कब से फैले हैं ..
मन-आंगन में..
बातें करते हैं ....
क्यों तन्हाई तुम रोज़
चली आती हो..
मेरे आँगन में..
बिन बुलाये - --
बिन बुलाये - --
मेहमान की तरह..!!
रोज़ एक टीस लेकर आती हो..
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर
बैठ जाती हो...?
मैं और मेरी तन्हाई..
यूं ही बातें करते हैं ..!
मैं दूर जाना चाहती हूँ तुमसे..
मैं हर रिश्ता तोड़ देना चाहती हूँ तुमसे..
मैं नही चाहती तुम्हें...!
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर
बैठ जाती हो...?
मैं और मेरी तन्हाई..
यूं ही बातें करते हैं ..!
मैं दूर जाना चाहती हूँ तुमसे..
मैं हर रिश्ता तोड़ देना चाहती हूँ तुमसे..
मैं नही चाहती तुम्हें...!
कभी कभी तो भरी महफिल में भी
तुम मुझे आ सताती हो..
क्यों नही जाती तुम..
क्यों नही छोडती मेरा पीछा तुम..?
मैं और मेरी तन्हाई..
यूं ही बातें करते हैं ..!!
देर रात तक मेरे संग
मेरे सिरहाने लग...
मुझसे गल-बहिया डाल..
साथ सोयी रहती हो..
देर रात तक ...
आँखों में बसी रहती हो..
अथाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुम्हारा
नज़र भी नही आता..
जहाँ पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..
लील रही हो तुम....
मेरी जिंदगी को
अथाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुम्हारा
नज़र भी नही आता..
जहाँ पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..
लील रही हो तुम....
मेरी जिंदगी को
दिन-रत..और रात-दिन
मै खामोश...
मै खामोश...
पर कटे पंछी की तरह ..
बेबस बैचैन सी..
इस जिंदगी की डाल पर बैठी
मूक सी
बेबस बैचैन सी..
इस जिंदगी की डाल पर बैठी
मूक सी
तुम्हें निहारती रह जाती हूँ ..
कुछ नहीं कर पाती इसके आलावा..
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..
सारी खुशिया तुम रोज़..
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..
सारी खुशिया तुम रोज़..
हर रोज़...
छीने जा रही हो मुझसे..
क्यों.....
छीने जा रही हो मुझसे..
क्यों.....
आख़िर क्यों????
चंद पलों की हंसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..
घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं .
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं .
62 टिप्पणियां:
तन्हाई कभी पीछा नही छोड़ती है...कभी कभी तो भीड़में भी तन्हाई साथ रहती है..सुंदर रचना बधाई
घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!
hmm..hmm..hmm.. kya bolun?
देर रात तक ...
आँखों में बसी रहती हो..
अथाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुम्हारा
नज़र भी नही आता..
जहाँ पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं ..
Ye tanhaaiyaan aur khamoshiyan...bahut kuchh bol rahee hain...
एक-एक हर्फ़ जो इस नज़्म में ताक रहे हैं वे अपनी तर्ज़-ए-बयां से तन्हाई.. के विकट-प्रकट यथार्थ को सामने लाते हैं।
अच्छी रचना है
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं
बहुत अच्छी है
संवाद युक्त अच्छी रचना....कोई तो साथ है भले ही तन्हाई ही सही ....
अचानक ही तन्हाई बोली ---
बहुत कह लिया
तुमने
और मैंने सुन लिया ...
मैं तब तक
साथ निभाउंगी
जब तक तुम
हो तन्हा
ज़िन्दगी के एक सच की तरह है यह रचना अक्सर तन्हाई और हम ही बाते करते रह जाते हैं ..बहुत पसंद आई आपकी यह रचना मीना कुमारी पर जल्द ही और लिखूंगी शुक्रिया
चंद पलों की हंसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, गहरे भाव लिये हुये ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ज़िन्दगी के एक सच की तरह है यह रचना ....
tanhaiyon ka to choli daman ka sath hota hai aur unke bina jeena bhi to ek sazaa ban jata hai.
bas tanhaai to apni hoti hain
sundar rachna
badhyi
आप कहाँ तनहा रहती हैं। आप की तनहाई तो आप से कितना बतिया लेती है। हमारी तनहाई आती है, न कुछ कहती है न कहने देती है।
इस तन्हाई से बातें बन्द कीजिये, वरना तन्हा मन क्या करेगा ?
