Wednesday, 28 July 2010

मैं और मेरी तन्हाई..
















मैं और मेरी तन्हाई..

कब से फैले हैं ..
मन-आंगन में..
बातें करते हैं ....

क्यों तन्हाई तुम रोज़
चली आती हो..
मेरे आँगन में..
बिन बुलाये - --
मेहमान की तरह..!!

रोज़ एक टीस लेकर आती हो..
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर
बैठ जाती हो...?

मैं और मेरी तन्हाई..
यूं ही बातें करते हैं ..!

मैं दूर जाना चाहती हूँ तुमसे..
मैं हर रिश्ता तोड़ देना चाहती हूँ तुमसे..
मैं नही चाहती तुम्हें...!

कभी कभी तो भरी महफिल में भी
तुम मुझे आ सताती हो..
क्यों नही जाती तुम..
क्यों नही छोडती मेरा पीछा तुम..?

मैं और मेरी तन्हाई..
यूं ही बातें करते हैं ..!!

देर रात तक मेरे संग
मेरे सिरहाने लग...
मुझसे गल-बहिया डाल..
साथ सोयी रहती हो..

देर रात तक ...
आँखों में बसी रहती हो..
अथाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुम्हारा
नज़र भी नही आता..
जहाँ पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..

लील रही हो तुम....
मेरी जिंदगी को
दिन-रत..और रात-दिन
मै खामोश...
पर कटे पंछी की तरह ..
बेबस बैचैन सी..
इस जिंदगी की डाल पर बैठी
मूक सी
तुम्हें निहारती रह जाती हूँ ..
कुछ नहीं कर पाती इसके आलावा..

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..

सारी खुशिया तुम रोज़..
हर रोज़...
छीने जा रही हो मुझसे..
क्यों.....
आख़िर क्यों????

चंद पलों की हंसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..

घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं .

62 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

तन्हाई कभी पीछा नही छोड़ती है...कभी कभी तो भीड़में भी तन्हाई साथ रहती है..सुंदर रचना बधाई

Avinash Chandra said...

घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!

hmm..hmm..hmm.. kya bolun?

kshama said...

देर रात तक ...
आँखों में बसी रहती हो..
अथाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुम्हारा
नज़र भी नही आता..
जहाँ पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..
Ye tanhaaiyaan aur khamoshiyan...bahut kuchh bol rahee hain...

मनोज कुमार said...

एक-एक हर्फ़ जो इस नज़्म में ताक रहे हैं वे अपनी तर्ज़-ए-बयां से तन्हाई.. के विकट-प्रकट यथार्थ को सामने लाते हैं।

हरीश कुमार तेवतिया said...

अच्छी रचना है

हरीश कुमार तेवतिया said...

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं

बहुत अच्छी है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

संवाद युक्त अच्छी रचना....कोई तो साथ है भले ही तन्हाई ही सही ....
अचानक ही तन्हाई बोली ---
बहुत कह लिया
तुमने
और मैंने सुन लिया ...
मैं तब तक
साथ निभाउंगी
जब तक तुम
हो तन्हा

रंजू भाटिया said...

ज़िन्दगी के एक सच की तरह है यह रचना अक्सर तन्हाई और हम ही बाते करते रह जाते हैं ..बहुत पसंद आई आपकी यह रचना मीना कुमारी पर जल्द ही और लिखूंगी शुक्रिया

सदा said...

चंद पलों की हंसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..।

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, गहरे भाव लिये हुये ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

संजय भास्‍कर said...

ज़िन्दगी के एक सच की तरह है यह रचना ....

vandana gupta said...

tanhaiyon ka to choli daman ka sath hota hai aur unke bina jeena bhi to ek sazaa ban jata hai.

अनुभूति said...

bas tanhaai to apni hoti hain
sundar rachna
badhyi

प्रवीण पाण्डेय said...

आप कहाँ तनहा रहती हैं। आप की तनहाई तो आप से कितना बतिया लेती है। हमारी तनहाई आती है, न कुछ कहती है न कहने देती है।

रश्मि प्रभा... said...

इस तन्हाई से बातें बन्द कीजिये, वरना तन्हा मन क्या करेगा ?

कुमार राधारमण said...

