मंगलवार, 24 अगस्त 2010

कर्मठ बनें..










उम्मीदें ...उम्मीदें
और बस उम्मीदें
फिर कुछ तानें बानें
सपनों के .

कभी सोचा है
कि....जब
उम्मीदें टूटेंगी
तो क्या होगा ?
क्या संभाल पाएंगे
खुद को ?

सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.

कितना आहत होता है अंतस
कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात
और ऐसा तो नहीं
कि पहली बार ऐसा होता है
कई बार ऐसा होता है
फिर भी हम संभल नहीं पाते.

बार बार ....हर बार
फिर वही उम्मीदें
फिर वही स्वप्न ...
क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?

हमें सीखना होगा
बिन उम्मीदों के जीना
बिन उधार के सपनो के
जीवन यापन करना.

हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.

कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.

43 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.

कर्मठ बनें तो...क्यों करें
झूठी उम्मीदों का...व्यापार ?
क्यों जिएँ...उधार के....स्वप्नों की जिंदगी.

सार्थक जीवन का संदेश देती रचना.

मनोज कुमार ने कहा…

कर्मठता मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बिल्कुल ठीक,कर्मठ बनना,अपने हाथ का ताक़त पहचानने वाला कभी झूठा उम्मीद के भरोसे नहीं रहता...ऊ सपना का नया ब्याकरन लिखता है...
इसमें पुरुसवाचक सब्द स्त्री के लिए भी उपजुक्त होता है..
सुनीता बहन...बहुत सुंदर..
राखी की सुभकामनाएँ!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उम्मीद पर लोग कहते हैं कि दुनिया कायम है। पर कितना धैर्य चाहिये।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति............
सुनीता जी शुभकामनाएँ

mai... ratnakar ने कहा…

सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.

adbhut logic, bilkul sach likha hai, ye to udhaar ke hee sapane hue

क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?

kya khoob sawal hai!!! bahut sach ke nazdeek likhane ka shukriya
bahut sateek likha hai aapne, khasiyat ye ki zindagee kee philosophy ko behad sahaj tareeqe se aur saral shabdon men samjha diya

mai... ratnakar ने कहा…

सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.

adbhut logic, bilkul sach likha hai, ye to udhaar ke hee sapane hue

क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?

kya khoob sawal hai!!! bahut sach ke nazdeek likhane ka shukriya
bahut sateek likha hai aapne, khasiyat ye ki zindagee kee philosophy ko behad sahaj tareeqe se aur saral shabdon men samjha diya

kshama ने कहा…

कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
Bahut khoobsooratee se kaha aapne apnee baat ko!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.


प्रेरणाप्रद रचना ..जीवन को सही दिशा देती हुई ...अच्छी अभिव्यक्ति

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बड़ी प्रभावी और प्रेरणादायी रचना है।

सूबेदार ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति जो हमें कर्म योग क़े तरफ ले जाती है .
सजीव कबिता क़े लिए हार्दिक बधाई ---राखी त्यौहार पर आपका अभिनन्दन
बहुत-बहुत धन्यवाद

अजय कुमार ने कहा…

सुंदर , सार्थक संदेश देती रचना ।

भाई-बहन के मजबूत रिश्तों का पर्व रक्षाबंधन सब भाई-बहनों के रिश्तों मे मजबूती लाये

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
*** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है! उपयोगी सामग्री।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कर्मठ बनें...सही कहा आपने. बहुत सुन्दर..पसंद आई ..बधाई.
______________________
"पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
--

सन्देश देती हुई यह रचना तो बहुत बढ़िया रही!

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।
:: हंसना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ब़ढ़िया रचना है!

रचना दीक्षित ने कहा…

कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति

arvind ने कहा…

क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
....sundar abhivyakti.

सुज्ञ ने कहा…

हमेशा की तरह,
बेहद सुंदर भाव

Aruna Kapoor ने कहा…

हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.

कर्मठ बनना हर एक के लिए जरुरी है...उत्तम कृति!

रंजू भाटिया ने कहा…

bahut sahi sundar rachna behtreen abhivykati

ज्योति सिंह ने कहा…

कितना आहत होता है अंतस
कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात
और ऐसा तो नहीं
कि पहली बार ऐसा होता है
कई बार ऐसा होता है
फिर भी हम संभल नहीं पाते.

achchha likha hai bahut hi achchha ,saath hi sach bhi darshaya hai .

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन रचना!

honesty project democracy ने कहा…

उम्दा और सार्थक अभिव्यक्ति ...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर और सार्थक, शुभकामनाएं.

रामराम.

ZEAL ने कहा…

.
हमें बनना होगा कर्म योद्धा ...

very inspiring !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हमें सीखना होगा
बिन उम्मीदों के जीना
बिन उधार के सपनो के
जीवन यापन करना....

पर ये संभव कहाँ है .... क्या इंसान के बस में है .... अगर ऐसा हो सके तो इंसान भगवान न बन जाएगा ....
ज्वलंत रचना है ...

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता .............

कुमार राधारमण ने कहा…

पुरुषार्थ ही कालक्रम में चलकर अटल प्रारब्ध बन जाता है।

SATYA ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति......

रंजना ने कहा…

वाह....मर्मस्पर्शी अतिसुन्दर रचना,जो प्रेरणा भी देती जाती है...

ASHOK BAJAJ ने कहा…

वाह !!! क्या कविता है

Aruna Kapoor ने कहा…

कभी सोचा है
कि....जब
उम्मीदें टूटेंगी
तो क्या होगा ?
क्या संभाल पाएंगे
खुद को ?
अपने आप को इस बात के लिए तैयार करना कठिन तो है..लेकिन असंभव नहीं है!... बहुत उमदा रचना!

vikram7 ने कहा…

कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
मर्मस्पर्शी अतिसुन्दर अभिव्यक्ति

Asha Lata Saxena ने कहा…

मन को छूती अच्छी प्रस्तुती .
बधाई |
आशा

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहत अच्छी लगी यह कविता.... मेरे पिताजी मुझे दुनिया का सबसे आलसी और निठल्ला समझते थे... जिसको वो बाद में कहने लगे कि वो गलत थे....

HBMedia ने कहा…

bahut shaandar rachna...badhayee!!

Parul kanani ने कहा…

anamika ji..gar ye sawaal hum aksar khud se karen ..to jindagi ka har jawab mil jaye!

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Behatareena aur preranaprad rachana---hardika shubhakamnayen.
Poonam