सोमवार, 3 दिसंबर 2012

यादें.....




चुभती बेचैनी है सीने में,
नमी सूखी है नैनों में,
अपनों की चादर छिटकी है
अनाथ ये ' तन्हा ' बिखरी है.

कुछ दिन बीते, मुझे छोड़ गए 
खींच के साया अपने-पन का 
काट नेह-तरु की डाली को  
जलती यादों में छोड़ गए.

कभी हाथ पकड़ चलाते थे 
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर 
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में

द्वन्द का सागर उठता है,
मन व्याकुल हो मचलता है 
जी चाहे चीख के रो लूँ मैं
पर वीरान सी आँखे अटकी हैं,

धुंधली आकृति बन जाती है,
तब ढेरों बातें करती हूँ...
फिर भी वो पास नहीं आते हैं,
मैं उन  बिन सिसका करती हूँ.


36 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

अपनों की चादर छिटकी है अनाथ ये ' तन्हा ' बिखरी है.
:)
jabab nahi..
behatareen..

Anupama Tripathi ने कहा…

हृदयस्पर्शी व्यथा ....!!
बहुत सुंदर रचना ....!!

सदा ने कहा…

कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में
मन को छूते भाव अभिव्‍यक्ति के

अनुपम प्रस्‍तुति

संध्या शर्मा ने कहा…

ह्रदयस्पर्शी भाव... बहुत सुन्दर रचना

vandana gupta ने कहा…

कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में

जाने वाले चले जाते हैं जाने वालों की याद आती है इसीलिये जब तक स्वंय उस पीडा से ना गुजरो पीडा का आकलन नहीं कर सकते । बेहद ह्रदयस्पर्शी। आज का दिन मेरे लिये भी कुछ ऐसा ही है।

वाणी गीत ने कहा…

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते ...मगर राहें तनहा हो जाती है !

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बेहतरीन रचना...
साथ छूटने की व्याकुलता का सुंदर चित्रण!!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मन की उलझन की सुन्दर अभिव्यक्ति....

सस्नेह
अनु

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इसे पढ़कर वाह! नहीं आह! ही निकलती है।

Ramakant Singh ने कहा…

कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में

गजब की बैचैनी है शब्दों में

विभूति" ने कहा…

खुबसूरत अभिवयक्ति.....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

मन के उलझन की खूबशूरत सुंदर प्रस्तुति,,,

recent post: बात न करो,

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है। मन की व्यथा शब्दों में व्यक्त हुई है।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

अनुभूति-प्रवण रचना, हर पंक्ति मन को छू जाती है!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक अपनापन था, छूट गया।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर शाम बनता सँवरता है मौसम,
शायद अंतहीन इंतजार करता है मौसम।

किसी को पानी की तमन्ना किसी को भीगने का गम,
हर किसी को कहाँ खुश करता है मौसम।
( प्रशांत शर्मा )

भावप्रवण रचना ....


सूबेदार ने कहा…

khub surat kabuita---------!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

मन के भावों को व्यक्त करती मर्मस्पर्शी रचना...

Amrita Tanmay ने कहा…

सबकी यही बेचैनी..

Amit Chandra ने कहा…

बेहद उम्दा.

सादर.

Sadhana Vaid ने कहा…

कभी हाथ पकड़ चलाते थे
दुनियां के ऊबड़-खाबड़ रस्तों पर
आज उनके साथ को आँका करती हूँ.
इन रीते हाथों की लकीरों में

बहुत खूबसूरत रचना ! जैसे दिल निचोड़ कर रख दिया हो ! अति सुन्दर !

प्रेम सरोवर ने कहा…

धुंधली आकृति बन जाती है,
तब ढेरों बातें करती हूँ...
फिर भी वो पास नहीं आते हैं,
मैं उन बिन सिसका करती हूँ.

अनामिका जी,जीवन में कभी कुछ ऐसा होता है कि हम यादों के सहारे मन को शांति प्रदान कर देते हैं। इन विस्मृत पलों का भी महत्व होता है। हर खुशी जब पास रहेगी तो इसका एहसास हमें नही हो सकता। मैं तो मानता हूं कि इस सुंदर जीवन को जीने के लिए एक कमी का होना नितांत जरूरी है।इसके आलोक में आपकी कविता मन को दोलायमान सी कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

रचना दीक्षित ने कहा…

चुभती बेचैनी है सीने में,
नमी सूखी है नैनों में,
अपनों की चादर छिटकी है
अनाथ ये 'तन्हा' बिखरी है.

अदभुत हृदयस्पर्शी रचना. शुभकामनायें.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

धुंधली आकृति बन जाती है,
तब ढेरों बातें करती हूँ...
फिर भी वो पास नहीं आते हैं,
मैं उन बिन सिसका करती हूँ...

किसी की यादें क्या क्या कर जाती हैं ...
दिल को छूते शब्द ...

Vivek Jain ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना है

- vivj2000.blogspot.com

इमरान अंसारी ने कहा…

यादों के झरोखों में झाँकती ये सुन्दर पोस्ट।

Parul kanani ने कहा…

touchy!

अशोक सलूजा ने कहा…

यादों का तो काम ही है....
बैठे-बैठे मुस्काना ,कभी यू ही आँखों से
आंसू छलकाना ...
शुभकामनायें!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_7204.html

Unknown ने कहा…

bahut achhi Rachna ...
phir bhi wo paas nahi aate
mai unke bin siska karti hu
http://ehsaasmere.blogspot.in/

प्रेम सरोवर ने कहा…

अनामिका जी,जीवन में कभी कुछ ऐसा होता है कि हम यादों के सहारे मन को शांति प्रदान कर देते हैं। इन विस्मृत पलों का भी महत्व होता है। हर खुशी जब पास रहेगी तो इसका एहसास हमें नही हो सकता। मैं तो मानता हूं कि इस सुंदर जीवन को जीने के लिए एक कमी का होना नितांत जरूरी है।इसके आलोक में आपकी कविता मन को दोलायमान सी कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

रचना दीक्षित ने कहा…

अनामिका जी आपको व आपके परिवार को नव वर्ष की बहुत सारी शुभकामनायें.

tbsingh ने कहा…

sunder prastuti.

priyankaabhilaashi ने कहा…

जलती-बुझती तिशंगी..
उठी आह संग रोशनी..!!!!

बहुत सुन्दर..