ?

कैसे  दुआओं  
में अपनी 
बेटी के जन्म  
की चाह रखे ?



ओ कानून के 
ठेकेदारो सुनो 
कानून तो 
पूरा  बनाया करो 
ऐसे कानून की  
निर्मिति से पहले 
आदि- अंत तो 
गठित करो !



38 टिप्‍पणियां:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक कविता....

मनोज कुमार ने कहा…

एक सशक्त रचना जो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के विभिन्न पहलुओं पर विचार करती है और व्यवस्था के प्रति प्रश्न-चिह्न भी खड़ी करती है।
तस्वीरों ने तो विषय की मार्मिकता को सजीव कर दिया है। आशा है आपकी ये आवाज़ क़ानून के ठेकेदारों तक भी पहुंचेगी।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कानून बनाने से पहले क्या
कभी उस पिता के
मन को टटोला है
जो आज एक लड़की का
है पिता बना ?
क्या उस माता की
पीर को जाना है
कल जिसने
लड़की को था
जन्म दिया.... jhakjhorti rachna

vedvyathit ने कहा…

smsya kee jd ko phchan kr prchlit nare ke virudh likhna bhi sahs ka kam hai

Anita ने कहा…

बहुत से प्रश्न उठाती समसामायिक रचना !

Dr Varsha Singh ने कहा…

गंभीर विचारों की सहज मार्मिक कविता...

मंजुला ने कहा…

वाकई सोचने की जरुरत है
महज कानून बनाना क्या काफी है
मार्मिक रचना
आपका दर्द व आक्रोश दोनों को महसूस किया ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा -

vandana gupta ने कहा…

बेहद सशक्त और गंभीर अभिव्यक्ति सोचने को विवश करती है।
आपकी रचना तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद सशक्त और गंभीर सोचने को विवश करती है।
आपकी रचना .........1

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समाज की इस अभिशप्त प्रथा को नए दृष्टिकोण से देखा है ... उद्वेलित करती है आपकी रचना ... नए प्रश्न उठाते हुवे ...

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत क्षोभ होता है मन में आज की अक्षम कानूनी व्यवस्था को देख कर.
अति मार्मिक और मन को उद्वेलित करती हुई है आपकी अनुपम प्रस्तुती के लिए आभार.

बेनामी ने कहा…

बहुत मार्मिक किन्तु सत्य.........मेरी आवाज़ आपकी आवाज़ के साथ है .......मेरा हमेशा से ये मानना है की इस देश के कानून में सख्ती की बहुत ज़रूरत है.........बलात्कार जैसे जुर्म की सज़ा केवल फंसी ही हो सकती है.....अभी कुछ दिन पहले न्यूज़ चैनेल पर एक खबर में देखा की सरकार एक कानून पास करेगी जिसमे बलात्कार की शिकार महिला को ५०००० रूपए का मुआवजा दिया जायेगा......क्या ये ही न्याय की परकाष्ठा है ? ज़ुल्म का शिकार बनी महिला को न्याय मिल सके इसके लिए कानून सख्त होना ही चाहिए|

कभी वक़्त मिले तो जज़्बात पर मेरी इसी मुद्दे पर एक पोस्ट देखे-

http://jazbaattheemotions.blogspot.com/2011/06/blog-post.html

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन को झकझोरती कविता।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपकी कविता के बदलते भावों का स्वागत करते हुए यही कहना चाहता हूँ कि हमारे देश में क़ानून बनाने और उसको लागू करने के बीच एक गहरी खाई है.. जब तक यह खाई नहीं पाती जाती कोइ हल नहीं निकलने वाला..
आपका आह्वान उद्वेलित करता है!!

Satish Saxena ने कहा…

दर्दनाक ....

Unknown ने कहा…

बेहद सशक्त और गंभीर है
आपकी रचना

monali ने कहा…

A very harsh truth...

Vivek Jain ने कहा…

हजारों प्रश्नों को जन्म देती हुई शानदार रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Sadhana Vaid ने कहा…

एक सार्थक एवं संवेदना से परिपूर्ण रचना ! क़ानून चाहे जितने भी बना दिए जायें लड़कियों के प्रति लोगों के रवैये में अपेक्षित बदलाव तब तक नहीं आएगा जब तक लोगों की क्षुद्र मानसिकता नहीं बदल जाती ! क़ानून दो चार लोगों को सज़ा देगा जिनकी रिपोर्ट की जायेगी लेकिन सैकड़ो मासूम लडकियां उन हैवानों की दरिंदगी का शिकार होती रहेंगी जिनकी ना तो रिपोर्ट की जाती है और ना ही जिन्हें क़ानून का भय है ! लड़कियों के माता पिता इसी तरह अपनी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंताग्रस्त और भयभीत रहेंगे और बेटी की कामना करने से डरेंगे ! एक सशक्त एवं सार्थक रचना ! बधाई !

