दो दिलों के
मनोभाव
टकराने लगे हैं.
एक दूसरे के
सारे सहयोग द्वार
बंद होने लगे हैं.
दो परिपक्व सोचों में
द्वन्द खड़ा हो गया है .
विकारों का जहर
भरने लगा है .
संवाद भी अब
दम तोड़ चुके हैं.
खामोशियों का
पटाक्षेप हो चला है .
बिसूरती चाहतें
मनोबल खोती सी
अपनी ही जमीन में
गढती जा रही हैं.
अंधेरों को
अग्रसर होती
जीवन अभिलाषा
खुद को कोसती
अपने ही खोल में
घुस जाने को
मजबूर,
नैराश्य की
चरम सीमा पर है .
कैसे उजास की किरण
फूटेगी ?
कैसे विकारों के
बाण शांत होंगे ?
कैसे मन से
एक बार फिर
प्यार के सेतु
टूटेंगे ?
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं !!
49 comments:
वाह, बेहतरीन रचना ...
नफरतों को छोडकर मोहब्बत अपनाने की ज़रूरत है !
आज फिर से दुश्मनों को गले लगाने की ज़रूरत है !!
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं !!
Kitna pyara manuhaar hai!
लड़ना , झगड़ना ..
मान , मनुहार ...
संवाद के ही तरीके हैं जो रिश्तों को जिन्दा रखते हैं ...
कुंठाओं का बहिष्कार कर मना लेने का संवाद अच्छा लगा !
कैसे उजास की किरण
फूटेगी ?
कैसे विकारों के
बाण शांत होंगे ?
कैसे मन से
एक बार फिर
प्यार के सेतु
टूटेंगे ?
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं !!
bahut hi sunder..!!!
"waakai jarurat hai
ek aise samwad ki
jo apne aap me purna ho
pyar manuhaaro se yukt ho
paash bandhano se mukt ho.."!!!
अंधेरों को
अग्रसर होती
जीवन अभिलाषा
खुद को कोसती
अपने ही खोल में
घुस जाने को
मजबूर,
नैराश्य की
चरम सीमा पर है .
"nairashya ki charam seemao ko paar karte hain....aao samwaad karte hain..!!!!
Badhiya nazm hai di... :-)
ज़रूरी है संवाद ...क्यूँकी रिश्ते इसी से जीते और पनपते हैं.... खूब लिखा ...
आलिंगन कर मनुहार करते है ! सुंदर रचना ............
खोल से बाहर आने के लिए संवाद ज़रूरी है ...पर कभी कभी संवाद के लिए शब्द भी नहीं मिलते तो....
अच्छी प्रस्तुति ...
बहुत ही बेहतरीन रचना ! मौन कुंठाओं के अन्धकार से बाहर निकल जब सार्थक संवाद के प्रकाश की ओर कदम बढ़ाए जायेंगे तभी मनों के विकार समाप्त होंगे और स्वस्थ रिश्तों की बुनियाद मजबूत होगी ! ऐसी निर्मल आकांक्षा रखने के लिये ही आप साधुवाद की पात्र हैं वरना आजकल तो लोग बीमार रिश्तों को तोडने में अधिक यकीन रखते हैं ! बहुत खूबसूरत रचना !
वाह!! स्पष्ठ काव्यमय सोच
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
##
जब कुंठा ही बनके लगे विवाद,
आओ पहले करें सार्थक सम्वाद।
just amazing
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
bahoot hi sunder sonch... kash aisa hi hota.
ये सच है की आपसे बात से संवाद से हर मसले का हाल खोज लिया जाता है ... तो फिर जहाँ प्रेम हो वहाँ तो संवाद होना ही चाहिए ... अच्छा लिख है ....
हृदय धड़का गयी पंक्तियाँ।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
संवाद की सार्थकता तो अलगाव और दूरियों को पाटने और सेतु एवं पुल बनने में ही निहित है और जब उसमें अंहकार का रंग धुल कर, प्रेम का रस घुल मिल जाए तो वे मन के जख्मों पर शहद सा मरहम रखने में सक्षम हो जाते है. खूबसूरत और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
bahut achhi kavita hai.....
samjh nahi aata ma'm aap jainse log itna acha kainse likh lete hai?
संवाद ही वो कडी है जो जोडे रखती है फिर प्यार से हो या मनुहार से,रुठने से हो या मनाने से मगर संवाद होना चाहिये तभी मनो मे आयी कलुषता मिटती है………………बहुत बढिया प्रस्तुति।
बोझिल सांसो को जैसे हवा का एक झोंका तर कर दे , आपकी कविता उलझनों के बीच संवाद का सन्देश देकर कुछ ऐसा ही एहसास कराती है !
