शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.




कितने    सौदेबाज़    हो   गए   हैं   हम 
भगवान  से भी सौदे बाज़ी करते हैं हम.
भगवन  ये  कर दो,  तो   मैं  ऐसा  करूँ..
वो  कर दो...तो  गरीबों  का  लंगर  करूँ.

एडवांस  में   कभी   चढ़ावा  चढाते  नहीं
कभी अग्रिम भोज भी उसको कराते नहीं.
सदा मांगते  हैं,पर धन्यवाद भी देते नहीं. 
बिलबिलाते  हैं  तो कोसने से छोड़ते नहीं.

देखो तो ईश से बड़ा आज इंसान  हो गया 
अग्रिम  रिश्वत  बिना  जो सुनता ही  नहीं 
दाम  लेकर  भी  भयादोहन  करता  है ये.  
बिन नाक रगड़े मदद किसीकी करता नहीं.

भगवान्  को एडवांस कभी हम भरते नहीं
उसके  कोप  से भी  मगर हम  डरते  नहीं.
कोसते हैं, तिस पर सौदे बाजी करते हैं हम
आडम्बर    के    घंटे     बजाते    हैं   हम.

कभी   विचारते  नहीं  कि  अकेला  है  वो ...
फिरभी अरबों-खरबों की झोली भरता है वो 
भूखे   जन्मे    को     भूखा   सुलाता   नहीं..
मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.


63 टिप्‍पणियां:

अमर भारती शास्त्री ने कहा…

bahut badiya.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

देखो तो ईश से बड़ा आज इंसान हो गया
अग्रिम रिश्वत बिना जो सुनता ही नहीं
दाम लेकर भी भयादोहन करता है ये.
बिन नाक रगड़े मदद किसीकी करता नहीं.
hahaha ... bilkul sahi

मनोज कुमार ने कहा…

कविता तो बाद में पढ़ूंगा। एक टिप्पणी तो इस लाजवाब फोटो पर बनता ही है।
सुंदर!

मनोज कुमार ने कहा…

इस रचना में वर्णित बातें एक सच्चाई है, जिसे नकारना मुश्किल है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

निर्मल जल कहाँ मिल पाता है सरलता से।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बहुत सही कह रही हैं आप .

Sunil Kumar ने कहा…

भूखे जन्मे को भूखा सुलाता नहीं..
मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.
अंतिम पंक्तियाँ इस रचना एक सच्चाई है सही कहा आपने मगर हम हैं कि समझते ही नहीं .....

Manish Khedawat ने कहा…

kya baat hai
"kuch" likha hai :)

vidya ने कहा…

सच है....भगवान से भी साहूकारी करता है इंसान...
बहुत अच्छी रचना.

सागर ने कहा…

shat prtishat satay.....

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप.
सीधे दिल को छूता है.

मैं अपने ब्लॉग पर आपकी खोई हुई टिप्पणियाँ ढूँढ रहा हूँ.कुछ मदद कीजियेगा मेरी.

इन्दु पुरी ने कहा…

वाह जी अनामिका जी आप तो आजकल पैनी नजर रखने लगी हैं.भई काम हो जाने के बाद उसे कुछ दे न दे हमारी मर्जी वो भक्तों पर विश्वास करके काम कर देता है.दुसरे हम पर क्यों भरोसा करें?
काम निकलने के बाद उसे गच्चा दे दे तो???? हा हा हा रिश्वत तो पहले लेंगे जी आखिर हम 'इंसान' हैं.

Sadhana Vaid ने कहा…

बड़ी गहरी चोट की है इंसान की स्वार्थपरक मानसिकता पर ! सच है मतलब के लिये इंसान भगवान को भी रिश्वत देने से नहीं चूकता और मतलब निकल जाने पर कभी याद नहीं करता ! बड़ी यथार्थवादी रचना रच डाली है आज तो ! आनंद आ गया पढ़ कर ! बहुत बहुत बधाई !

Pallavi saxena ने कहा…

सार्थक एवं सटीक अभिव्यक्ति....

