बुधवार, 21 दिसंबर 2011

आह ! वो बचपन

















वो गालों पे 
उँगलियों के निशान..
वो मार खा कर
सूजे-सूजे होंठ,
कंप-कपाता मन,
डर के मारे...
अश्रुओं से 
भीगा वो चेहरा
मुझे भूलता ही नहीं है. 

रूह की अन्तः वेदना 
मन के आँगन तक  को
गीला कर जाती हैं .
असहाय दग्ध भाव
छटपटाहट की 
चरम सीमा तक 
पहुँच कर
अंतर्नाद करते हुए 
मुझे..
तार - तार कर जाते हैं.

आह ! माँ के प्यार की 
वो भूख..
जो मेरी जिंदगी की 
तृष्णा बन गयी है.

उम्र का वह पड़ाव,
जब प्यार का भरपूर पानी 
जड़ों को मजबूत बना देता है...
मगर वो बचपन का प्यार 
जिन्दगी पा न सकी....
और ...
न मिली खुराक
मेरी रूह को..
और खुश्क रह गयी..
ये जिन्दगी.

आह ! ये विडम्बना....!
आह ! वो दीन-हीन बचपन ...!
और ये अविकसित वजूद...!!

मन के आँगन को 
इस भूख की तृष्णा 
आज भी 
गीला किये जाती है. 


49 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना ..... बचपन की यह वेदना सच में व्यथित करती है.....

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही सुंदर एवं मार्मिक प्रस्तुति । मां की ममता एवं प्यार की कीमत अनमोल है । इसे अनुभव किया जाता है । धन्यवाद ।

kshama ने कहा…

Aah! Bas yahee ek shabd man me ubhra...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति, ममता अनमोल है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मन के आँगन को
इस भूख की तृष्णा
आज भी
गीला किये जाती है.
...ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर यह दर्द रह जाता है, समझ सकती हूँ- बचपन यानि आरम्भ के निशां रह जाते हैं

कुमार संतोष ने कहा…

Maarmik prastuti,

Anayaas hi aah. . ! Nikal jata hai aisi rachnao par.

Bahut aabhaar. . !!

Kunwar Kusumesh ने कहा…

शानदार
और
प्रभावी प्रस्तुति.

वाणी गीत ने कहा…

ममता और वात्सल्य के अधूरेपन की कसक पूरी उम्र सताती है ...अपने या दूसरे बच्चों को ढेर सा प्यार देकर इसे कम तो किया जा सकता है !
कविता की टीस मार्मिक है !

विभूति" ने कहा…

भावों से नाजुक शब्‍द......बेजोड़ भावाभियक्ति....

Dheerendra Pandey ने कहा…

bahut hi achi abhivyakti

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बचपन कि कुछ कटु यादें इंसान के व्यक्तित्त्व पर बहुत प्रभाव डालती हैं .. मार्मिक प्रस्तुति

कौशल किशोर ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने
http://dilkikashmakash.blogspot.com/

Sadhana Vaid ने कहा…

ओह ! कितनी हृदय विदारक रचना रच डाली है आज ! नन्हे बच्चों के गाल और होंठ प्यार की थपकियों से सहलाने के लिये होते हैं उनके मार खाकर सूजने या उन पर उँगलियों के निशान पड़ जाने की कल्पना मात्र से कलेजा काँप उठता है ! इतना कड़वा यथार्थ सहन नहीं होता ! मर्मस्पर्शी रचना !

Amrita Tanmay ने कहा…

हमारे वजूद की तृष्णा कभी मिटती नहीं . सुन्दर ..

कुमार राधारमण ने कहा…

बचपन स्वर्णकाल होता है। वे माता-पिता अभागे हैं,जिन्होंने इसे गंवा दिया।

मनोज कुमार ने कहा…

आपकी कविताएं काफ़ी मैच्योर हुई हैं।
कविता में काव्यात्मकता के साथ-साथ संप्रेषणीयता भी है। जीवन के जटिल यथार्थ को बहुत सहजता के साथ प्रस्तुत किया हैं आपने। आपकी भा्षा काव्यात्मक है लेकिन उसमें उलझाव नहीं है। कविता पाठक को कवयित्री के मंतव्य तक पहुंचाती हैं।

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर..
दिल को छू गयी सचमुच...
:-(

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

यह अभाव कभी भरा नहीं जा सकता .कहीं-न-कहीं किसी न किसी रूप में मन के किसी कोने से उभर ही आता है .
सुन्दर रचना !

बेनामी ने कहा…

बहुत खूबसूरत पोस्ट|

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मर्मस्पर्शी ... मार्मिक ... बचपन कभी कभी इतना याद आता है की तड़पा जाता है ...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बेहद खूबसूरत नज़्म है...क्या बात है...वाह...

नीरज

Gyan Darpan ने कहा…

दिल को छूने वाली प्रस्तुति

Gyan Darpan
.

रचना दीक्षित ने कहा…

मन के आँगन को
इस भूख की तृष्णा
आज भी
गीला किये जाती है.

मर्मस्पर्शी कविता. बचपन के अनुभवों और ममता के स्पर्श से निष्पादित भावाभिव्यक्ति.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

aahat bacchpan ki tasveer

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

वाह !!!! जीवन का अंक गणित :

कल - आज = आह ! वो दीन-हीन बचपन ...!
और ये अविकसित वजूद...!!

इति सिद्धम्.

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

उम्र का वह पड़ाव,
जब प्यार का भरपूर पानी
जड़ों को मजबूत बना देता है...
मगर वो बचपन का प्यार
जिन्दगी पा न सकी....
और ...
न मिली खुराक
मेरी रूह को..
और खुश्क रह गयी..
ये जिन्दगी.
bachpan per likhi atyant marmik rachna.dil ko choo gayi..sadar badhayee aaaur apne blog par amantran ke sath

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

मन के आँगन को
इस भूख की तृष्णा
आज भी
गीला किये जाती है.

मर्मस्पर्शी रचना .....

amrendra "amar" ने कहा…

अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
vandana gupta ने कहा…

बेहद मार्मिक चित्रण्।

Asha Lata Saxena ने कहा…

|
दिल को छूती भाव पूर्ण रचना |
आशा

Anita ने कहा…

माँ का प्यार एक अनमोल शै है जिसकी कमी जीवन भर सालती है... मार्मिक रचना!

Kailash Sharma ने कहा…

मन के आँगन को
इस भूख की तृष्णा
आज भी
गीला किये जाती है.

....बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...माँ की ममता की कमी उम्र भर सालती रहती है..आभार

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उम्र का वह पड़ाव,जब प्यार का भरपूर पानी जड़ों को मजबूत बना देता है...मगर वो बचपन का प्यार जिन्दगी पा न सकी....और ...न मिली खुराकमेरी रूह को..और खुश्क रह गयी..ये जिन्दगी....सुंदर पंक्तीया
मेरी नई पोस्ट काव्यान्जलि ...: महत्व .....में click करे

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अंतर्स्पर्शी रचना....
सादर..

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

nice......

kitna achha hota agar sach me time machine jaisi koi cheez hoti....

hum fir bachpan me chale jaate...

great one!

Arun sathi ने कहा…

साधु-साधु

सदा ने कहा…

मन को व्‍यथित करते अहसास ...।

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

ak sundar rachana ke liye abhar Anamika ji.

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्वाद ।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

भई वाह! गज़ब
बस
कस्म गोया तेरी खायी न गयी

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग ने कहा…

Bhavpurn marmik prastuti.

sangita ने कहा…

दिल भर आया मन के बिना सब सूना है|

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना ...

प्रेम सरोवर ने कहा…

रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।