बहुत ही सुन्दर पोस्ट !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
कहते हैं कि दो दुश्मनों को भी एक कमरे में बन्द कर दो तो कुछ दिन बाद मित्र बनकर निकलेंगे। इसलिए जीवन की समस्याओं का हल संवाद ही है। बहुत परिपक्व रचना है, बधाई।
बहुत सुंदर संदेश, आखिर संवाद हीनता ही सबसे बडा रोडा होती है, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही उम्दा रचना है.
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं !!
बेहतरीन प्रस्तुति ...
भाव अच्छे हैं।
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं ..
---
सुन्दर भाव !
.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. मनोभावों का शानदार चित्रण.
gahre arthon se bhari sunder kavita.
खामोशियों का
पटाक्षेप हो चला है .
बिसूरती चाहतें
मनोबल खोती सी
अपनी ही जमीन में
गढती जा रही हैं.
अंधेरों को
अग्रसर होती
जीवन अभिलाषा
खुद को कोसती
अपने ही खोल में
घुस जाने को
मजबूर,
नैराश्य की
चरम सीमा पर है .
संवाद आवश्यक है...श्रेयस्कर है...अग्रणी है..महती है... निभा भी है.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने इन मनोभावों को भी :)
रिश्तों की दरारें भरने के लिये संवाद बहुत जरूरी है अच्छी रचना के लिये बधाई।
ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
यदि थोड़ा भी हो रस बाक़ी,कर पहल दोस्ती कर लेना
सौ तीरथ जाने से बढ़कर,इक रूठा यार मना लेना...
उम्र भर कभी शब्दों से तो कभी निशब्द
मान मनुहार किया हमने , एक मौन संवाद अविरल चलता रहा
हर बार अहंकार, विकार का ये सेतु पार किया हमने
पाया जब से तुमको था ,जाने कितनी बार हारे थे
अपनी तो फितरत है झुक जाना ,आखिर प्यार किया है तुमको
चलो मनाते है फिर एक बार
,ये जीवन तो निसार किया है तुमको .
अंनामिका जी स्त्री का संपुर्ण जीवन इसी मान मनुहार मे बीत जाता है
संवाद तो अविरल जारी रहते है पर शब्द अपना अर्थ पाने को हमेशा समर्थ नहीं हो पाते.
बहुत सुन्दर!
संवादहीनता ही सभी समस्यायों की जड़ है!
मनुहार और संवाद -
जीवन की कटुता का नाश करते हैं -
सुंदर भाव !!
संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
संवादहीनता क्रोध से पैदा होता है।
क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है,
मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है,
स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है,
और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता ह॥
प्राणी को नष्ट होने से बचाने का काम करेगी आपकी यह कविता !!
... bahut sundar ... prasanshaneey !!!
kya kahun , baahvnao ko jo shabd aapne diye hai unka kya kahna , sab kuch jaise saamne hi hai ..
bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
सच है कुंठाओं से बाहर आना और संवाद करना नहीं तो जाने कितना कुछ कहा अनकहा सा रह जाता है
रिश्तों की दरारें भरने के लिये संवाद बहुत जरूरी है, बधाई..
बहुत अच्छे भाव ...मेरी शुभकामनायें स्वीकारें !
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति....सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई
सम्वाद दो मौन के बीच पुल का काम करते हैं.. दो दिलों को जोड़ने का काम...आज की सबसे बड़ी माङ्ग..सुनीता बहन आपने एक बिम्ब के सहारे एक सामयिक प्रश्न का उत्तर दिया है..
बहुत ख़ूब!!
anamika ji
bahut hi behatreen v sashakt post.beeti baato ko fir se naya roop dene ke liye ek samvaad hi aisa rasta hai jo saari band gantho ko khol kar aage badhne me bkhoobi
sahayak hota hai.
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं
ati sundar
poonam
इस बार मेरे ब्लॉग में '''''''''महंगी होती शादिया .............
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं.
आओ चलो ना
एक बार फिर
आलिंगन कर
मनुहार करते हैं
मनुहार करते हैं !...
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.कुंठाओं और अवसादों को दूर करने का संवाद ही एक रास्ता है.आभार
jindgi jine ke liye soch ki aajadi kitni jruri hai na anamika | hum dukhi hove ya sukhi hove iske liye sbse phle apne aap se smvad jruri hai . is sfr me jo koi sath aa jaye to sone pe suhaga !
bhut umda rchna !
बहोत ही सुन्दर रचना ! संवाद तो होना ही चाहिए, वही सही है, हर प्रश्न का हल है,
आओ चलो
संवाद करते हैं
आओ चलो
एक बार फिर
कुंठाओं का
बहिष्कार करते हैं
रिश्तों को जिन्दा रखने के लिए संवाद साँस लेने जितना ही जरुरी है. कुंठाओं का बहिष्कार कर के संवाद की शुरुआत, यही हर समस्या के हल की चाभी है...सुन्दर एवं सार्थक रचना. मंजु
Post a Comment