छोटे थे तो
माँ के आँचल में
सिमटे रहते थे हम
माँ के आँचल में
सिमटे रहते थे हम
ऑफिस जाती थी तो
पल पल घडी के कांटो को
निहारा करते थे हम
आके सीने से लगा लोगी माँ
उसी पल की चाहत में
उदास होते थे हम.
जवानी मस्तानी आई
हम मद मस्त होने लगे
आजादी की चाह लिए
दोस्तों में वक्त देने लगे.
हम बदल गए,
माँ बदली नहीं,
माँ बदली नहीं,
ऑफिस से लौट
इंतज़ार करती रही
पूछना,
टोकना
भी
कहाँ
भाता
था माँ .
बेरुखी से कहना
क्यों बार बार पूछती हो माँ,
सोचते थे कि रात आये नहीं
दोस्तों से बिछड़ कर न जाएँ कहीं
ये आजादी यूँ ही चलती रहे
पापा घर बुलाने की जिद न करें।
आज माँ तुमसे दूर हूँ
नौकरशाही में माँ मजबूर हूँ ,
आज न तुम्हारी रोक टोक है
दिन रात दोस्त ही दोस्त हैं
आजादी भी माँ भरपूर है
घर भी है माँ
साजो-सामान भी है
पर माँ तू नहीं है
न तेरी आवाज़ है
इंतज़ार करती
वो तेरी न आँख है.
आज कोई कहने वाला नहीं
बेटा,
तू
कब आएगा,
कोई
पूछता
नहीं कि
बेटा,
तू
क्या खायेगा।
मैं भूखा रहूँ या
बीमार रहूँ
माथा चूम ले
गोद में भर के मुझे
मेरा दुख छीन ले
दूर तक भी कहीं
माँ वो तेरा साया नहीं .
आज तडफता हूँ
माँ तेरे साथ को
आज रोता हूँ
माँ मैं तेरे प्यार को
चंद पैसों की खातिर
माँ तुझसे दूर हूँ
माँ तुझसे दूर हूँ
आजादी है महंगी
माँ बहुत मजबूर हूँ !!
13 comments:
सुंदर शब्द .........बहती अभिव्यक्ति :)
सच है हकीकत तो तब ही पता चलती है जब अपने ऊपर आती है. बेहतरीन प्रस्तुती
माँ की कमी का अहसास तो माँ के पास न होने पर ही होता है...एक उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति...
पंजाबी में कुछ इस तरह की एक कहावत है, "या तो गयां स्वाद, या मोयां स्वाद।" यानी किसी के ना रहने पर ही उसकी कीमत पता चलती है।
माँ जीवन का सार है।
sach ---kisi ke naa hone par uski jyaada hi kami khalti hai. fir sabhi chijen dubaara mil sakti hain par maa-pita kabhi bhi nahi-----dil ko chhuti hui post.
dil ko chhooti hui sachna
dil ko chhooti sachana
bahut hi marm sparshi vsachchai se bharpur,maa ke prati sabke dil me lagbhag yahi bhavnaayen hongi----
माँ की याद दिलाती कविता..... समय के साथ पीछे छुट गए हैं उन अहसासों का आभास कराती कविता..... बहुत अच्छी कविता
http://savanxxx.blogspot.in
बहुत खूब जी |
माँ से घर संसार है ..
बहुत सुन्दर
माँ से घर संसार है ..
बहुत सुन्दर
Post a Comment