आध्यात्मिक अर्थों में,तनहाई शुभ है क्योंकि यही स्वयं को जानने का अवसर देता है। भीड़(माहौल का हो या फिर विचारों का) तो सहज उपलब्ध है।
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं .
...dil ko chhu gayee.
नमस्कार जी...
तन्हाई तो संग है तेरे...
बातें करती रहती है...
तुम ही तो कहती हो सब कुछ..
तन्हाई न कहती है...
वफ़ा निभाती तुझसे अपनी...
रहती संग है दिन और रात...
करती जितना प्यार वो तुमसे...
तुम भी उस से करो तो प्यार...
मौन मुखर हो उठेगा तेरा..
हंसी रहेगी हरदम पास...
करके तो देखो तुम आखिर...
तन्हाई पर तुम विश्वास...
हमेशा की तरह सुन्दर अभिव्यक्ति...
दीपक....
मुझे तो तन्हाई इसी लिये सब से अच्छी दोस्त लगती है कि मै उससे दिल खोल कर बक़तें कर सकती हूँ। बहुत अच्छी लगी रचना बधाई
बेहतरीन रचना...... बहुत खूब!
आपने तो निःशब्द कर दिया...
अनामिका जी, आपकी तनहाई की दास्ताँ पढकर अभिभूत हूँ।
--------
सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।
वाह.. एक नया रूप देदिया आपने उस गीत को.. बढ़िया कविता..
tanhai....
har insaan ke man me kahin n kahin dubki hoti h...aapne sateek abhivyakti di h..
तन्हाई का क्या है
वह तो रहती ही तन्हा है
आप तो उससे बातें न करें
बहुत कुछ है आसपास
उसे देखें,सुनें,गुनें
और अपने ख्याब बुनें।
बहुत शानदार....
आपकी रचना पढ कर एक गजल याद आ गई-
दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है
दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आती है,
शाम ढले इस सुने घर में मेला लगता है
कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो,
शबनम का कतरा जिनको दरिया लगता है
किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीशमहल में एक एक चेहरा अपना लगता है
मैंने जो गजल लिख भेजी है वह किसने लिखी है नहीं मालुम..पर पंकज उधास जी ने गायी है...आपने जरूर सुनी होगी
bahut hi khoobsurat kavita likhi hai...
acchi lagi hai..
oh, dil me utar gayi aapki rachna, padhne matra se laga ki aapne ese dub kar likha hai, bahut khub.......
सारगर्भित रचना बधाई
जब कोई साथ नहीं होता तो तन्हाई साथ निभाती है ।
बहुत ही सुंदर रचना , और बहुत ही सुंदर भाव
बढिया रचना....मन को भाई!
आभार्!
कभी कभी तो भरी महफिल में भी....
तुम मुझे आ सताती हो..................
क्यों नही जाती तुम.......................
क्यों नही छोडती मेरा पीछा तुम.......
महफ़िल में तन्हाई के घेरने के ताने-बाने वाली
ये पंक्तियां तो रचना की जान ही बन गईं....
बहुत बहुत बधाई.
aapne tanhaai kaa ati rochak , awarneey hrdeey-sprshi varnan prastut kiyaa hai ,ishwar aapko ati vidvataa pradaan karen
अनामिका जी ,,,,,बहुत सुन्दर रचना है ,,,,,!!! कुछ पंक्तिया तो लाजवाब है ,,शुरुआत से अंत तक सब कुछ सार्थक ,,, कुछ लम्बी जरुर है ,,,परन्तु विषय से जरी भी नहीं भटकी ये रचना ,,वाह .!!!.../ पिछले कुछ दिनों ब्लॉग जगत से दूर रहा ,,,,समय निकालकर पिछली रचनाये भी पढता हूँ ...!!!