आध्यात्मिक अर्थों में,तनहाई शुभ है क्योंकि यही स्वयं को जानने का अवसर देता है। भीड़(माहौल का हो या फिर विचारों का) तो सहज उपलब्ध है।

arvind said...

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं .
...dil ko chhu gayee.

Deepak Shukla said...

नमस्कार जी...

तन्हाई तो संग है तेरे...
बातें करती रहती है...
तुम ही तो कहती हो सब कुछ..
तन्हाई न कहती है...

वफ़ा निभाती तुझसे अपनी...
रहती संग है दिन और रात...
करती जितना प्यार वो तुमसे...
तुम भी उस से करो तो प्यार...

मौन मुखर हो उठेगा तेरा..
हंसी रहेगी हरदम पास...
करके तो देखो तुम आखिर...
तन्हाई पर तुम विश्वास...

हमेशा की तरह सुन्दर अभिव्यक्ति...

दीपक....

निर्मला कपिला said...

मुझे तो तन्हाई इसी लिये सब से अच्छी दोस्त लगती है कि मै उससे दिल खोल कर बक़तें कर सकती हूँ। बहुत अच्छी लगी रचना बधाई

Shah Nawaz said...

बेहतरीन रचना...... बहुत खूब!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपने तो निःशब्द कर दिया...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अनामिका जी, आपकी तनहाई की दास्ताँ पढकर अभिभूत हूँ।
--------
सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।

दीपक 'मशाल' said...

वाह.. एक नया रूप देदिया आपने उस गीत को.. बढ़िया कविता..

चैन सिंह शेखावत said...

tanhai....
har insaan ke man me kahin n kahin dubki hoti h...aapne sateek abhivyakti di h..

राजेश उत्‍साही said...

तन्‍हाई का क्‍या है
वह तो रहती ही तन्‍हा है
आप तो उससे बातें न करें
बहुत कुछ है आसपास
उसे देखें,सुनें,गुनें
और अपने ख्‍याब बुनें।

nonsense times said...
This comment has been removed by the author.
ajay saxena said...

बहुत शानदार....
आपकी रचना पढ कर एक गजल याद आ गई-
दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आती है,
शाम ढले इस सुने घर में मेला लगता है

कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो,
शबनम का कतरा जिनको दरिया लगता है

किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीशमहल में एक एक चेहरा अपना लगता है

ajay saxena said...

मैंने जो गजल लिख भेजी है वह किसने लिखी है नहीं मालुम..पर पंकज उधास जी ने गायी है...आपने जरूर सुनी होगी

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut hi khoobsurat kavita likhi hai...
acchi lagi hai..

Mithilesh dubey said...

oh, dil me utar gayi aapki rachna, padhne matra se laga ki aapne ese dub kar likha hai, bahut khub.......

Sunil Kumar said...

सारगर्भित रचना बधाई

अजय कुमार said...

जब कोई साथ नहीं होता तो तन्हाई साथ निभाती है ।

अजय कुमार झा said...

बहुत ही सुंदर रचना , और बहुत ही सुंदर भाव

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बढिया रचना....मन को भाई!
आभार्!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कभी कभी तो भरी महफिल में भी....
तुम मुझे आ सताती हो..................
क्यों नही जाती तुम.......................
क्यों नही छोडती मेरा पीछा तुम.......

महफ़िल में तन्हाई के घेरने के ताने-बाने वाली
ये पंक्तियां तो रचना की जान ही बन गईं....
बहुत बहुत बधाई.

K.P.Chauhan said...

aapne tanhaai kaa ati rochak , awarneey hrdeey-sprshi varnan prastut kiyaa hai ,ishwar aapko ati vidvataa pradaan karen

Ra said...

