शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

कुलबुलाहट...



कुंठाओं से लिजलिजाती सोचें 
नाज़ुक मन पर 
तुषारापात करती हैं,
व्याकुल ह्रदय 
अपनी ही भटकन में खोया  
सहारा ढूँढने की 
कोशिश करता है...
वहीँ...
हाँ वहीं .... मेरे हर सुख-दुख को 
संबल देते 
बस तुम ही तुम 
नज़र आते हो.


मगर तुम्हारा 
मगरूर, पुरुशोच्चित स्वभाव
तुम्हारे  करीब आने की
मेरी इच्छा को 
कुचल देता है !


मौन व्यथा से 
अकुलाता, 
एकाकीपन में घुटता,
स्वयं को 
हीनता के आवरण में 
लिपटाता...
मेरा मन  
एक अनजाने,
असीम
अन्धकार में 
खुद को डुबो देता है.


और तब ....


तब शुरू होता है 
जिन्दगी से वैराग्य,
सब संबंधों को 
तोड़ फेकने की 
कुलबुलाहट !


मानो....
जिन्दगी के 
रेगिस्तान के थपेड़ों से 
हारा बटोही 
जीवन की 
नश्वरता को 
अपनाता हुआ 
अब बस 
विलीन हुआ चाहता हो !





59 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

वाह भाई मन को सुकून देने के लियें तो बहुत खूब लिख रही है बहन जी बधाई हो . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

विभूति" ने कहा…

बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

तब शुरू होता है
जिन्दगी से वैराग्य,
सब संबंधों को
तोड़ फेकने की
कुलबुलाहट !

यही सत्य भी है, सार भी. बहुत खूम.....

Anupama Tripathi ने कहा…

अनामिका जी बहुत सुंदर लिखा है ...
सहज अनुभूति की सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन की प्राकृतिक अवस्था, सर्वश्रेष्ठ उपहार।

Satish Saxena ने कहा…

सहजता की कमी, परस्पर नेह में रुकावट है....
सकारात्मकता इसे तोड़ने में कामयाब हो सकती है ! शुभकामनायें !

monali ने कहा…

Sach hi aham mauka hi nahi deta paas aane kaa... prem ko panapne ka.. sundar kavita :)

सूबेदार ने कहा…

बहुत खुबसूरत मनको शांति देने वाली बहुत-बहुत धन्यवाद

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

तब शुरू होता है
जिन्दगी से वैराग्य,
सब संबंधों को
तोड़ फेकने की
कुलबुलाहट
बहुत सुन्दर कविता है अनामिका जी.

सागर ने कहा…

prabhaavshali abhivaykti....

Rakesh Kumar ने कहा…

अनामिका की सदायें अनुपम हैं जी.
मन की कुलबुलाहट को सफलता पूर्वक
प्रस्तुत करती हुई.

आपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.

vandana gupta ने कहा…

मानो....
जिन्दगी के
रेगिस्तान के थपेड़ों से
हारा बटोही
जीवन की
नश्वरता को
अपनाता हुआ
अब बस
विलीन हुआ चाहता हो !
यहीं आकर तो इंसान सत्य की खोज शुरु करता है अपने होने के मायने ढूंढने शुरु करता है…………इसी स्थिति के आने के बाद ही जो व्याकुलता उपजती है उसे आपने बखूबी उकेरा है।

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

apki rachna achhi lgi .sprem abhar .

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

कविता बहती है भावों की सरिता के रूप में.. अनामिका जी, आभार इस कविता के लिए!!

Sadhana Vaid ने कहा…

नारी मन की कुण्ठा को सटीक अभिव्यक्ति दी है अनामिका जी आपने ! कई बार मन इसी तरह अपनों के ही आगे हारता है जब अपने मन की पीड़ा नारी जिसे सुनाना चाहती है उसके पास ना तो सुनने के लिये वक्त होता है ना उस पीड़ा को समझने का माद्दा ! तब ऐसी ही विरक्ति पैदा होती है ! बहुत ही मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

एकाकीपन में घुटता,
स्वयं को
हीनता के आवरण में
लिपटाता...
मेरा मन
एक अनजाने,
असीम
अन्धकार में
खुद को डुबो देता है.