अनामिका बहन! एगो बात बहुत दिन से कहना चाह रहे थे... सोचे आपको कईसा लगेगा. आज कह देते हैं. आपका कबिता का भाव हर बार के तरह उदास है, वर्नन एकदम निर्बाध… लेकिन एक बात आपका कबिता में हमेसा खटकता है..हिंदी के साथ उर्दू सब्द का प्रयोग अऊर उर्दू के साथ हिंदी का..जैसे नीचे का लाइन में
“रोज़ एक टीस लेकर आती हो..
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर”
‘चहु ओर मन ओ मस्तिष्क’ के जगह पर “चारो ओर दिलोदिमाग में” लिखने से भी न भाव में कोई अंतर होता है ना बहर में. क्योंकि इसके पहले अऊर बाद में उर्दू का सब्द है, इसलिए!
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..
एहाँ पर बस रिश्तों से मूक के जगह पर मुक्त होना चाहिए, अईसा लगता है. टाइपिंग का असुद्धि भी हो सकता है.
बहुत सुंदर रचना!!
चला बिहारी ब्लोग्गर बनने जी...(माफ कीजियेगा नाम आपका नहीं जानती)
सच कहूँ तो आपकी टिपण्णी का इंतज़ार था लेकिन ये भी विचार उठ रहे थे मन में की शायद आप आज टिपण्णी नहीं देंगे..क्युकी 'आप सोचेंगे की कह कह कर इनको थक गया हूँ की उदास वाला लिखने की बजाये कुछ हंसी वाला लिखिए, लेकिन ये लिखती ही नहीं, सो अब मैं कुछ नहीं लिखूंगा' (ऐसे मन में विचार आ रहे थे). लेकिन बहुत खुशी हुई आपकी टिपण्णी देख कर.और मन की दुविधा भी हट गयी.
आपने उर्दू वाले शब्द और 'चहू ओर मन ओ मस्तिष्क ' की जगह 'चारो ओर दिलोदिमाग में'के प्रयोग का जो बताया मैं सहमत हूँ आपकी बात से, ये भी ठीक रहता.
दूसरा आपने जहाँ रिश्तों के मूक की जगह मुक्त होने का भाव लिखा वो मेरी बात कहने के मायने बदल रहा है क्युकी मूक और मुक्त में फर्क है जो की मैं रिश्तों से मुक्ति की बात नहीं वरन रिश्तों से दूरी की बात करती हूँ.
लेकिन आपने इतने अच्छे सुझाव दिए मुझे बहुत खुशी हुई. और आगे से ध्यान रखूंगी की हिंदी के साथ उर्दू का प्रयोग कम हो और यथा संभव शब्दों का उचित प्रयोग हो.
और हाँ किसी दिन आपकी हंसी पर लिखने वाली बात जरूर पूरी करुँगी.
बहुत बहुत आभारी हूँ ...आगे भी इंतज़ार रहेगा.
अनामिका जी
जिन्दगी की हकीकत बयां कर दी है आपने .........। तन्हाई ही शायद सच्चा साथी होती है जो कभी साथ नहीं छोड़ती..............जो हमको सुनती भी है और बहुत कुछ सुनाती भी है.........
