चुभती बेचैनी है सीने में,
नमी सूखी है नैनों में,
अपनों की चादर छिटकी है
अनाथ ये ' तन्हा ' बिखरी है.
कुछ दिन बीते, मुझे छोड़ गए
खींच के साया अपने-पन का
काट नेह-तरु की डाली को
जलती यादों में छोड़ गए.
कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में
द्वन्द का सागर उठता है,
मन व्याकुल हो मचलता है
जी चाहे चीख के रो लूँ मैं
पर वीरान सी आँखे अटकी हैं,
धुंधली आकृति बन जाती है,
तब ढेरों बातें करती हूँ...
फिर भी वो पास नहीं आते हैं,
मैं उन बिन सिसका करती हूँ.
36 टिप्पणियां:
अपनों की चादर छिटकी है अनाथ ये ' तन्हा ' बिखरी है.
:)
jabab nahi..
behatareen..
हृदयस्पर्शी व्यथा ....!!
बहुत सुंदर रचना ....!!
कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में
मन को छूते भाव अभिव्यक्ति के
अनुपम प्रस्तुति
ह्रदयस्पर्शी भाव... बहुत सुन्दर रचना
कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में
जाने वाले चले जाते हैं जाने वालों की याद आती है इसीलिये जब तक स्वंय उस पीडा से ना गुजरो पीडा का आकलन नहीं कर सकते । बेहद ह्रदयस्पर्शी। आज का दिन मेरे लिये भी कुछ ऐसा ही है।
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते ...मगर राहें तनहा हो जाती है !
बेहतरीन रचना...
साथ छूटने की व्याकुलता का सुंदर चित्रण!!
मन की उलझन की सुन्दर अभिव्यक्ति....
सस्नेह
अनु
इसे पढ़कर वाह! नहीं आह! ही निकलती है।
कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में
गजब की बैचैनी है शब्दों में
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
मन के उलझन की खूबशूरत सुंदर प्रस्तुति,,,
recent post: बात न करो,
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है। मन की व्यथा शब्दों में व्यक्त हुई है।
बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
अनुभूति-प्रवण रचना, हर पंक्ति मन को छू जाती है!
एक अपनापन था, छूट गया।
हर शाम बनता सँवरता है मौसम,
शायद अंतहीन इंतजार करता है मौसम।
किसी को पानी की तमन्ना किसी को भीगने का गम,
हर किसी को कहाँ खुश करता है मौसम।
( प्रशांत शर्मा )
भावप्रवण रचना ....
khub surat kabuita---------!
मन के भावों को व्यक्त करती मर्मस्पर्शी रचना...
सबकी यही बेचैनी..
बेहद उम्दा.
सादर.
कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में
बहुत खूबसूरत रचना ! जैसे दिल निचोड़ कर रख दिया हो ! अति सुन्दर !
धुंधली आकृति बन जाती है,
तब ढेरों बातें करती हूँ...
फिर भी वो पास नहीं आते हैं,
मैं उन बिन सिसका करती हूँ.
अनामिका जी,जीवन में कभी कुछ ऐसा होता है कि हम यादों के सहारे मन को शांति प्रदान कर देते हैं। इन विस्मृत पलों का भी महत्व होता है। हर खुशी जब पास रहेगी तो इसका एहसास हमें नही हो सकता। मैं तो मानता हूं कि इस सुंदर जीवन को जीने के लिए एक कमी का होना नितांत जरूरी है।इसके आलोक में आपकी कविता मन को दोलायमान सी कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
चुभती बेचैनी है सीने में,
नमी सूखी है नैनों में,
अपनों की चादर छिटकी है
अनाथ ये 'तन्हा' बिखरी है.
अदभुत हृदयस्पर्शी रचना. शुभकामनायें.
धुंधली आकृति बन जाती है,
तब ढेरों बातें करती हूँ...
फिर भी वो पास नहीं आते हैं,
मैं उन बिन सिसका करती हूँ...
किसी की यादें क्या क्या कर जाती हैं ...
दिल को छूते शब्द ...
बहुत ही बेहतरीन रचना है
- vivj2000.blogspot.com
यादों के झरोखों में झाँकती ये सुन्दर पोस्ट।
touchy!
यादों का तो काम ही है....
बैठे-बैठे मुस्काना ,कभी यू ही आँखों से
आंसू छलकाना ...
शुभकामनायें!
http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_7204.html
bahut achhi Rachna ...
phir bhi wo paas nahi aate
mai unke bin siska karti hu
http://ehsaasmere.blogspot.in/
अनामिका जी,जीवन में कभी कुछ ऐसा होता है कि हम यादों के सहारे मन को शांति प्रदान कर देते हैं। इन विस्मृत पलों का भी महत्व होता है। हर खुशी जब पास रहेगी तो इसका एहसास हमें नही हो सकता। मैं तो मानता हूं कि इस सुंदर जीवन को जीने के लिए एक कमी का होना नितांत जरूरी है।इसके आलोक में आपकी कविता मन को दोलायमान सी कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
अनामिका जी आपको व आपके परिवार को नव वर्ष की बहुत सारी शुभकामनायें.
sunder prastuti.
जलती-बुझती तिशंगी..
उठी आह संग रोशनी..!!!!
बहुत सुन्दर..
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