
मैं कई बार
मैं कई बार
खुद को
गफलत में डालता हूँ
कि मैं तुझसे
मुहोब्बत नहीं करता
मगर जब भी
तेरी नज़रों से
दूर होता हूँ
खुद की
आँखों की कोरों में
नमी पाता हूँ.
कई बार लगता है
कि तेरे बगैर
ये जिंदगी जी लूँगा, मगर
एक पल की भी जुदाई
बर्दाश्त से बाहर पाता हूँ.
मैं बे-फ़िक्र होने की
कोशिशें करता हूँ
कि तेरे बगैर
खुश हूँ
लेकिन...
तुझसे दूर रह कर
खुद को
हारा हुआ
जुआरी सा पाता हूँ.
ये धड़कने
चलती तो हैं
तेरे बगैर मुझमें
बेवफा बन कर
मगर...
खुद को
यतीम और
दिल में
दर्द पाता हूँ .
मैं लाख कोशिशे करता हूँ
तुझसे दूर...
खुश रहने की
मगर उड़ता है
जब भी धुंआ
याद-ए-मुहोब्बत का ..
खुद को
तन्हाइयों में
लिपटा हुआ पाता हूँ .
खुद को
गफलत में डालता हूँ
कि मैं तुझसे
मुहोब्बत नहीं करता.
मगर....