संध्या शर्मा ने कहा…

ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !

अनेको प्रश्न उठाती, उद्वेलित करती है आपकी रचना ... आशा है आपकी ये आवाज़ क़ानून के ठेकेदारों तक पहुंचेगी...

RAJWANT RAJ ने कहा…

smsya ki th tk jakr use samne lati ek bhut hi sshkt rchna ke liye anamika aapko jitni ijjt di jaye vo km hai .
aisi rchnao ki aaj ke mahoul me bhut jyada jroorat hai .
klm ki dhar se khoon nhi bhta mgr asr hota hai . aapki is post pr mile comments iske gwah hai .

Kailash Sharma ने कहा…

भावों को उद्वेलित करती बहुत सशक्त और सटीक प्रस्तुति..बहुत मर्मस्पर्शी..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सशक्त रचना ...


लेकिन क्या यदि लडकी को रास्ते में लोंग छेड़ें ..दहेज की समस्या हो ..बलात्कार की घटनाएँ घटें और इन सब पर कोई काबू न हो तो क्या कन्या भ्रूण हत्या जायज़ है ? इसके लिए कानून बनाना गलत है ?

kshama ने कहा…

ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !
Aah! Bahut sahee hai!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सभी सुधि पाठकों की मैं बहुत बहुत आभारी हूँ जिन्होंने अपनी टिप्पणियों द्वारा अपने विचारों से अवगत कराया.

@ आदरणीय संगीता जी ,

आपके उठाये प्रश्न के मद्देनज़र मैं अपनी रचना की अंतिम पंक्तियों पर आपका ध्यान चाहूंगी...

ओ कानून के
ठेकेदारो सुनो
कानून तो
पूरा बनाया करो
ऐसे कानून की
निर्मिति से पहले
आदि- अंत तो
गठित करो !

और इसके अलावा भी पूरी रचना में मैंने कहीं ये नहीं लिखा कि कानून गलत है. जरा मेरी शुरू की पंक्तियों पर भी गौर कीजियेगा...

....... ना... ना.... गलत मत सोचिये...मैं कोई इस नारे के विरोध में नहीं खड़ी हूँ. मैं भी पूर्ण रूप से इसमें भागीदारी रखती हूँ. ...........मैने इसमे कानून के ठेकेदारों से सुगठित कानून बनाने का आह्वान किया है .

Anupama Tripathi ने कहा…

सशक्त ..सटीक ...मन पर अमित छाप छोड़ गयी आपकी अद्भुत रचना ..
मर्मस्पर्शी ...

सुनीता शानू ने कहा…

आपकी रचना ने मन को झकझोर कर रख दिया अनामिका जी। कानून बनते ही टूटने और बिगाड़ दिये जाने के लिये हैं।

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

एक सशक्त और बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती रचना...

रंजना ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने...

क़ानून में भी सार्थक सुधार की जरूरत है और सामाजिक मानसिकता में भी...

S.N SHUKLA ने कहा…

dheron sawal uthati rachana, behatar post, badhai

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

theek likha hai aapne..par ham swal pe swal kiye jate hain...jwab dhundhne ka koi pryas nahi karta..

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

इसी दहशत में
कोई माता-पिता
बेटी का पालन-हार
कहो कैसे बने ?

कैसे दुआओं
में अपनी
बेटी के जन्म
की चाह रखे ?
बहुत बड़ा और ज़रूरी सवाल उठाया है आपने

Urmi ने कहा…

अद्भुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना! सटीक कहा है आपने हर एक पंक्तियों में! उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

सशक्त...जबरदस्त अभिव्यक्ति!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना..तस्वीरों ने तो विषय की मार्मिकता को सजीव कर दिया है। ..मन को छू गया..

virendra sharma ने कहा…

All these happenings reflects level of degradation of our male oriented society .We lack civility as a society .

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

गंभीर मुद्दा,सशक्त अभिव्यक्ति के साथ