एकाकीपन के
झंझावतों से
स्वयं को मुक्त करने,
अंतस की खलिश
को कम करने हेतु
बड़ी बहिन समान
भाभी, माँ सी छाया
देने वाली सासु माँ
मन को अलोलित करने वाले
मासूम बच्चो से ,
और उन बाकी रिश्तों …
जो इस तिश्नगी पर
फोहे बनने को काफी थे ……
उस सब से मिल तो ली थी
मगर उफ्फ ये
दिल की आग से
तपा आँखों का पानी,
कुछ अनचाही तल्खियाँ,
और जिद्दी मनहूसियत
मेरे वजूद को काबिज किये रहे
और ये रूह जो
सिर्फ और सिर्फ
तेरे आगोश की, तेरे साथ की,
तेरे जज्बातों की, स्पर्श की
तपिश पाने के लिए
तड़फती ही रही .....!!
2 टिप्पणियां:
तेरे आगोश की, तेरे साथ की,
तेरे जज्बातों की, स्पर्श की
तपिश पाने के लिए
तड़फती ही रही .....!!
..........बहुत सोचने पर
एक जवाब आता कहीं भीतर से
हो रहा है कुछ ऐसा
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बहुत सुंदर रचना
बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
रचना शायद इसी को कहते हैं ... लाजवाब ..
हर रिश्ता जीवन को मायने देने के साथ - साथ जरुरी भी होता है … गहन भाव
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