Tuesday 10 August 2010

खामोशियाँ






















कई बार
खामोशियाँ भी
कितने झन्झावात ले आती हैं .
खामोशियाँ ...
खामोशियाँ ना रह कर
विचारों की
उठा -पटक करती हैं
मानस पटल पर.

मैं ख़ामोशी की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेना चाहती हूँ
नहीं करना चाहती
कुछ भी जिरह
मगर ...
जितना भी
खामोशियों को
अपनाती हूँ
प्रश्नों के कटघरे में
खडी कर दी जाती हूँ .

क्यूँ नहीं रहने देते तुम
मुझे शांत, खामोश
एक प्रश्न के बाद
दूसरा, दूसरे के बाद
फिर तीसरा प्रश्न
थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.

मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा .

बात - बे - बात
कटाक्ष करते हो
बींध देते हो
कटाक्षों के वार से

मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.

मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.

43 comments:

Sadhana Vaid said...

एक कटु यथार्थ को बयान करती बहुत ही सच्ची और अच्छी रचना ! यह भी सच ही है कि ना तो किसीको बोलना अच्छा लगता है ना ही चुप रहना ! ऐसे में खामोशियों की दीवारों के घेरे में शरण लेने के अलावा और कोई रास्ता भी तो नज़र नहीं आता ! सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें !

Unknown said...

थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.......
किस तरह खामोशी से नाता जोड़ा है तय करना मुस्किल है
अंतर मन की इस दुविधा को नत मस्तक
बहुत प्यारी कविता है

Satish Saxena said...

पीड़ा की अभिव्यक्ति आसान नहीं होती ...शुभकामनायें

Unknown said...

तेरे ओंठों की सिसकियाँ .....हैं ...बस
और ....
खामोशी का आलम

Avinash Chandra said...

मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा .

ye sabse achchha laga..

Saleem Khan said...

बहुत ही सच्ची और अच्छी रचना

मनोज कुमार said...

यह कविता एक संवेदनशील मन की निश्‍छल अभिव्‍यक्तियों से भरा-पूरा है
जीवन की आपाधापी से त्रस्‍त, संबंधों की विसंगतियों से आहत और आक्रांत मनस्थितियों का कवयित्री ने प्रभावी चित्रण किया है। वह अन्‍योक्ति से एक गहरा संकेत करती है।
इस कविता को पढकर ऐसा लगता है कि कभी-कभी हम दूसरों को बदलने के लिए बाध्‍य कर देतें हैं क्‍योंकि हम चाहते हैं कि वे वैसे ही बनें, जैसा हम चाहते हैं। तभी तो
खामोशियाँ ...
खामोशियाँ ना रह कर
विचारों की
उठा -पटक करती हैं
कार्लाइल ने कहा था ख़ामोशियों में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

खामोसी अख्तियार करने अऊर लब सी लेने से समस्या नहीं हल होता है...साहिर साहब का याद आया
इसको ही जीना कहते हैं तो यूँ भी जी लेंगे
उफ ना करेंगे, लब सी लेंगे, आँसू पी लेंगे.
हर बार एगो नया दर्द या दर्द का एगो नया रूप लेकर आती हैं आप अनामिका बहन...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से एहसासों को लिखा है ....सुन्दर रचना

सुज्ञ said...

ऐसी भी होती है मानसिक क्रिडा,
मौन झंझावात की प्रबल पीडा।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ.....
बहुत प्रभावशाली रचना है...

अनामिका जी,
वैसे एक शेर में इस स्थिति का हल यूं भी बताया गया है-

इक तबस्सुम हज़ार शिक़वों का,
कितना प्यारा जवाब होता है.

शरद कोकास said...

खामोशी की चादर अच्छा बिम्ब है ..

रचना दीक्षित said...

बहुत ही सुंदर भावनात्मक द्वन्द, जिंदगी ऐसी ही है न तो खामोशियाँ काबिले बर्दाश्त है और नाही जुबान खोलना. सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें

अरुणेश मिश्र said...

खामोशियाँ अन्तर्द्वन्द्व का यरिणाम है ।
कविता बहुत कुछ कहती है ।

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब जी, कई बार खामोशी ही सब कुछ कह देती है मोन रह कर भी

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सच्चाई को बयाँ करती ........... बहुत अच्छी प्रस्तुति.........

Udan Tashtari said...

मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ

-ये भी एक तरीका है उम्दा अभिव्यक्ति!

प्रवीण पाण्डेय said...

मौन की भाषा पूर्ण होती है।

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत अच्छी कविता।

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन प्रस्तुति...वाह....
नीरज

Unknown said...

मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा ।
बहुत गहरी बात कही है पुरुष प्रकृति को बड़ी बारीकी से समझा है आपने। लेकिन हम लब क्यों सिएं ? ये तो पलायन है। अनामिका जी , मुझे नहीं लगता कि आप जैसी विदुषी युवती पलायन को सही मानेगी। शायद आप लब इसलिए सी रही हैं कि जिसका विश्वास डगमगाने वाला हो हो वह तो वैसे भी करुना और दया का पात्र है। है न। बहुत अच्छा लगा, आपको पढना।

RAJWANT RAJ said...

mai tumhati hsi hsu
mai tumhari juba bolu
jo tum dekho vo mai dekhu
jo tum socho vo mai sochu
jo mai khu iska ult kr do to kya ye khamoshiya apna pala bdl lengi ? nhi na ! to fir qu na in udasiyo ko drkinar krte huye apne ird gird chhitki chhoti chhoti khushiyo ko chun kr apne damn ko sja le our khe ---
''rbba shukr hai tera ''
anamika ! tum yu udas achchhi nhi lgti . please muskurao .

सूर्यकान्त गुप्ता said...

abhivyakti ka sundar prastutikaran. Marmik rachana......abhaaar.

arvind said...

मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.


....sundar rachna, tasvir bhi acchhi.

vandana gupta said...

खामोशियों की पीडा और इन खामोशियों का चीत्कार दोनो का बहुत ही सुन्दरता से चित्रण किया है।

anoop joshi said...

bahut khoob........ ma'm.......

Deepak Shukla said...

Hi..

Yun to kavi ke man main aate..
Bhavon sang ahsaas..
Klant hruday bhi ho jata hai..
Agar ghate kuchh sath..

Kavita padhkar teri jaane..
Hota kyon abhaas..
Kisi ne dil tera hai dukhaya..
Karke koi kataksh..

Bhale kalpana hi teri ho..
Par khamosh nahi rahna..
Khoob chakna..aur mahakna..
Har pal tum khush hi rahna..

Yahi dua bhi hai..aur yahi elteja bhi hai..

Deepak..

निर्मला कपिला said...

अंतर मन की कशमकश मे चहकना छोड देती हो ?भई क्यों? ये ज़िन्दगी है इसे खूब जीवट से जीओ। रचना बहुत अच्छी संवेदनशील है शुभकामनायें

ताऊ रामपुरिया said...

सशक्त अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

रामराम.

Asha Lata Saxena said...

A nice poem with anew thought.
Asha

Anonymous said...

bahut hi sundar prastuti...
acha laga pad kar...
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..

Banned Area News : 37 Congress, 22 BJP nominees elected unopposed in civic polls

अजित गुप्ता का कोना said...

मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा

बहुत ही सटीक अभिव्‍यक्ति। नारी की व्‍यथा को बहुत ही अच्‍छी तरह से प्रस्‍तुत किया है, बधाई।

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.


मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.

behad khubsurat rachna...

रंजू भाटिया said...

bahut sundar khamoshi ki apni aavaaz hoti hai ...

M VERMA said...

फिर तीसरा प्रश्न
थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.
हर चक्रव्यूह अंततोगत्वा टूटता ही है फिर खामोशियाँ क्यों नहीं !!
सुन्दर ... बहुत सुन्दर रचना

योगेन्द्र मौदगिल said...

behtreen rachna......wah..

kshama said...

http://simtelamhen.blogspot.com/
Anamikaji,bada tadap ke likha hai...zaroor padhen!
Aapki rachana ab padhti hun!

kshama said...

जितना भी
खामोशियों को
अपनाती हूँ
प्रश्नों के कटघरे में
खडी कर दी जाती हूँ .
Aap to bas hontonkee baat chheen letee hain! Kaise dilse diltak raah bana letee hain?

कडुवासच said...

...sundar rachanaa !!!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

..मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा..

..मेरी समझ से कविता का यहीं अंत हो जाना चाहिए था. बात पूरी हो जाती है यहाँ.
..अच्छी कविता.

सूबेदार said...

अपने कबिता क़े द्वारा बहुत कुछ कह दिया
बहुत सुन्दर कबिता
धन्यवाद

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

बहुत सुन्दर कविता।

दिगम्बर नासवा said...

मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.


खामोशी तो एक तूफान ले कर आती है ... उससे बचना आसान नही .... गहरे ज़ज़्बात पिरोए हैं ....