मनोज भारती ने कहा…

जब सारा व्यवहार ही सौदेबाजी का हो जाए तो फिर भावनाओं की कौन कद्र करता है।

एक य़थार्थपरक रचना।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

भगवान् को एडवांस कभी हम भरते नहीं
उसके कोप से भी मगर हम डरते नहीं.
कोसते हैं, तिस पर सौदे बाजी करते हैं हमआडम्बर के घंटे बजाते हैं
बिलकुल सही..... सटीक सार्थक रचना

कुमार संतोष ने कहा…

Waah . . . !!
Sarthak post.

Aabhaar. . . !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने

Atul Shrivastava ने कहा…

इंसानी फितरत है यह...।
मौजूदा दौर पर सटीक उतरती रचना।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

कभी विचारते नहीं कि अकेला है वो ...
फिरभी अरबों-खरबों की झोली भरता है वो
भूखे जन्मे को भूखा सुलाता नहीं..
मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.

बहुत सुंदर !!

Prem Prakash ने कहा…

आडम्बर के घंटे बजाते हैं हम...सुंदर अभिव्यक्ति!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

हम किस दिशा में प्रगति कर रहे हैं- सोचने को बाध्य करती रचना.

kshama ने कहा…

भगवान् को एडवांस कभी हम भरते नहीं
उसके कोप से भी मगर हम डरते नहीं.
कोसते हैं, तिस पर सौदे बाजी करते हैं हम
आडम्बर के घंटे बजाते हैं हम.
Hmmm bilkul theek kah rahee ho!

Deepak Shukla ने कहा…

अनामिका जी...

सौदेबाजी मैं हैं शामिल...
दुनिया भर के सब इंसान...
"मैं" और "मेरा" ही सब सोचें...
किसी को न "इश्वर" का ध्यान...

सुन्दर भाव....

दीपक शुक्ल....

Rajput ने कहा…

मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं....
बस यही कह सकते हैं , "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान ...."
सुन्दर रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है .. इंसान बस सौदे बाजी करता है ... भगवान से भी सौदा करता है ... और अक्सर पूरा होने पे भूल भी जाता है ... सच लिखा है ...

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग ने कहा…

Badhiya rachna

vandana gupta ने कहा…

सटीक व सार्थक लिखा है।

Amrita Tanmay ने कहा…

लगता है इंसान पेट से ही तराजू लेकर आ रहा है . प्रभावी रचना .

प्रेम सरोवर ने कहा…

इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

कुमार राधारमण ने कहा…

इतना कुछ होने पर भी,भगवान नही बदले। यही फर्क है हममें और उनमें।

Amit Chandra ने कहा…

भूखे जन्मे को भूखा सुलाता नहीं..
मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.

बिलकुल सही कह रही है आप.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह रचना पढ़ कर एक कहानी याद आ गयी ..
एक बार एक आदमी ताड़ के पेड़ पर चढ गया ..जब उसने नीचे झाँका तो डर लगा तो भगवान से बोला कि मुझे सही सलामत उतार दो तो मैं ५१ रूपये का प्रसाद चढाऊंगा .. थोड़ा नीचे आया तो डर कम हुआ तो बोला कि भगवान मैं सही सलामत उतर आया तो २१ रूपये का प्रसाद चादाऊंगा .. आधे पेड़ तक उतर आया तो डर कम हो गया था तो बोला भगवान मैं ११ रूपये का प्रसाद चढाऊंगा ... और नीचे तक पेड़ पर उतर आया तो देखा कि अब तो चौथाई पेड़ ही बचा है तो बोला भगवान सवा पांच रूपये का प्रसाद चढाऊंगा ....इतने में ही उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गया ... तो बोला भगवान सवा पाँच का पसंद नहीं था तो बोल देते न गिराने की क्या ज़रूरत थी ...

रचना दीक्षित ने कहा…

इंसान के विभिन्न आयामों को खंगालने की कोशिश और शायद जीवन का सत्य भी.

सुंदर प्रस्तुति.

Unknown ने कहा…

सच कहा भगवान् से भी घूसखोरी करता है इंसान

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Kailash Sharma ने कहा…

कभी विचारते नहीं कि अकेला है वो ...
फिरभी अरबों-खरबों की झोली भरता है वो
भूखे जन्मे को भूखा सुलाता नहीं..
मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं

...हरेक पंक्ति सत्य का सटीक चित्रण...बहुत सुंदर

vidya ने कहा…

:-) thanks for making me feel like a celebrity....
million thanks to a nice poetess and a sweet lady.

prerna argal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

देते हैं भगवन को धोखा, इंसा को क्या छोड़ेंगे

बहुत सुन्दर और खुबसूरत लगी पोस्ट..........हैट्स ऑफ इसके लिए |

Maheshwari kaneri ने कहा…

ये तो इंसान की मजबूरी है...सटीक लेख...

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Blogger रश्मि प्रभा... said...

देखो तो ईश से बड़ा आज इंसान हो गया
अग्रिम रिश्वत बिना जो सुनता ही नहीं
दाम लेकर भी भयादोहन करता है ये.
बिन नाक रगड़े मदद किसीकी करता नहीं.

बिल्कुल सही .........वही जो हो रहा है

sangita ने कहा…

एक -एक पंक्ति सही है आपने ये चलन हमारा ही बनाया हुआ है,

Rakesh Kumar ने कहा…

अरे! मैं तो फिर चल आया यहाँ.
सुनीता जी की हलचल कमाल की है,
अनामिका जी,आपकी प्रस्तुति पढ़ फिर से मग्न हो गया हूँ.

पर आप नही आयीं टिपण्णी लेकर मेरे ब्लॉग पर अभी तक.क्या सुनीता जी की हलचल एकतरफा ही है.

प्रेम सरोवर ने कहा…

हम लोगों ने ईश्वर को भी इतना फुरसती समझ लिया है कि घर में कोई महत्वपूर्ण चीज नहीं मिल रही तो उसके लिए भी भगवान से कहेंगे कि खोई हुई चीज मिल जाये तो प्रसाद चढ़ाएंगे ! अरे भगवान को जैसे और कोई काम ही नहीं, रिमोट का बटन दबाया और भगवान काम पर लग गए ! यथार्थ से संवाद करती आपकी पोस्ट मन को भा गयी । समय मिले तो अपनी सादर अपस्थिति से मेरे पोस्ट की भी शोभा बढ़ाएं । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

sangita ने कहा…

धन्यवाद, अब तो मिला करेंगे ऐसी आशा है|

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट नकेनवाद पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Unknown ने कहा…

कभी विचारते नहीं कि अकेला है वो ...
फिरभी अरबों-खरबों की झोली भरता है वो
भूखे जन्मे को भूखा सुलाता नहीं..
मगर इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.

सत्य से साक्षात्कार कराती रचना क्षण भंगुर सुख के लिए हम क्या क्या नहीं करते ??? शास्वत सत्य से अनजान बने रहते ..अनामिका जी भाव पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं

dinesh aggarwal ने कहा…

इतनी सच्ची बात को सहज एवं सरल ढ़ग से
कविता के रूप में अभिव्यक्त करना, बाकई में
कमाल है।
शायद मनुष्य का ईश्वर से सौदेबाजी करना
उसकी अज्ञानता एवं डर है।
ईश्वर सच नहीं है, मानव की एक सुन्दर
काल्पनिक रचना है।

निर्मला कपिला ने कहा…

एक एक शब्द वास्तविकता के करीब। शुभकामनायेंण।

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छी रचना .....

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बिल्कुल सच,
यहां भी सौदेबाजी हो रही है।

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बिल्कुल सच,
यहां भी सौदेबाजी हो रही है।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut sundar kvita

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया- सटीक रचना.

Unknown ने कहा…

bahut khub kaha aapne. Sach kaha aapne ki Bhagwan bhi ab sauda ki cheez ban gaye hain

Satish Saxena ने कहा…

:-)
वाकई सौदेवाज न कह कर हमें भ्रष्टाचारी बताओ जो परमात्मा को भी लालच देकर पता लेने का भरोसा रखते हैं !
शुभकामनायें आपको !

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

badhai ak sundar abhivyakti

Rakesh Kumar ने कहा…

मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-२' पर आपका स्वागत है.