कैसे तुम मुझे मिल गई थी..
मैं तो बद-किस्मती से समझोता कर चुका था..
खुदा के दर से भी खफा हो चुका था..
मौत का रास्ता चुन चुका था..
इस तन्हा दुनिया से विरक्त हो चला था..
अपने नसीब पर भी बे-इन्तहा रो चुका था..
अब और कोई आस बाकी ना बची थी..
जीने की आरजू भी ख़तम हो चली थी..
तभी न जाने तुम मुझे मिल गई थी..
कैसे तुम मुझे मिल गई थी..!!
यु ही मैंने तो बस तुम्हे देखा था..
चेहरा तो अभी देखा भी नही था..
अभी धुंधले से अक्षर दो-चार..
बस मन के पढ़े थे..
आवाज़ तो अभी सुनी भी नही थी..
बस एक सरगोशी कानो में की थी.
तुम्हारे कानो ने भी ना जाने क्या सुन लिया था..
कैसे तुम पलट के मेरे पास आ गई थी..
कैसे तुम मुझे मिल गई थी..!!
ना जाने क्या तुम्हारे मन में हलचल हुई थी..
इक दूजे की आवाज़ सुनने की ललक जाग उठी थी..
तब इक-दूजे के बोल कानो में बजने लगे थे..
मन के भीतर तक कही वो बसने लगे थे..
फ़िर यु हुआ की बार बार हम इक-दूजे को सुनने लगे..
और न जाने कब एक-दुसरे में खोने लगे थे..
साँसों से होते हुये दिल में बसने लगे थे..
ना जाने कब तुम मेरा चैन,,,मेरी जान बन गई थी..
कैसे तुम मुझे मिल गई थी...!!
सोचा नही था की तुम इतना चाहोगी मुझे..
जाना भी नही था की इतना भी चाह सकता है कोई..
इतना प्यार भी होता है इस जहा में, जाना नही था..
कहानियों की बातें सच होने लगी थी..
मेरी जिंदगी भी झूमने-नाचने लगी थी..
मुहोब्बत भी मुझ पर रश्क खाने लगी थी..
न जाने कब तुम मेरी आत्मा..मेरे प्राणों में बस गई थी..
न जाने कब तुम मेरी जिंदगी बन गई थी..
न जाने तुम कैसे मुझे मिल गई थी..!!
24 टिप्पणियां:
wo kaun thi?
jiske liye apna dil hi nikal kr rkh diya ek nanhi see bchchi ne premi bn kr aur likh di ek kvita,bahut khoob bhai!
खूबसूरत जज्बात ,कुछ अलग सा ।
संसार की समस्त माताओं को नमन
dil ke sab jajbaat nikal kar kagaz pe yun chipak gaye...ki barson tak unke nisha rahenge...naayab
kya kahun aaj to aapne gajab hee likh diya hai , bhut hee lajwab rachna lagi , badhai
aaj kal ye kya ho raha hai...
kahi tum badal to nahi gayi ho..:)
kavita to prem pagi aur bahut sundar hai lekin main pareshaan hun ki chakkar kya hai...!!
बेहतरीन
बहुत सुंदर, शुभकामनाएं
रामराम
क्या से
क्या हो गया
ब्लाग मेँ आपके !
रहस्य से
पर्दा भी
उठेगा शायद
कभी।
*इस नए अंदाज को शुमकामनाएं
चलती रहेँ
अनामिका की अदाएं!
आवाज़ तो अभी सुनी भी नही थी..
बस एक सरगोशी कानो में की थी.
तुम्हारे कानो ने भी ना जाने क्या सुन लिया था..
कैसे तुम पलट के मेरे पास आ गई थी..
कैसे तुम मुझे मिल गई थी..!!
रचना तो बहुत सुन्दर है ,आशा और निराशा का मेल है .मै सफ़र मे व्यस्त हू ,जून से बराबर मिलती हू .
बढिया प्रस्तुति।
कहानियों की बातें सच होने लगी थी..
मेरी जिंदगी भी झूमने-नाचने लगी थी..
मुहोब्बत भी मुझ पर रश्क खाने लगी थी..
न जाने कब तुम मेरी आत्मा..मेरे प्राणों में बस गई थी..
न जाने कब तुम मेरी जिंदगी बन गई थी..
न जाने तुम कैसे मुझे मिल गई थी..!!
Dil ek alag roomani jahan me chala gaya!
Ek iltija hai.."Simte lamhen"pe meri aankhon dekhi post zaroor padhen...!
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति....प्रेम रस मेंपगी खूबसूरत रचना...
एक बेहतरीन अनुभव इस कविता को पढना...
waah ji waah :) ...too good n beautiful one !!!
डायरी का अविस्मरणीय पृष्ठ ।
Anamika ji, jo post aapne padhi( Simte Lamhen is blogpe),aur tippanee dee,wahi post padhne ke liye binti ki thi!
Bahut,bahut shukriya!
ऊपर उस युवक की लगा देती तो मज़ा आता न ...जिसकी और से ये नज़्म लिखी गयी है .......!!
उत्तम भाव लिए कविता।
बहुत बहुत सुन्दर रचना ,जो मौत को गले लगाने की इच्छा रखते थे उन्हे जीने का सलीका आ गया ,जीने को सहारा मिला ।शब्दों का चयन बहुत ही खूबसूरती से किया गया है ’सांसों से होकर दिल में बसना’ मोहब्बत मुझपर रश्क करने (खाने) लगी ’अफ़सानों का सच होना, चाहने और प्यार करने की बातें कल्पनातीत होना, "" जाने क्या तूने कही जाने क्या मैने सुनी बात फ़िर बन भी गई। बोल का भी कानों मे बजते हुये मन मे प्रवेश करना । इस कविता के साथ तस्बीर न भी होती तो भी रचना स्वंम मे ही सशक्त और सुन्दर है ।
न जाने कब तुम मेरी जिंदगी बन गई थी..
न जाने तुम कैसे मुझे मिल गई थी..!!
सुन्दर।
sundar poem...
न जाने कब तुम मेरी जिंदगी बन गई थी..
न जाने तुम कैसे मुझे मिल गई थी.
पर शायद ये सबकी किस्मत में नहीं होता ...बहुत दिल को छूने वाली प्रस्तुति
न जाने कब तुम मेरी जिंदगी बन गई थी..
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
दिल को छूने वाली प्रस्तुति
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