रविवार, 1 अगस्त 2010

आत्मा कहाँ जाती है ?















धीमी धीमी साँसे
चल रही हैं
मैंने कहा..
अब मुझे
उस शय्या पर लिटा दो..
जहाँ मैं चिरकाल की
नींद सो सकूँ
मुझे जाना है
अब विदा होना है .

लेकिन ये मन
इन अंतिम घड़ियों में भी
उहा-पोह में भटक रहा है
मुझे सवालों के कटघरे में
खड़ा किये हुए है
मेरे पास जवाब नहीं है
इसके सवालों का .

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?
क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती ..
जो रिश्ते इसकी याद में ..
इसके बिछोह में
खाली हो जाते हैं
अथाह विरक्तता से
भर जाते हैं ?

जीवन के हर मोड पर
इन रिश्तों को
इस आत्मा के ना होने की ..
इस आत्मा से जुड़े
इस शरीर की
कमी महसूस नहीं होती होगी ?

क्या आत्मा को
एहसास नहीं होता ..
इच्छा नहीं होती
कि वापिस लौट आये
इन्ही अपनों के बीच ?

लेकिन मैं क्या कर सकती हूँ
निरुत्तर हूँ
प्रश्नवाचक हूँ
प्रश्न-भरी निगाहें लिए
मुझे तो अब जाना ही है
इस मृत्युलोक की
जीवनावधि पूरी कर..
वहाँ की यात्रा के लिए
गमन करना है .

इस मोह-माया से
बंधन मुक्त हो
खुले आकाश में
विचरण करना है
इस नश्वर शरीर से
इस आत्मा को
अब मुक्ति पाना है .


65 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रश्न गहन है। पर जब हम आत्मा की मार मार कर जीते रहते हैं तो मरने के बाद बहुत जाकर ही छुटकारा पाती होगी हमारी आत्मा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?

नहीं जी हम नहीं बता सकते ....आप नचिकेता से मिल लें ...वो सारी कहानी बता सकते हैं ....जैसा की पुराणों में लिखा है एक वही थे जो सशरीर मृत्युलोक घूम कर आये थे....यह बात हर कोई सोचना हो शायद ....आपने कलमबद्ध किया है...आभार

kshama ने कहा…

Sach,ye sawaal shyad har kisiko chhedta rahta hoga...aakhir ham kahan se aaye..kahan jaana hai..atma kya hai..kaun jaan paya hai?

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन रचना, बहुत खूब!

कविता रावत ने कहा…

इस मोह-माया से
बंधन मुक्त हो
खुले आकाश में
विचरण करना है
इस नश्वर शरीर से
इस आत्मा को
अब मुक्ति पाना है .
..
Aatma ko ajar amar kaha gaya hai lekin jiski aatma esi janam mein trasht ho jay wah es pher ko kya samjhega?
....bahut saarthak rachna
Haardik Shubhkamnayne

मनोज कुमार ने कहा…

जीवन की नश्‍वरता को जो जान लेते हैं, वे सत्य को समझ लेते हैं। जिन्हें भी सत्य की अनुभूति हुई है, उन सबने यही कहा है कि जीवन झाग का बुलबुला है, जो इस घड़ी है, अगली घड़ी मिट जाएगा। जो इस नश्‍वर को शाश्‍वत मान लेते हैं, वे इसी शरीर में डूबते और नष्ट हो जाते हैं, लेकिन जो इसके सत्य के प्रति सजग होते हैं, वे एक ऐसे जीवन को पा लेने की शुरुआत करते हैं, जिसका कोई अंत नहीं।
आप, इस कविता को पढने के बाद लगता है, इस सत्य के प्रति सजग हैं। सचमुच ही जो जीवन का सत्य पाना चाहता है, उन्हें जीवन की यह सच्चाई जाननी ही पड़ती है। इसे समझकर वे अनुभव कर पाते हैं कि एक स्वप्न से अधिक न तो जीवन की कोई सत्ता है और न ही जीवन का सत्य।

vandana gupta ने कहा…

आत्मा तो नि:संग होती है बिना किसी आकार के ………न उसका कोई शत्रु ना मित्र ना अपना ना पराया बस गलती से इस देह को अपना मान बैठती है जिस कारण उसके बंधन मे बँध जाती है…………शाश्वत प्रश्न के साथ बेहद उम्दा प्रस्तुति।
कल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

संजय भास्‍कर ने कहा…

सचमुच ही जो जीवन का सत्य पाना चाहता है, उन्हें जीवन की यह सच्चाई जाननी ही पड़ती है

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

हर धर्म में आत्मा के स्वरूप को स्वीकार किया गया है.
और जीवन में किए गए कर्मों के आधार पर गति का उल्लेख भी है.
फिर भी ये सवाल हर दौर में उठता रहा है...विज्ञान भी जवाब जानने में लगा है.
कविता के माध्यम से यही सवाल भावनात्मक पहलू के साथ उठाने के लिए बधाई.

शारदा अरोरा ने कहा…

शायद हर मन इस सवाल से गुजरता है , शरीर की नश्वरता ...आत्मा के अजर अमर होने का विश्वास ...चोला बदलना , प्रारब्ध के अनुसार ...इस सब में अगर सत्य को शुभ को शुद्ध को पकड़ सकें तो मृत्यु का भय बहुत हद तक ख़त्म हो जाता है । अच्छी लगी आपकी रचना ।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

jo pedaa huaa he use mrnaa hogaa yeh he gita kaa gyaan , innaa ilehe raaje un yaani khudaa teri amaant thi tujhe sonp di hindu bhaaiyon ki aatmaa mrtk svrgvaasi hi khlaataa he koi bhi nrkvaasi nhin khlaata isiyen svrg men hiunki aatma jaati he muslim bhaaiyon ki khaavt he ke allaah use jnnt bkhse yaani unki aatmaa dozq men hi nhin jnnt men hi jaati he isliyen bhaayi jnnt thsaaths bhri he or nrk bikul khaali he ab to mjh gye naa bhaai aatma khaan jaati h plz mere is mzaaq ka buraa na maanna . akhtar khan akela kota rajthan

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह जी बल्ले बल्ले

राज भाटिय़ा ने कहा…

आत्मा कहां जाती है? अजी वो तो कब की मर चुकी, अगर हम लोगो मै आत्मा नाम की कोई चीज होती तो भारत के यह हाल ना होते.... यह आत्मा तो कई सदी पहले ही मर चुकी है..........

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut pyari rachna hai!
manoj kumar ji ki tippadi bhi sahi hai!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?
क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती ..
जो रिश्ते इसकी याद में ..
इसके बिछोह में
खाली हो जाते हैं
अथाह विरक्तता से
भर जाते हैं ?
kaash jaante

वाणी गीत ने कहा…

जीते जी कैसे जाना जाए और जाने के बाद जानने से क्या फायदा ...!

Sunil Kumar ने कहा…

सारगर्भित रचना बधाई

आचार्य परशुराम राय ने कहा…

Is rachana men uthaya gaya prashn sanatan hai. Sangita ji ne is sandarbh men Nachiketa ki or achchha sanket kiya hai. Sant Kabir ne apani shaili men uttar diya hai -
jal men kumbha kumbha men jal hai, bahar bhitar pani.
futa kumbha jal jal jalahi samana yah tat bujhe gyani.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मुद्दे और प्रश्न को लेकर बहुत बढ़िया लिखा है !
--
मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

रचना दीक्षित ने कहा…

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?
क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती
सवाल तो बहुत हैं पर कुछ सवालों के जवाब मिलते कहाँ है. बेहतरीन प्रस्तुती..

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आत्मा वहां जाती है
जहां से वह आती है

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

हमें कोशिश करनी चाहिये कि हम हरेक का हक़ अदा करें और किसी की हक़तल्फ़ी न करें। अपने मालिक के पास जायें तो हम उसके मुजरिम बनकर उसके सामने पेश न हों।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/08/all-is-well-anwer-jamal.html

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

bahut sundar rachanaa hai.

Arvind Mishra ने कहा…

मृत्य ही मोक्ष है -पुनरागमनम कुतः ?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

अच्छी लगी आपकी रचना ।

manu ने कहा…

जाने दिल में कैसी थी उलझनें,औ जेहन में कैसे बवाल थे
ना नजर मिला सका चारागर, इक नजर में कितने सवाल थे..

manu ने कहा…

औ ज़ेहन में कैसे ख़याल थे..

सुज्ञ ने कहा…

फ़िर वही मुक्ति बोध,फ़िर वही निर्वाण॥

बेहद सारगर्भित रचना।

ज्योति सिंह ने कहा…

yah to wahan jaane par hi gyat hoga ,magar sawal vicharniye hai .sundar rachna

मनोज कुमार ने कहा…

02.08.10 की चिट्ठा चर्चा में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरे विचार...सुन्दर रचना.

Dev ने कहा…

ये एक ऐसा सवाल जिसका जवाब इंसान अपने पुरे जीवन काल में ढूढता रहता है .........बहुत बढ़िया रचना .

Satish Saxena ने कहा…

सोचने को मजबूर करती एक अच्छी रचना ...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

मानवीय जीवन मृत्यु के संबंध में बहुत से ऐसे प्रश्न है जिसका उत्तर बड़ा मुश्किल है ...अनामिका जी आज की आपकी रचना बहुत ही बेहतरीन और सोचनीय है कि शरीर छोड़ने के बाद क्या आत्मा को मोह नही आती..आती तो ज़रूर होगी पर शायद अंतिम निर्णय तो किसी और का ही होता है..


बढ़िया रचना के लिए आभार ..

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

राज भाटिया जी ने लिखा कि आत्‍मा मर गयी है, इसी बात को आगे बढ़ाती हूँ कि शायद आत्‍मा स्‍वार्थी हो गयी है। इसलिए केवल स्‍वयं के लिए ही सोचती हैं और व्‍यक्ति के मरने के बाद भी बस स्‍वयं के लिए ही सोचकर फुर्र हो जाती है। उसे किसी भी रिश्‍ते से कोई वास्‍ता नहीं, बस जब तक यह शरीर उसके साथ है वो ही रिश्‍ता बनाए रखता है। शरीर रिश्‍ता बनाने में जुटा रहता है और आत्‍मा रिश्‍ता तोड़ने में, इसलिए जब तक शरीर है हम सब आपस में रिश्‍ता बनाए रखेंगे। रेल में खेंची गयी मोबाइल वाला फोटो तो भेजो, जिससे हम भी बता सकें कि अनामिकाजी हमारे लिए इतनी दूर से केवल दो मिनट के लिए मिलने आयी थी।

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) ने कहा…

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?
क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती ..
जो रिश्ते इसकी याद में ..
इसके बिछोह में
खाली हो जाते हैं
अथाह विरक्तता से
भर जाते हैं ?

waah.....bahut khoob, laazwaab

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bahut hi jatil prashn jiska uttar shyad aaj tak koi sahi tarah se nahi de paya hai.lekin jis tarah se aur jis sashakti karan se ise aapne prastut kiya hai vah behad hi prabhavshali hai.iske liye di se aapko dhanyvaad.
poonam

VIVEK VK JAIN ने कहा…

gahra prishna!
bahut sundar kavita.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

13 दिन भटकती है फिर 14 वें दिन से अच्छी आत्माएँ उस घर की तलाश करती है जहाँ लोग प्रेम से रहते हैं. बुरी आत्माएँ वहाँ पहुंच जाती हैं जहां लोग एक दूसरे से झगड़ते रहते हैं. जहां पती-पत्नी जितने प्रेम से रहते हैं वहाँ उतनी अच्छी आत्माएँ जन्म लेने पहुंच जाती हैं. कुछ मेरी तरह होती हैं..जीते जी बेचैन. यह सब समझने और महसूस करने की बात है. शरीर छोड़ने के बाद और अच्छी तरह समझा सकता हूँ....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अनामिका बहन,
आत्मा का कोई रिस्तेदार नहीं होता..रिस्तेदार त सरीर का होता है... कमी अखरता है सरीर का..आत्मा का नहीं..एगो हमरा पुराना सेर हैः
सफर कब ख़त्म होगा रूह का ये कौन बतलाए
ये बढ जाती है आगे, जिस्म पीछे छूट जाते हैं.

RAJWANT RAJ ने कहा…

anamika
achchha vishay umda prstuti ek jism ki trha
usme nihit bhav aatma ki trha .

kise shashvt rkhna chahogi. agr mujhse puchho to ye bhav hi hai jo sugndh ki trh kbhi mrte nhi.ha rchnaye fir nye shbd snyojn ke sath roop grhn krti hai .

Sadhana Vaid ने कहा…

बड़े ही शाश्वत प्रश्नों को बड़ी भावात्मकता के साथ उठाया है आपने अपनी रचना में ! आत्मा अजर अमर है सब जानते हैं ! लेकिन दिल का क्या किया जाए जिसे उस पर विश्वास ही नहीं जो अति सूक्ष्म है, दिखाई नहीं देती, जो बोल कर सस्वर आपकी शंकाओं का निवारण नहीं कर सकती, जिसे छू कर महसूस नहीं किया जा सकता ! शरीर कितना भी नश्वर क्यों न हो वह वक्त ज़रूरत आपके साथ खडा मिलता है इसीलिये मनुष्य को आत्मा से अधिक शरीर प्यारा होता है ! मृत्यु के बाद किसकी अजर अमर आत्मा अपनों से मिलने, उनके दुःख दूर करने के लए आती है ? फिर कोई क्यों ऐसी आत्मा पर भरोसा करे जिसकी विश्वसनीयता का कोई प्रमाण ही नहीं ! ज्ञानी ध्यानी लोग मेरे अज्ञान के लिये मुझे क्षमा करेंगे इसकी आशा तो कर ही सकती हूँ ! आपकी रचना ने मन में हलचल मचा दी है ! सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति के लिये बधाई !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

अनामिका जी
सबसे पहले तो कहूंगा कि हम आपको कहीं जाने ही नहीं देंगे ।

आत्मा कहां जाती है ? कविता के माध्यम से अच्छे चिंतन को सामने रखने के लिए आभार !

क्या आत्मा को
एहसास नहीं होता …
इच्छा नहीं होती
कि वापिस लौट आये
इन्ही अपनों के बीच ?

ऐसे प्रश्न मैं भी बचपन से मन में लिये' हूं , परंतु अनेक हक़ीक़तें जीवन के पश्चात् ही सामने आती हैं ।
बहरहाल , पुनः कहता हूं , आप आशावादी , प्रेम की , जीवन की , कविताएं लिखा करें , प्लीज़ !

शस्वरं पर भी आपका हमेशा हार्दिक स्वागत है , आइए , आते रहिए…

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

मैं थोडा सा विस्मित हूँ,
आप क्यूँ इन सब विषयों पर लिखती हैं?
नैनं छिन्दंती शास्त्रानी, नैनं दहती पावक:
ना चैनं क्लेदयन्त्यापो, ना शोश्यती मारुत:
ज़ाहिर है थेओरी आपको भी पता है....
अनुरोध है के ज़िंदगी के बारे में लिखें! ये बात और है के इस दुनिया का सबसे बड़ा सच मौत है!

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत गहराई में उतर गयी आपकी सोच और इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति कर गयी .शुभकामनाएं

मिताली ने कहा…

क्या तुम बता सकते हो
ये आत्मा कहाँ जाती है ?
क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती ..
जो रिश्ते इसकी याद में ..
इसके बिछोह में
खाली हो जाते हैं
अथाह विरक्तता से
भर जाते हैं ?


जीवन के हर मोड पर
इन रिश्तों को
इस आत्मा के ना होने की ..
इस आत्मा से जुड़े
इस शरीर की
कमी महसूस नहीं होती होगी ?


क्या आत्मा को
एहसास नहीं होता ..
इच्छा नहीं होती
कि वापिस लौट आये
इन्ही अपनों के बीच ?


अनामिका जी, ये जीवन को लेकर उठे हुए वो प्रश्न हैं जिनका उत्तर शायद ही कोई बतला पाए... इतने गंभीर प्रश्नों के भंवर को सबके सामने प्रस्तुत करने का एक अत्यंत सार-गर्भित प्रयास... यूँ ही लिखती रहें... आभार...

Avinash ने कहा…

Saagar ke paani ki ek boond se bane bulbule ke phatne ke baad uske ander ki hawa kahaan jaati hai ?

Aruna Kapoor ने कहा…

आत्मा जब शरीर छोड देती है.... वह मुक्त हो जाती है...पर कब तक?...उसे दूसरे शरीर में प्रवेश करना पड्ता है!...और यह चक्र चलता रहता है!...एक गंभीर और विचारोत्तेजक कथन आपने सामने रखा है!!...धन्यवाद!

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

ghughutibasuti ने कहा…

आत्माएँ शायद यहीं कहीं हमारे बीच रहती हैं।
अच्छी कविता है।
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

शाश्वत प्रश्न। अच्छी कविता

SATYA ने कहा…

बेहतरीन रचना.
आभार...

बेनामी ने कहा…

atma so parmaatma
kya din hoga khushiyo bhara
kya mel hoga
kaise jajbaat honge
main bahut khush hun mujhse milkar

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मन की जिज्ञासाओं के सुंदर प्रश्न खड़े किये हैं आपने .....

क्या आत्मा को
एहसास नहीं होता ..
इच्छा नहीं होती
कि वापिस लौट आये
इन्ही अपनों के बीच ?

पर इसका एहसास तो मृत्यु के बाद ही चल सकता है की आत्मा की क्या इच्छा होती है ....
या किसी आत्मा से पूछा जाये ......
बहरहाल..... एक मृत्यु आसन्न व्यक्ति की अंतिम जिज्ञासाओं का बहुत खूब चित्रण किया आपने ......!!


(हाँ ...कमेन्ट में की गयी रचना के भाव समझ नहीं पाई हूँ ....समझिएगा ..प्लीज़ .!!)

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आत्मा? आपने ऐसा प्रश्न पूछा है जिसका उत्तर खोजते सदियाँ बीत गयीं लेकिन अभी तक मिला नहीं...शायद मिलेगा भी नहीं...
नीरज

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इस मोह-माया से
बंधन मुक्त हो
खुले आकाश में
विचरण करना है
इस नश्वर शरीर से
इस आत्मा को
अब मुक्ति पाना है ..

Is prshn ka jawaab ... kya kabhi milega ...

chhatahar ने कहा…

SACH AATMA KI MARMSAPARSHI VARNAN SHAYAD JIVAN KI AKATY SATY KO LOG AAPKI KAVITA KE MADHYAM SE ANUBHAV KARE AUR JIVAN KO SUDHAR LE TO IS PANKTI KA MOL HI NAHI BATAYA JA SAKTA

HAPPY SINGH ने कहा…

aatma to amar hai. or jeevan ek sapna hai is jeevan ko sapna maan kar jeena seekho to sare sawalo ka jawab mil jayega.

HAPPY SINGH ने कहा…

aatma to amar hai. or jeevan ek sapna hai is jeevan ko sapna maan kar jeena seekho to sare sawalo ka jawab mil jayega.

Pijush Ghosh ने कहा…

Aatma is saakari duniya se paar, chand, sooraj, taragan se bhi paar, akhand jyotimay, brahm maha tatv mein, aapne niji swaroop mein shaanti dham mein niwas karti hai.

Pijush Ghosh ने कहा…

Aatma is saakari duniya se paar, chand, sooraj, taragan se bhi paar, akhand jyotimay, brahm maha tatv mein, aapne niji swaroop mein shaanti dham mein niwas karti hai.

Pijush Ghosh ने कहा…

Aatma is saakari duniya se paar, chand, sooraj, taragan se bhi paar, akhand jyotimay, brahm maha tatv mein, aapne niji swaroop mein shaanti dham mein niwas karti hai.

Unknown ने कहा…

Aatma Param-aatma mein veleen ho jati hai.

Unknown ने कहा…

Atma ko kaha gya hai ki ATMA ajar amar hai na janm le sakti hai, na mar sakti hai, na ese koyi jala sakta hai... matlab kuchh bhi nahi ... Fir Population kyon barh rhi hai ? na ATMA KA JANM HO SAKTA HAI NA...... TO FIR KAISE ????????????