अंग्रेज़ चले गए
लेकिन देखो
कैसी कैसी भेंटें
हमको दे गए .
हम भी देखो
दिल से लगाए
उन भेंटों को
कब से
वफ़ा निभाते आये .
गद्दारी, लालचीपन,
बुजदिली, भेदभाव
और फूट डालना
कितनी मुस्तैदी से
हम करते आये .
घर के भेदी बैठे
हर नुक्कड़ पर
जो अपनी
अंतरात्मा तक
बेच कर आये .
चंद पैसो में
जमीर बेचते
राजा भी तो
राज-पाट में
देश के सौदे करते आये .
कैसे ना पनपे कोई
आतंकवादी
कैसे ना कोई
बम्ब विस्फोट हो जाये .
नज़र उठा के
जहाँ तक देखो
पार्लियामेंट क्या
प्रधान-मंत्री तक
गोलियों से भुनवाये.
नकली पासपोर्ट
बनवा के पहले ये
खुद को महमान बनवाएं
गद्दारी के पाठ पढा कर
भीतरी सुरक्षा को भी
सेंध लगाएं .
विस्फोटक लगा लगा के
देखो
सपूत हमारे
भीड़ में ढेर करायें.
शिक्षा प्रणाली
ऐसी बना गये
कि देश अब तक
उसे बदल ना पाए .
आज अपने ही
भेस बदल कर
देखो अपनो को
लूट के खाएं .
कैसी देखो भेंटें
दे गये
हम दिल से
बैठे हैं
उन्हे लगाये
हम तो उनसे
वफ़ा निभाते आये .
34 टिप्पणियां:
हमेशा अंग्रेजों को ही नहीं कोसते रह सकते हम.
कहीं न कहीं तो खुद ही सोचना और समझना पड़ेगा
हमें भी .आपकी सुन्दर प्रस्तुति इस ओर ध्यान खींच रही है.बहुत अच्छा लगा पढकर.
आभार.
अंग्रेजो ने जो किया सो किया , वो तो दुश्मन थे हमारे, मगर हमने क्या किया, कहा पहुच गए हम ..
- दोस्त बन बन के मिले मुझको मिटाने वाले...
एक आक्रोशित रचना , बेबाक कलम , ये आग हर दिल में धधक रही है .. परिणाम निकलेगा जरूर.
aise hi ek rachna maine bhi post ki thee parantu wo London mein dangon k douraan likhi thee...
ab ye hamare oopar hai ki hame apni soch ko aazad karna hoga...
aapki rachna bhee styarth ko varnit kar rahi hai...
भेटों का भार उठाये हम।
आज हम अपना बोया खुद काट रहे हैं ! हमारे नेताओं का स्वार्थपूर्ण रवैया, वोट बैंक की राजनीति, लचर और ढीली न्याय व्यवस्था और मतदाताओं की नासमझी, चाहे वो अशिक्षा की वजह से हो या किसी पार्टी विशेष के अंधानुकरण की वजह से हो, हमारी इस दुरावस्था के लिये जिम्मेवार हैं ! सामयिक समस्याओं की ओर ध्यानाकर्षित करती बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !
Bahut Badhiya....Steek Sadhi hui rachna
सुन्दर रचना!
हम भारतीय बहुत उदारमना हैं!
तभी तो भेंट स्वीकार कर लेते हैं!
फलाने संगठन का हाथ , संदिग्धों के स्केच जारी किये गये , बम बनाने में फलानी चीजों का इस्तेमाल हुआ ...अलर्ट जारी किया गया ,सुरक्षा और कड़ी की गयी ...
अच्छा???
फिर क्या हुआ ??
बहुत खूब !
शुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर पोस्ट..........पर मुझे लगता है यहाँ अंग्रेजों को दोष देना ठीक नहीं .............ऐसी विशेषताएं देश में अंग्रेजों के आने से पहले भी थी..........हमे खुद को बदलना होगा.........सम्पूर्ण ढांचे को ही बदलने की ज़रूरत है अब|
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
आज अपने ही
भेस बदल कर
देखो अपनो को
लूट के खाएं .
यही शर्मनाक दृश्य हर कहीं है ...!!
हम भी तो अफ़सोस करके दूसरे ही पल अपने काम में लग जाते हैं ...कोई कुछ करता तो है नहीं...
aapki rachna ek soch de rahi hai ....badhai ...
anamika ji
bahut dino baad aapke blog par aai hun xhama kijiyega .barb- bar bimaar likhna ab acha nahi lagta is liye jab thoda theek hoti hun thodi der ke liye tabhi net par aa paat huu.
aapki samyankul prastuti bahut hi sateek lagi bilkul sahi waqt par
bahut hi badhiyan-----
poonam
अपना बोया खुद काट रहे हैं
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना....
बढ़िया पोस्ट ...सही लिखा है आपने
बहुत प्रभावशाली रचना आज के हालात को बयान करती हुई, हमें अपने भीतर झांकना होगा.
आक्रोशित मन की व्यथा का सुन्दर चित्रण किया है।
चाहे अंग्रेजों ने दिया ये सब हमको पर उन्होंने अपने देश में इन बातों का पालन नहीं किया और आज भी वो अपने देश के प्रति ज्यादा समर्पित हैं ... यह बात हमें सोचनी पड़ेगी ...
सही बात है अंग्रेजो ने जो किया सो किया , वो तो दुश्मन थे हमारे, मगर इतने सालों में क्या किया हमने..?
संवेदनशील रचना....
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना|
बहुत सजग-सचेत दृष्टि है.
विभीषण तो घर में ही बैठे हैं और अपना गुण-गान करवा रहे हैं .
Kuchh beej to khud hamne hee boye hain,jinkee fasal ug rahee hai!Khoob panap rahee hai!
अपनी गल्ती को हम दूसरों पर नहीं थोप सकते ... अंग्रेजों को तो ऐसा करना ही था आखिर उनका राज खत्म हो रहा था यहाँ से ... समझदारी तो हमको दिखानी थी ... यह लालच ..मक्कारी , भ्रष्टाचार , आतंकवाद ..सब हम खुद पाल रहे हैं ... अपनी गल्ती को हम दूसरों के ऊपर डाल सोचें कि बस हमारा काम हो गया तो यह उचित नहीं ... आम जनता पिस रही है देश का नेतृत्व अपने स्वार्थ में मगन है ... अब जनता को ही जागना होगा ...
जागरूक करने वाली अच्छी प्रस्तुति
सच को रेखांकित करती रचना....
इस रचना के द्वारा अपने कई तल्क़ हक़ीक़त का बयान किया है।
निश्चय ही आप बधाई की पात्र हैं।
angrejon par sara dosh dalna kya uchit hai...insan apni budhi ka bhi pryog karna chahiye..... kab tak dusron par dosh dal kar khud ko sahi sabit karta rahega insan...
यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
बेहतरीन कहा...बहुत अच्छा.
जितनी तारीफ करूं कम है...
अंग्रेज़ों से लेने लायक बहुत कुछ था,पर कसूर हमारा ही है कि हमने यह सब चुना।
यह आक्रोश हर दिल की आवाज़ है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
Anamika jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
अच्छा व्यंग. परन्तु अपनी गलतियों के लिए हम कब तक दूसरों को दोष देते रहेंगे. अब समय आ गया है इन भेंट लिए लोगो से आजादी दिलाने का.
आभार विचारों को जाग्रत करने के लिए.
गहन भावो को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना|
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
बहुत दिनों से आपका आना नहीं हुआ है.
क्या आप मेरे ब्लॉग से रूठी हुईं हैं?
मेरी पोस्ट आपका इंतजार करती है.
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