अनामिका जी ,,,,,बहुत सुन्दर रचना है ,,,,,!!! कुछ पंक्तिया तो लाजवाब है ,,शुरुआत से अंत तक सब कुछ सार्थक ,,, कुछ लम्बी जरुर है ,,,परन्तु विषय से जरी भी नहीं भटकी ये रचना ,,वाह .!!!.../ पिछले कुछ दिनों ब्लॉग जगत से दूर रहा ,,,,समय निकालकर पिछली रचनाये भी पढता हूँ ...!!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अनामिका बहन! एगो बात बहुत दिन से कहना चाह रहे थे... सोचे आपको कईसा लगेगा. आज कह देते हैं. आपका कबिता का भाव हर बार के तरह उदास है, वर्नन एकदम निर्बाध… लेकिन एक बात आपका कबिता में हमेसा खटकता है..हिंदी के साथ उर्दू सब्द का प्रयोग अऊर उर्दू के साथ हिंदी का..जैसे नीचे का लाइन में
“रोज़ एक टीस लेकर आती हो..
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर”
‘चहु ओर मन ओ मस्तिष्क’ के जगह पर “चारो ओर दिलोदिमाग में” लिखने से भी न भाव में कोई अंतर होता है ना बहर में. क्योंकि इसके पहले अऊर बाद में उर्दू का सब्द है, इसलिए!

जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..
एहाँ पर बस रिश्तों से मूक के जगह पर मुक्त होना चाहिए, अईसा लगता है. टाइपिंग का असुद्धि भी हो सकता है.
बहुत सुंदर रचना!!

अनामिका की सदायें ...... said...

चला बिहारी ब्लोग्गर बनने जी...(माफ कीजियेगा नाम आपका नहीं जानती)
सच कहूँ तो आपकी टिपण्णी का इंतज़ार था लेकिन ये भी विचार उठ रहे थे मन में की शायद आप आज टिपण्णी नहीं देंगे..क्युकी 'आप सोचेंगे की कह कह कर इनको थक गया हूँ की उदास वाला लिखने की बजाये कुछ हंसी वाला लिखिए, लेकिन ये लिखती ही नहीं, सो अब मैं कुछ नहीं लिखूंगा' (ऐसे मन में विचार आ रहे थे). लेकिन बहुत खुशी हुई आपकी टिपण्णी देख कर.और मन की दुविधा भी हट गयी.
आपने उर्दू वाले शब्द और 'चहू ओर मन ओ मस्तिष्क ' की जगह 'चारो ओर दिलोदिमाग में'के प्रयोग का जो बताया मैं सहमत हूँ आपकी बात से, ये भी ठीक रहता.
दूसरा आपने जहाँ रिश्तों के मूक की जगह मुक्त होने का भाव लिखा वो मेरी बात कहने के मायने बदल रहा है क्युकी मूक और मुक्त में फर्क है जो की मैं रिश्तों से मुक्ति की बात नहीं वरन रिश्तों से दूरी की बात करती हूँ.
लेकिन आपने इतने अच्छे सुझाव दिए मुझे बहुत खुशी हुई. और आगे से ध्यान रखूंगी की हिंदी के साथ उर्दू का प्रयोग कम हो और यथा संभव शब्दों का उचित प्रयोग हो.
और हाँ किसी दिन आपकी हंसी पर लिखने वाली बात जरूर पूरी करुँगी.
बहुत बहुत आभारी हूँ ...आगे भी इंतज़ार रहेगा.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

अनामिका जी
जिन्दगी की हकीकत बयां कर दी है आपने .........। तन्हाई ही शायद सच्चा साथी होती है जो कभी साथ नहीं छोड़ती..............जो हमको सुनती भी है और बहुत कुछ सुनाती भी है.........

Ra said...

'चला बिहारी ब्लोग्गर बनने जी'... की बात से सहमत हूँ ,,,इस संबंध में मैंने भी आपसे एक-दो शब्दों के बारे कुछ कहा था ,,,पर अधिक कहने की हिम्मत नहीं कर पाया ,आपसे छोटा जो हूँ ,,,आपकी रचनाएँ हमें अच्छी लगाती है ,,,इसलिए गौर से पढ़ते है तभी खूबियाँ नज़र आती है ,,,मैं खुद कई रचनाओं को बार-बार पढता हूँ ,,,कुछ थोड़ा भी कम अच्छा लगे तो उसके बारे में जिक्र करता हूँ ...तारीफ़ किसी की भी की जा सकती है ,,परन्तु कमियाँ उन्हें ही बता सकते है जो दोस्त मन के करीब होते है ,,,यह ब्लॉग जगत एक परिवार की तरह है जहाँ हमरी प्रंशसा और निंदा दोनों हमें एक दुसरे से जोड़ती है ,,,सुन्दर रचना में एक शब्द भी अगर उचित ना हो ..तो सृजन 'चाँद में दाग भी' की तरह लगता है ,,बस यही कहना था ...अगली पोस्ट का इन्तजार है हमेशा की तरह

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

Sadhana Vaid said...

