रविवार, 4 जुलाई 2010

दे दो मुझको माटी रूप















सुनो आज तुम्हें मैं
एक स्वप्न की बात बताती हूँ
नारद जी ने जो पूछा मुझसे
वो मैं तुम्हें सुनाती हूँ.
बोले नारद जी मुस्का कर
सुनो चंचला, ज़रा ध्यान धरो..
सृष्टिकर्ता का बेटा हूँ,
सो पूज्य पिता से
तुम्हारी सिफारिश कर
तुमको ये सौभाग्य देता हूँ .
आज बताओ, किस धातु में
तुमको परिणत कर डालूं
स्वर्ण, लौह या मिटटी, बोलो ..
कौन से रंग में रंग डालूं ?
मैंने सुना जब ये मुनि मुख से
रुक कर तनिक विचार किया ..
फिर बोली, हे नारद जी..
स्वर्ण नहीं मुझको बनना
है कीमत उसकी बहुत अधिक
चोरी का डर भी बना रहे
हवा लगे शीतल हो जाये,
अग्नि देख झुलसता जाये..!
रक्षा का बोझ भी इसका
अपने सिर पे बढ़ता जाये.
वर्ना एक धातु और बनायें
जो रक्षा इसकी कर पाए.
लौह रूप में उसको जानें
लोहे का अवलंबन करना पड़े.
प्रश्न किया नारद ने ..
तो क्या लौह रूप तुम्हें भाया है ?
हंस कर टाला मैंने प्रश्न को
और ये संवाद किया..
लौह रूप ना चाहिए मुझको
ये तो होता बहुत कड़ा..
लोहे को लोहा काटे है
रूप भी इसका दबा दबा.
इससे तो है माटी भली
जिसका किसीको लोभ नहीं
माटी से जन्मे सारे धातु
माटी से किसी को बैर नहीं.
लड़ते, जलते, टूटते, कटते
करबद्ध हो जाते समक्ष खड़े..
अंततः सब मिट्टी बन जाते
पंचतत्व भी मिलें माटी में.
हे देव ऋषि यही उत्तम है
मुझको दे दो माटी रूप.
मंद मंद मुस्काते नारद
तथास्तु कह, कर गए गमन.
स्वप्न सच हो गया मेरा
अंत मिलन है माटी रूप

43 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति!
जीवन का सार किस चीज़ में है उसे आप ने बहुत सुंदरता से अभिव्यक्त किया है ,
अर्थपूर्ण शब्दों का प्रयोग कविता की सार्थकता को सिद्ध करता है
बधाई

अरुणेश मिश्र ने कहा…

कविता का कथ्य अतिप्रशंसनीय । दार्शनिक अभिव्यक्ति ।
अनामिका जी . रचना को दो तीन बार पढें तो और प्रवाह आ जाएगा ।

Udan Tashtari ने कहा…

एक जीवन दर्शन!! उम्दा अभिव्यक्ति!!

Sunil Kumar ने कहा…

दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

Anupama Tripathi ने कहा…

शांत ह्रदय भाव -
अति सुंदर प्रस्तुति -
बधाई

kshama ने कहा…

Wah...kitni anoothi ichha hai!Sabne ant me matime hi mil jana hai...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत सुंदर विचार अनामिका जी .....!!

माटी कहे कुम्हार से
तू क्या रौंदे मोहे
इक दिन ऐसा होइगा
मैं रौंदूंगी तोहे ....

मिटटी से बने हम इक दिन इसी मिटटी में मिल जायेंगे ....

फिर भी इसी मिटटी के लिए लड़ते भी हैं ....

किस घर में जमीन के लिए भाइयों में विरोध नहीं होता ....?

मनोज कुमार ने कहा…

गहरे विचारों से परिपूर्ण इस कविता में आपने जीवन दर्शन समेट लिया है।
चित्र अद्भुत है!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति ... माटी से जन्म लेना और उसमें मिल जाना ही सार्थक जीवन है ... अच्छी प्रस्तुति है ...

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut gahri baat kahi hai...
maati se bana shareer maati mein hi mil jaana hai..

sundar bhavbhivyakti..

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बहुत बढिया प्रस्तुति... जिस मिट्टी से बना सरीर है, उससे तो कीमती दुनिया का कोई धातु या द्र्व्य नहीं हो सकता..बहुत महान विचार !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर भावों से रची रचना.....प्रारंभ में सम्वादात्मकता में और निखार लाने से इसके काव्य की लय और गति और सुन्दर हो जाती ....

जीवन दर्शन को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करती हुई एक अच्छी रचना ..