मर्मस्पर्शी ....बहुत गहरी पंक्तियाँ

Nirantar ने कहा…

khoob soorat

मनोज कुमार ने कहा…

अद्भुत परिकल्पना। कविता की कुलबुलाहट मन को छूती है। कुछ पंक्तियां याद आ गईं ...

मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना ।
मम जीवन तिमि तुम्‍हहिं अधीना ।
जैसे मणि के बीना सांप और जल के बिना मछली नहीं रह सकती, वैसे ही मेरा जीवन आपके अधीन रहे, आपके बिना न रह सके ।

कुमार संतोष ने कहा…

Sunder rachna sunder bhaw. Shabdon mein sammohan sa pratit hua.


Badhaai.

Amrita Tanmay ने कहा…

विलीन हो कर भी कुछ न मिला तो..फिर कुलबुलाहट.

prerna argal ने कहा…

रेगिस्तान के थपेड़ों से
हारा बटोही
जीवन की
नश्वरता को
अपनाता हुआ
अब बस
विलीन हुआ चाहता हो !
वाह क्या लिखा है आपने .बहुत सुंदर अभिब्यक्ति .बहुत बहुत बधाई आपको .
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है/जरुर पधारें /

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

तब शुरू होता है
जिन्दगी से वैराग्य,
सब संबंधों को
तोड़ फेकने की
कुलबुलाहट !


और यही सत्य की ओर बढ़ते कदम हैं ... इस संसार में सब कुछ नश्वर है ..अच्छी प्रस्तुति

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

तब शुरू होता है
जिन्दगी से वैराग्य,
सब संबंधों को
तोड़ फेकने की
कुलबुलाहट !

मन को छूने वाली पंक्तियाँ।

सादर

Anita ने कहा…

इस कुलबुलाहट को शक्ति बन जाने दें तो नए द्वार खुल जाते हैं...शुभ द्वार...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या कहने,
बहुत सुंदर

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मौन व्यथा से
अकुलाता,
एकाकीपन में घुटता,
स्वयं को
हीनता के आवरण में
लिपटाता...
मेरा मन
एक अनजाने,
असीम
अन्धकार में
खुद को डुबो देता है.
.... gahan abhivyakti

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुगढ़ सुन्दर गह्नाभिव्यक्ति....
सादर...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप पोस्ट लिखते है तब हम जैसो की दुकान चलती है इस लिए आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सिर्फ़ सरकार ही नहीं लतीफे हम भी सुनाते है - ब्लॉग बुलेटिन

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

लगता है मेरे ब्लॉग से टिप्पणियाँ गायब हो रही हैं.
मेरे मेल पर जबकि ये टिप्पणियाँ दिख रही हैं..इसलिए यहाँ उन्हें सम्मलित कर रही हूँ.

सतीश सक्सेना has left a new comment on your post "कुलबुलाहट...":

सहजता की कमी, परस्पर नेह में रुकावट है....
सकारात्मकता इसे तोड़ने में कामयाब हो सकती है ! शुभकामनायें !

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

लगता है मेरे ब्लॉग से टिप्पणियाँ गायब हो रही हैं.
मेरे मेल पर जबकि ये टिप्पणियाँ दिख रही हैं..इसलिए यहाँ उन्हें सम्मलित कर रही हूँ.

संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "कुलबुलाहट...":

तब शुरू होता है
जिन्दगी से वैराग्य,
सब संबंधों को
तोड़ फेकने की
कुलबुलाहट !

और यही सत्य की ओर बढ़ते कदम हैं ... इस संसार में सब कुछ नश्वर है ..अच्छी प्रस्तुति

Rakesh Kumar ने कहा…

आप मेरे ब्लॉग पर आईं,बहुत बहुत आभार.
काश! आपकी टिप्पणियाँ भी पढ़ पाता मैं.