तन्हाई से इतनी दोस्ती अच्छी नहीं लगती ! अगर आपको उसीसे बातें करने की आदत लग गयी तो हमारा क्या होगा ? आपकी ही तरह तनहा और भी कई हैं ! हमें तो आपका ही सहारा है ! कम से कम जब कभी तन्हाई से फुर्सत मिल जाती है तो हमसे भी बोंल बतिया लेती हैं ! लेकिन अगर यह दोस्ती और प्रगाढ़ हो गयी तो हम तो खतरे में पड़ जायेंगे ना ! इसलिए जल्दी ही इससे अपना पिण्ड छुडा लें यही ठीक रहेगा ! वैसे रचना बहुत ही भावपूर्ण और समग्र है ! बहुत बहुत बधाई !

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहन अनामिका,
हमरा सुझाव पर आपका बिचार सुनकर मन कुछ हल्का हुआ... भासा का उचित मेल उचित असर भी पैदा करता है... अऊर ई बात मन में मत रखिए कि हम टिप्पणी नहीं करेंगे...हम तो एगो फरमाईस किए थे.. आप अच्छी कवयित्री हैं तो हर भाव अऊर विधा में लिखेंगी ही... अऊर एक इलजाम आप हमरे ऊपर लगाई हैं, जो उचित नहीं है... हमरा नाम, पता, खानदान का नाम, सब लिखा है हमरा परिचय में..एक बार ध्यान से देखिए! धन्यवाद पुनः!!

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आप और आपकी तन्हाई बहुत प्यारी बातें करते हैं।
…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।

सुनील गज्जाणी said...

कभी कभी तो भरी महफिल में भी
तुम मुझे आ सताती हो..
क्यों नही जाती तुम..
क्यों नही छोडती मेरा पीछा तुम..?
अनामिका जी ,
नमस्कार !
अच्छी अबिव्यक्ति प्रर्दान कि है आप ने तन्हाई कि आप कि नज़र एक पंक्ति करना चाहुगा
'' साया भी मेरा पीछा नहीं छोड़ता जब मैं तन्हाई चाहू गर कोई साथ ना होतो साया ही मेरा मन बहलाता है कभी कभी "'
सादर

Parul kanani said...

hamesha ki tarah..awesome!

शकील समर said...

Sundar rachna....badhai.

मनोज भारती said...

तन्हाई के साथ आपकी यह दोस्ती यूँ ही बरकरार रहे ...
ताकि जिंदगी अपना अर्थ पा सके ।

राज भाटिय़ा said...

वाह बहुत सुंदर रचना,
धन्यवाद

Dev said...

अति उत्तम कविता ....

Ravi Rajbhar said...

Bahut khoob mujhe khusi hai...aap fbd.ka naam roshan kar rahin hai!

kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!

www.ravirajbhar.blogspot.com

vijay kumar sappatti said...

waah anamika ji , bahut sundar,
tanhaayi ko aapne itne acche bimbo ke dwara sanwaar diya hai ki , ab kuch aur kahne ke liye nahi bachta hai ...waah waah waah
badhayi kabool kare.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

यह कविता मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं फिर आ गया... पढने...

शरद कोकास said...

"मैं और मेरी तनहाई अक्सर आपस में बाते करते हैं "यह मेरा पसन्दीदा बिम्ब है .. इस बिम्ब पर कितना भी लिखा जाये कम लगता है ,आखिर बातों का क्या ..वे कभी खत्म होती है.. सो करते रहिये ।

Anonymous said...

kaafi gahra likhti hain
dhanyvad

रचना दीक्षित said...

चंद पलों की हंसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..


घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!

मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं
माफ़ी चाहूंगी अनामिका जाने कैसे तुम्हारी इस पोस्ट पर कमेन्ट नहीं लिख पाई आज देखा तो अफ़सोस हुआ की इतनी अच्छी कविता देर से पढ़ पाई

Anonymous said...

bahut khoob, very well written.


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देवेन्द्र पाण्डेय said...

यप पोस्ट टीपों के कारण भी बहुत अच्छी लगी..मैं और मेरी तन्हाई।

Unknown said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति