Wednesday 20 July 2011

अनुसरण....


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एक दिन तुम्ही ने 
कहा था प्रिये..
प्यार का संसार 
दिल से बसता है.



मैंने भी बखूबी 

रमाया था दिल को 
तुम संग....
जब प्रेम की माला बुनी थी.



बुद्धि की देवी 
आ-आ कर  
कई बार 
प्यार की चौखट से 
बे-आबरु हो कर 
लौट गयी.
हालाँकि, तुमने 
दामन न छोड़ा था उसका.



मुझे भी समझाया 

तुम्हीं  ने कई बार 
कि यूँ निरादर न करो 
बुद्धि का.




तब हर बार 
खुद को, और 
तुम्हें  भी 
तुम्हारा ही  संवाद 
स्मरण कराया मैंने
कि हे प्रिये ....
"प्यार का संसार
दिल से बसता है !"


तुम्हीं ने शायद 
मन ही मन 
निर्णय ले डाला 
और अपने  दिल को 
सन्मार्ग  दिखा ...
मुझी को उस से 
बेघर कर दिया.


मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन  घावों को 
सहलाता रहा 
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.


लेकिन अति तो 
हर चीज़ की
होती ही है ना प्रिये...!

पीड़ा से दुखती 
मेरी आत्मा 
आज आदि हो चुकी है 
इस दर्द को 
सहते रहने की.

अब तो दिल भी 
मर चुका है प्रिये,
और बुद्धि....
अपना एक-छत्र 
शासन करती है.



आज बुद्धि 
अनसुना कर देती है 
दिल की हर पुकार को 
और तुम्हारी ही 
भाषा बोलती है....
कि 'प्रेक्टिकल बनो' !

आज तुम 
हैरान-परेशान हो 
मेरे इस परिवर्तन पर ?

तुम्हारी ही सीख 
पर तो चल रहा हूँ प्रिये...
तुम्हारा ही तो 
अनुसरण कर रहा हूँ प्रिये....!!


51 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सार्थक और सटीक रचना!

Unknown said...

बेहतरीन शब्दों से उकेरी गयी अंतर भावनाए बेमिसाल है संवेदनशील हृदय के लिए बधाई

S.N SHUKLA said...

"प्यार का संसार
दिल से बसता है !"
सार्थक,सटीक और सुन्दर प्रस्तुति

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम में गहरे बसे भावों को सटीक उकेरती रचना।

Anupama Tripathi said...

अति गहन ..एवं मर्मस्पर्शी लेखन ...
बहुत सुंदर रचना ...

Rajesh Kumari said...

prem ke bhaav aur samvedna ko darshaati rachna.bahut khoob.

Rakesh Kumar said...

दिल या बुद्धि के अनुसरण पर सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आपने.

क्या बुद्धि हमेशा ही दिल को नजरंदाज करती है या ऐसा हम जानबूझ कर करते हैं.

सूक्ष्म प्रखर बुद्धि दिल में सकारात्मक भावों का उदय करने में सहायक भी हो सकती है,जिसमें प्रेम या भक्ति अति उच्च सकारात्मक भाव है.

'बेशक मंदिर मस्जिद तोडो
पर प्यार भरा दिल कभी न तोडो
जिस दिल में दिलवर बसता'

अति सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

Anita said...

दिल और दिमाग की कशमकश को बयान करती एक बेहतरीन रचना!

संजय भास्‍कर said...

अनामिका जी
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

Satish Saxena said...

हकीकत बयान करती यह रचना अच्छी लगी...शुभकामनायें !!

Dr Varsha Singh said...

सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...

मनोज कुमार said...

ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी यह रचना अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, दिल की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही कवयित्री की भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है। चित्रात्मक वर्णन और प्रयुक्त चित्र कई जगह बांधता है। और अंत में जो अंत है हमारे संवेदन को छूकर आंखों के कोर को गीला कर जाता है?

Anonymous said...

अनामिका जी......हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए.......दिल और दिमाग के बिच के अंतर्द्वंध को क्या बाखूबी बयां किया है........प्रेमचंद जी की एक कहानी पढ़ी थी बहुत पहले कुछ इसी ज़द्दोज़हद को बयां करती हुई..........बहुत शानदार|

अविनाश मिश्र said...

प्यार का संसार
दिल से बसता है !sach hee kaha aapne...
ye to jaise meri kahani lagti hai... behad sanvedansheel.. dhanywad avinash001.blogspot.com

अरुण चन्द्र रॉय said...

प्रेम में गहरे बसे भावों को उकेरती रचना।

Rajiv said...

"आज बुद्धि
अनसुना कर देती है
दिल की हर पुकार को
और तुम्हारी ही
भाषा बोलती है....
कि 'प्रेक्टिकल बनो' !"
अनामिका जी,
बहुत ही सहजता से किसी के वर्चस्व के प्रभाव और परिणाम को उजागर करती रचना.

Manish Khedawat said...

bahut sunder !!

रश्मि प्रभा... said...

आज बुद्धि
अनसुना कर देती है
दिल की हर पुकार को
और तुम्हारी ही
भाषा बोलती है....
कि 'प्रेक्टिकल बनो' !

आज तुम
हैरान-परेशान हो
मेरे इस परिवर्तन पर ?