आपको हुए कष्ट के लिए दुखी हूँ.
पर आपकी टिपण्णी पढ़ने को मन बैचैन हैं,अनामिका जी.

Amit Chandra ने कहा…

संसार कि ये कटु सत्य है.

बहुत खूब. सादर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 04 -12 - 2011 को यहाँ भी है

...नयी पुरानी हलचल में आज .जोर का झटका धीरे से लगा

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी....ज्ञानवर्धन के लिए आभार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

मानो....
जिन्दगी के
रेगिस्तान के थपेड़ों से
हारा बटोही
जीवन की
नश्वरता को
अपनाता हुआ
अब बस
विलीन हुआ चाहता हो !

bahut sundar prastuti !!

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

बहूत सुंदर प्रस्तुति.....जितनी ही तारीफ की जाये कम होगी!!!!आभार:)
बस एक बात कहना चाहूंगी शायद अंतिम पंक्ति में "हुआ" की जगह "होना" चाहिए था!!!!

kshama ने कहा…

Behad sundar rachana....yahee sachhai hai!

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़एं । धन्यवाद ।

prerna argal ने कहा…

आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (२०) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /कृपया वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हिंदी भाषा की सेवा इसी लगन और मेहनत से करते रहें यही कामना है / आभार /link


http://hbfint.blogspot.com/2011/12/20-khwaja-gareeb-nawaz.html

Neeraj Kumar ने कहा…

इतनी स्पष्टता से वितृष्णा और वैराग्य को उजागर किया... जहां यह भयावह है वहीं कई जीवन का सच है...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

अंतर्मन के दर्द को बखूबी लिख दिय है शब्दों में

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन के भाव को शब्दों में लिखा है ... कभी कभी किसी का अहम कोई गरूर ये रिश्ता तोड़ने को प्रेरित करता है ...

रचना दीक्षित ने कहा…

मन की भावनाओं का दरिया बह चला इस कविता के माध्यम से. सुंदर प्रस्तुति. बधाई.

बेनामी ने कहा…

सही बात है.......जिंदगी कई कदम ये अहसास दिलाती रहती है.......की सब व्यर्थ है .........बहुत सुन्दर पोस्ट|

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

sirf purus ki udaseenta ekaki pan paida kar de ..jindagi se moh khatam kar de ..anamika jee ye to accha nahi lagta..naari itni kamjor nahi hai..phir yadi bishesh parishthitiyon me maun ho bhee jaaye to is nayee shuruaat manna chahiye na kee ant kee hota rujhan..maun rahkar to mahaveer ne buddha ne rahasya ujagar kiye the..samaj ko naye raste dikhaye the..aap samarth hain aisa likhkar bhee sambhal sakti hain ho sakta hai koi ubar naa paaye....ye mere bichaar hain kripaya anytha naa lein..sadar badhayee aaur amantran ke sath

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर, क्या कहने।

वहुत दिनों बाद मैने लिजलिजाती शब्द का इस्तेमाल देखा है। अच्छा लगा।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है अनामिका जी ....मर्मस्पर्शी .

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर और अक्षरशः सही भावनाओं वाली काविश....
शुभकामनाएं.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

.



सुंदर भावनाप्रधान कविता !

साधुवाद !

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

तब शुरू होता है
जिन्दगी से वैराग्य,बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Deepak Shukla ने कहा…

Anamika ji...

Antarman ki akulahat ko...
Shabdon sang piroya hai...
Asha aur nirasha ka sat..
Kavita main sanjoya hai...

Kavita main nari ke vyathit hruday ki akulahat ka shabdik rupantaran kiya gaya hai...

Prashansneeya prayaas....

Shubhkamnaon sahit...

Deepak Shukla..

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति.

#vpsinghrajput ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।
मेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से

मेरे भाव ने कहा…

बहुत अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..

मनोज भारती ने कहा…

नारी मन और पुरुष के अहम् का मिलन संभव नहीं।

बहुत भावपूर्ण रचना!!!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आह!
ऐसा होता तो है मगर क्यों होता है?