शरद कोकास ने कहा…

इस मिथक मे ही सही लेकिन यही सच है ।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

वाह! वाह! वाह!
तो आपने रूहानियत को अपना ही लिया!
साधारण शब्दों में गूढ़ बात!
और मैं तो दाल-चावल के चक्कर में ही लगा हूँ....
-------------------------
इट्स टफ टू बी ए बैचलर!

Sadhana Vaid ने कहा…

"माटी ही ओढन, माटी बिछावन, माटी का तन बन जाएगा
जब माटी में तू मिल जायेगा !" दार्शनिकता के रंग में रंगी एक बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

राजकुमार ग्वालानी ने कहा…

अच्छे विचार-अच्छी रचना
आपने की सुंदर रचना

वाणी गीत ने कहा…

माटी का रूप माटी की काया मिल जाना है एक दिन माटी में ही
यथार्थपरक कविता !

रचना दीक्षित ने कहा…

आज तो जीवन का यथार्थ माटी का रूप ले आया है बेमिसाल. समझ ये नहीं आता कि माँ या माटी या दोनों.एक प्रारंभ दूसरा अंत या दोनों ही प्रारंभ ?????????

रंजू भाटिया ने कहा…

सच्ची अच्छी रचना पसंद आई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

दार्शनिक भावों से भरी यह कविता शैलीगत - कसौटी पर भी खरी उतरती दिखती है .
एक सुंदर रचना के आपको हार्दिक बधाई.

राजकुमार सोनी ने कहा…

इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल
माटी का सम्मान किया आपने.
माटी की महिमा अपार है.

निर्मला कपिला ने कहा…

माटी से जन्मे सारे धातु
माटी से किसी को बैर नहीं.
लड़ते, जलते, टूटते, कटते
करबद्ध हो जाते समक्ष खड़े..
अंततः सब मिट्टी बन जाते
पंचतत्व भी मिलें माटी में.
जीवन दर्शन का इस से अच्छा रूप क्या होगा। बहुत सुन्दर लगी रचना बधाई

The Straight path ने कहा…

सुन्दर भावों अच्छी रचना

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Wah kya baat hai..

Maati ka na mol bhale par..
Fir bhi maati ka hai mol..
Koyala, heera, sona, loha..
Maati main hote anmol..

Sundar kavita..

Deepak

रवि धवन ने कहा…

बेहद सुंदर रचना। ह्रदय तक पहुंचती है।

Dr.Ajmal Khan ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति,खूबसूरत रचना.......

Girish Kumar Billore ने कहा…

आध्यातमिक भाव भूमि पर लिखतीं हैं आप वाह क्या बात है

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बेहतरीन रचना है...माटी से जन्में और माटी में मिलन की अनूठी दास्तान...
नीरज

बेनामी ने कहा…

wah ji badi baat
narad ji ke saath
kah diya bana do mitti
par hai chahat kitti
sujha ek majaak hai mujhko
maf karna pahli baar me hi hai jo
kahi kavita apni thati ki
aap kab na thi maati ki
duniya saari banti maati se
charan raj tabhi to pujate

शोभना चौरे ने कहा…

bahut sundar rchna bbeer ki vani ko sarthk kar diya .

आचार्य उदय ने कहा…

सुन्दर लेखन।

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

bahut sundar rachana ..maati ko maati mila diya apne ..ati sundar . badhaayi .

sanu shukla ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

अंततः सब मिट्टी बन जाते
पंचतत्व भी मिलें माटी में.
हे देव ऋषि यही उत्तम है
मुझको दे दो माटी रूप.
मंद मंद मुस्काते नारद
तथास्तु कह, कर गए गमन.
स्वप्न सच हो गया मेरा
अंत मिलन है माटी रूप
.......ये कविता दिल को छू गई
वाक़ई....इंसान की हक़ीक़त यही है.

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

http://kuhaasemenkhotinsubahen.blogspot.com स्त्री- देह का सच isako padhkar apani amulya tippani den

अजय कुमार ने कहा…

दार्शनिकता पूर्ण रचना ।

RAJWANT RAJ ने कहा…

jo manga shi manga
sch khu to himmt se manga .
excellent!

Aruna Kapoor ने कहा…

अति सुंदर रचना!...माटी का देह ही ईश्वर की तरफ से,मनुष्य के लिए श्रेष्ठ वरदान है!...

Shah Nawaz ने कहा…

बेहद खूबसूरत! बहुत खूब!

Ashk ने कहा…

सुंदर !

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

अनामिका जी ..सुंदर भावपूर्ण रचना नारद संवाद बहुत अच्छा लगा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

अद्भुत ! अति सुन्दर ! जितनी तारीफ़ की जाये कम है !