'चला बिहारी ब्लोग्गर बनने जी'... की बात से सहमत हूँ ,,,इस संबंध में मैंने भी आपसे एक-दो शब्दों के बारे कुछ कहा था ,,,पर अधिक कहने की हिम्मत नहीं कर पाया ,आपसे छोटा जो हूँ ,,,आपकी रचनाएँ हमें अच्छी लगाती है ,,,इसलिए गौर से पढ़ते है तभी खूबियाँ नज़र आती है ,,,मैं खुद कई रचनाओं को बार-बार पढता हूँ ,,,कुछ थोड़ा भी कम अच्छा लगे तो उसके बारे में जिक्र करता हूँ ...तारीफ़ किसी की भी की जा सकती है ,,परन्तु कमियाँ उन्हें ही बता सकते है जो दोस्त मन के करीब होते है ,,,यह ब्लॉग जगत एक परिवार की तरह है जहाँ हमरी प्रंशसा और निंदा दोनों हमें एक दुसरे से जोड़ती है ,,,सुन्दर रचना में एक शब्द भी अगर उचित ना हो ..तो सृजन 'चाँद में दाग भी' की तरह लगता है ,,बस यही कहना था ...अगली पोस्ट का इन्तजार है हमेशा की तरह
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
तन्हाई से इतनी दोस्ती अच्छी नहीं लगती ! अगर आपको उसीसे बातें करने की आदत लग गयी तो हमारा क्या होगा ? आपकी ही तरह तनहा और भी कई हैं ! हमें तो आपका ही सहारा है ! कम से कम जब कभी तन्हाई से फुर्सत मिल जाती है तो हमसे भी बोंल बतिया लेती हैं ! लेकिन अगर यह दोस्ती और प्रगाढ़ हो गयी तो हम तो खतरे में पड़ जायेंगे ना ! इसलिए जल्दी ही इससे अपना पिण्ड छुडा लें यही ठीक रहेगा ! वैसे रचना बहुत ही भावपूर्ण और समग्र है ! बहुत बहुत बधाई !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहन अनामिका,
हमरा सुझाव पर आपका बिचार सुनकर मन कुछ हल्का हुआ... भासा का उचित मेल उचित असर भी पैदा करता है... अऊर ई बात मन में मत रखिए कि हम टिप्पणी नहीं करेंगे...हम तो एगो फरमाईस किए थे.. आप अच्छी कवयित्री हैं तो हर भाव अऊर विधा में लिखेंगी ही... अऊर एक इलजाम आप हमरे ऊपर लगाई हैं, जो उचित नहीं है... हमरा नाम, पता, खानदान का नाम, सब लिखा है हमरा परिचय में..एक बार ध्यान से देखिए! धन्यवाद पुनः!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
आप और आपकी तन्हाई बहुत प्यारी बातें करते हैं।
…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
कभी कभी तो भरी महफिल में भी
तुम मुझे आ सताती हो..
क्यों नही जाती तुम..
क्यों नही छोडती मेरा पीछा तुम..?
अनामिका जी ,
नमस्कार !
अच्छी अबिव्यक्ति प्रर्दान कि है आप ने तन्हाई कि आप कि नज़र एक पंक्ति करना चाहुगा
'' साया भी मेरा पीछा नहीं छोड़ता जब मैं तन्हाई चाहू गर कोई साथ ना होतो साया ही मेरा मन बहलाता है कभी कभी "'
सादर
hamesha ki tarah..awesome!
Sundar rachna....badhai.
तन्हाई के साथ आपकी यह दोस्ती यूँ ही बरकरार रहे ...
ताकि जिंदगी अपना अर्थ पा सके ।
वाह बहुत सुंदर रचना,
धन्यवाद
अति उत्तम कविता ....
Bahut khoob mujhe khusi hai...aap fbd.ka naam roshan kar rahin hai!
kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!
www.ravirajbhar.blogspot.com
waah anamika ji , bahut sundar,
tanhaayi ko aapne itne acche bimbo ke dwara sanwaar diya hai ki , ab kuch aur kahne ke liye nahi bachta hai ...waah waah waah
badhayi kabool kare.
यह कविता मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं फिर आ गया... पढने...
"मैं और मेरी तनहाई अक्सर आपस में बाते करते हैं "यह मेरा पसन्दीदा बिम्ब है .. इस बिम्ब पर कितना भी लिखा जाये कम लगता है ,आखिर बातों का क्या ..वे कभी खत्म होती है.. सो करते रहिये ।
kaafi gahra likhti hain
dhanyvad
चंद पलों की हंसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हूँ ..
सब रिश्तो से मूक हो गई हूँ ..
घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..!
मैं और मेरी तन्हाई..
अक्सर यूं ही बातें करते हैं
माफ़ी चाहूंगी अनामिका जाने कैसे तुम्हारी इस पोस्ट पर कमेन्ट नहीं लिख पाई आज देखा तो अफ़सोस हुआ की इतनी अच्छी कविता देर से पढ़ पाई
bahut khoob, very well written.
My New Blog
यप पोस्ट टीपों के कारण भी बहुत अच्छी लगी..मैं और मेरी तन्हाई।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें