उम्मीदें ...उम्मीदें
और बस उम्मीदें
फिर कुछ तानें बानें
सपनों के .
कभी सोचा है
कि....जब
उम्मीदें टूटेंगी
तो क्या होगा ?
क्या संभाल पाएंगे
खुद को ?
सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.
कितना आहत होता है अंतस
कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात
और ऐसा तो नहीं
कि पहली बार ऐसा होता है
कई बार ऐसा होता है
फिर भी हम संभल नहीं पाते.
बार बार ....हर बार
फिर वही उम्मीदें
फिर वही स्वप्न ...
क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?
हमें सीखना होगा
बिन उम्मीदों के जीना
बिन उधार के सपनो के
जीवन यापन करना.
हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.
कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
43 टिप्पणियां:
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.
कर्मठ बनें तो...क्यों करें
झूठी उम्मीदों का...व्यापार ?
क्यों जिएँ...उधार के....स्वप्नों की जिंदगी.
सार्थक जीवन का संदेश देती रचना.
कर्मठता मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता।
बिल्कुल ठीक,कर्मठ बनना,अपने हाथ का ताक़त पहचानने वाला कभी झूठा उम्मीद के भरोसे नहीं रहता...ऊ सपना का नया ब्याकरन लिखता है...
इसमें पुरुसवाचक सब्द स्त्री के लिए भी उपजुक्त होता है..
सुनीता बहन...बहुत सुंदर..
राखी की सुभकामनाएँ!!
उम्मीद पर लोग कहते हैं कि दुनिया कायम है। पर कितना धैर्य चाहिये।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति............
सुनीता जी शुभकामनाएँ
सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.
adbhut logic, bilkul sach likha hai, ye to udhaar ke hee sapane hue
क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?
kya khoob sawal hai!!! bahut sach ke nazdeek likhane ka shukriya
bahut sateek likha hai aapne, khasiyat ye ki zindagee kee philosophy ko behad sahaj tareeqe se aur saral shabdon men samjha diya
सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.
adbhut logic, bilkul sach likha hai, ye to udhaar ke hee sapane hue
क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?
kya khoob sawal hai!!! bahut sach ke nazdeek likhane ka shukriya
bahut sateek likha hai aapne, khasiyat ye ki zindagee kee philosophy ko behad sahaj tareeqe se aur saral shabdon men samjha diya
कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
Bahut khoobsooratee se kaha aapne apnee baat ko!
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.
प्रेरणाप्रद रचना ..जीवन को सही दिशा देती हुई ...अच्छी अभिव्यक्ति
बड़ी प्रभावी और प्रेरणादायी रचना है।
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति जो हमें कर्म योग क़े तरफ ले जाती है .
सजीव कबिता क़े लिए हार्दिक बधाई ---राखी त्यौहार पर आपका अभिनन्दन
बहुत-बहुत धन्यवाद
सुंदर , सार्थक संदेश देती रचना ।
भाई-बहन के मजबूत रिश्तों का पर्व रक्षाबंधन सब भाई-बहनों के रिश्तों मे मजबूती लाये
बहुत अच्छी कविता।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
*** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है! उपयोगी सामग्री।
कर्मठ बनें...सही कहा आपने. बहुत सुन्दर..पसंद आई ..बधाई.
______________________
"पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'
कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
--
सन्देश देती हुई यह रचना तो बहुत बढ़िया रही!
बहुत अच्छी कविता।
:: हंसना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ब़ढ़िया रचना है!
कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
....sundar abhivyakti.
हमेशा की तरह,
बेहद सुंदर भाव
हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.
कर्मठ बनना हर एक के लिए जरुरी है...उत्तम कृति!
bahut sahi sundar rachna behtreen abhivykati
कितना आहत होता है अंतस
कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात
और ऐसा तो नहीं
कि पहली बार ऐसा होता है
कई बार ऐसा होता है
फिर भी हम संभल नहीं पाते.
achchha likha hai bahut hi achchha ,saath hi sach bhi darshaya hai .
बेहतरीन रचना!
उम्दा और सार्थक अभिव्यक्ति ...
बहुत ही सुंदर और सार्थक, शुभकामनाएं.
रामराम.
.
हमें बनना होगा कर्म योद्धा ...
very inspiring !
हमें सीखना होगा
बिन उम्मीदों के जीना
बिन उधार के सपनो के
जीवन यापन करना....
पर ये संभव कहाँ है .... क्या इंसान के बस में है .... अगर ऐसा हो सके तो इंसान भगवान न बन जाएगा ....
ज्वलंत रचना है ...
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति
बहुत सुन्दर कविता .............
पुरुषार्थ ही कालक्रम में चलकर अटल प्रारब्ध बन जाता है।
सुंदर अभिव्यक्ति......
वाह....मर्मस्पर्शी अतिसुन्दर रचना,जो प्रेरणा भी देती जाती है...
वाह !!! क्या कविता है
कभी सोचा है
कि....जब
उम्मीदें टूटेंगी
तो क्या होगा ?
क्या संभाल पाएंगे
खुद को ?
अपने आप को इस बात के लिए तैयार करना कठिन तो है..लेकिन असंभव नहीं है!... बहुत उमदा रचना!
कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
मर्मस्पर्शी अतिसुन्दर अभिव्यक्ति
मन को छूती अच्छी प्रस्तुती .
बधाई |
आशा
बहत अच्छी लगी यह कविता.... मेरे पिताजी मुझे दुनिया का सबसे आलसी और निठल्ला समझते थे... जिसको वो बाद में कहने लगे कि वो गलत थे....
bahut shaandar rachna...badhayee!!
anamika ji..gar ye sawaal hum aksar khud se karen ..to jindagi ka har jawab mil jaye!
Behatareena aur preranaprad rachana---hardika shubhakamnayen.
Poonam
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