तुम्हारी ही सीख
पर तो चल रहा हूँ प्रिये...
तुम्हारा ही तो
अनुसरण कर रहा हूँ प्रिये....!!ye hui n baat

सुज्ञ said...

सम्वेदना और बुद्धि का युद्ध, शानदार चित्रण!!

मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.

Sadhana Vaid said...

मन के द्वन्द को बहुत सुन्दर शब्दों में संजोया है ! कई बार लोगों की कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है ! प्यार और व्यावहारिकता की परिभाषा तथा मानदण्ड अपने लिये कुछ और एवं औरों के लिये कुछ और ही होते हैं ! इस मानसिकता को आपने बड़ी खूबी से उभारा है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

kshama said...

Kya kahun aur kya na kahun? Nishabd kar diya tumne phir ek baar!

सुनीता शानू said...

क्या बात है बहुत सुन्दर भावप्रद रचना। शुभकामनाएं अनामिका जी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचारणीय रचना ...अच्छी प्रस्तुति

संध्या शर्मा said...

"प्यार का संसार
दिल से बसता है !"
सार्थक और बहुत सुंदर रचना ...

Manav Mehta 'मन' said...

manthan karti hui rachna...

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही कोमल भावों से सजी सँवरी और रची गयी कविता अनामिका जी बधाई और शुभकामनायें |

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

anamika ji..blog mahasagar mein apni kasti liye firta rahta hoon..kabhi is dweep pe kabhi is dweep pe.. aaj aap ka guldasta dekhne chala aaya..abhi to pravesh dwar ke pushpon ne hi rok liya..tumhara hi to anusaran kar raha hoon priya..bahut acchi kriti...lekin kaviyon ko dil ki hi jeet dikhani chahiya kyonki yahi shaswat hai..na bhi ho to bhi jindagi pyar se to gujar jaati hai..dil se jude rahne pe..aapko hardi badhai...kabhi aapni kasti mein sawar...aayiyega mere blog dwar

Ravi Rajbhar said...

Bahut hi bhawpoorn rachna...

Badhai..

पूनम श्रीवास्तव said...

anamika ji
man ke andar chlte bhavo ko aapne bahut hi sundarta ke saath shbd diye hain .
bahut hi achhi lagi aapki yah rachna
badhai-----
poonam

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना ....

virendra sharma said...

सुन्दर प्रस्तुति चित्रात्मक ,प्रतीक लिए .

Maheshwari kaneri said...

सच को प्रतिबिम्बित करती बहुत सार्थक और सटीक रचना!शुभकामनायें !!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

भावों की ग्रंथियों को आपने अपने गहन शब्द जाल में जिस सार्थकता से उकरा है वह इस कविता की सुंदरता को और बढाती है!!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

मर्म स्पर्शी रचना.

विभूति" said...

खुबसूरत अभिवयक्ति...

Kunwar Kusumesh said...

सार्थक और सटीक

नीलांश said...

तुम्हीं ने शायद
मन ही मन
निर्णय ले डाला
और अपने दिल को
सन्मार्ग दिखा ...
मुझी को उस से
बेघर कर दिया.



मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.

dil ki baaten likhne ke liye aapka badhai

SM said...

बहुत सुंदर रचना

amrendra "amar" said...

मैं मौन हो ..
विक्षिप्त सा..
उन घावों को
सहलाता रहा
जो मेरे शरीर पर नहीं..
आत्मा पर लगे थे.

सार्थक और मर्मस्पर्शी लेखन ...
बहुत सुंदर रचना ...

Asha Lata Saxena said...

बहुत सुन्दर भाव और प्रस्तुति |
बधाई
आशा

ज्योति सिंह said...

आज तुम
हैरान-परेशान हो
मेरे इस परिवर्तन पर ?

तुम्हारी ही सीख
पर तो चल रहा हूँ प्रिये...
तुम्हारा ही तो
अनुसरण कर रहा हूँ प्रिये....!!
kahne aur karne me yahi fark hota hai ,bahut hi sundar likha hai .badhai ho .

Dorothy said...

दिल और दिमाग के अंतर्संबंधों को बेहद कोमल अहसासों से सजा कर पेश करने का खूबसूरत अंदाज सराहनीय है.आभार.
सादर
डोरोथी.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत सार्थक और सटीक रचना .....

सुनीता शानू said...

http://anamika7577.blogspot.com/

सागर said...

bhaut hi prabhaavpurn rachna....

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन।

सादर

प्रज्ञा पांडेय said...

aapki tippani apane blog par padhii ...ek ek dil ke nikale aapke aatmeey shabd man ko chhoo gaye aur aapkii kavita padhee .. aap ek saamaany see baat kahanaa shuru karati hain aur dekhate hi dekhate bahut gahare utar jatin hain .. kab ho jaata hai aisa isaka bilkul aabhaas bhi nahin milata .. kuchh aisa rach deti hain aap ki shabd nahin unakii sugandh rah jaati hai ..

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi......

निर्मला कपिला said...

गहरे से कहीं व्यथा सुनाती सदायें\ शुभकामनायें\

ZEAL said...

बुद्धि की देवी
आ-आ कर
कई बार
प्यार की चौखट से
बे-आबरु हो कर
लौट गयी.
हालाँकि, तुमने
दामन न छोड़ा था उसका....

Very appealing lines !

Badhaii .

.

अनुपमा पाठक said...

आंतरिक भावनाओं से बुनी सार्थक रचना!