खामोशियाँ भी
कितने झन्झावात ले आती हैं .
खामोशियाँ ...
खामोशियाँ ना रह कर
विचारों की
उठा -पटक करती हैं
मानस पटल पर.
मैं ख़ामोशी की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेना चाहती हूँ
नहीं करना चाहती
कुछ भी जिरह
मगर ...
जितना भी
खामोशियों को
अपनाती हूँ
प्रश्नों के कटघरे में
खडी कर दी जाती हूँ .
क्यूँ नहीं रहने देते तुम
मुझे शांत, खामोश
एक प्रश्न के बाद
दूसरा, दूसरे के बाद
फिर तीसरा प्रश्न
थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.
मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा .
बात - बे - बात
कटाक्ष करते हो
बींध देते हो
कटाक्षों के वार से
मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.
मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.
43 टिप्पणियां:
एक कटु यथार्थ को बयान करती बहुत ही सच्ची और अच्छी रचना ! यह भी सच ही है कि ना तो किसीको बोलना अच्छा लगता है ना ही चुप रहना ! ऐसे में खामोशियों की दीवारों के घेरे में शरण लेने के अलावा और कोई रास्ता भी तो नज़र नहीं आता ! सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें !
थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.......
किस तरह खामोशी से नाता जोड़ा है तय करना मुस्किल है
अंतर मन की इस दुविधा को नत मस्तक
बहुत प्यारी कविता है
पीड़ा की अभिव्यक्ति आसान नहीं होती ...शुभकामनायें
तेरे ओंठों की सिसकियाँ .....हैं ...बस
और ....
खामोशी का आलम
मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा .
ye sabse achchha laga..
बहुत ही सच्ची और अच्छी रचना
यह कविता एक संवेदनशील मन की निश्छल अभिव्यक्तियों से भरा-पूरा है
जीवन की आपाधापी से त्रस्त, संबंधों की विसंगतियों से आहत और आक्रांत मनस्थितियों का कवयित्री ने प्रभावी चित्रण किया है। वह अन्योक्ति से एक गहरा संकेत करती है।
इस कविता को पढकर ऐसा लगता है कि कभी-कभी हम दूसरों को बदलने के लिए बाध्य कर देतें हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि वे वैसे ही बनें, जैसा हम चाहते हैं। तभी तो
खामोशियाँ ...
खामोशियाँ ना रह कर
विचारों की
उठा -पटक करती हैं
कार्लाइल ने कहा था ख़ामोशियों में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है।
खामोसी अख्तियार करने अऊर लब सी लेने से समस्या नहीं हल होता है...साहिर साहब का याद आया
इसको ही जीना कहते हैं तो यूँ भी जी लेंगे
उफ ना करेंगे, लब सी लेंगे, आँसू पी लेंगे.
हर बार एगो नया दर्द या दर्द का एगो नया रूप लेकर आती हैं आप अनामिका बहन...
बहुत खूबसूरती से एहसासों को लिखा है ....सुन्दर रचना
ऐसी भी होती है मानसिक क्रिडा,
मौन झंझावात की प्रबल पीडा।
मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ.....
बहुत प्रभावशाली रचना है...
अनामिका जी,
वैसे एक शेर में इस स्थिति का हल यूं भी बताया गया है-
इक तबस्सुम हज़ार शिक़वों का,
कितना प्यारा जवाब होता है.
खामोशी की चादर अच्छा बिम्ब है ..
बहुत ही सुंदर भावनात्मक द्वन्द, जिंदगी ऐसी ही है न तो खामोशियाँ काबिले बर्दाश्त है और नाही जुबान खोलना. सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें
खामोशियाँ अन्तर्द्वन्द्व का यरिणाम है ।
कविता बहुत कुछ कहती है ।
बहुत खुब जी, कई बार खामोशी ही सब कुछ कह देती है मोन रह कर भी
सच्चाई को बयाँ करती ........... बहुत अच्छी प्रस्तुति.........
मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ
-ये भी एक तरीका है उम्दा अभिव्यक्ति!
मौन की भाषा पूर्ण होती है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत अच्छी कविता।
बेहतरीन प्रस्तुति...वाह....
नीरज
मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा ।
बहुत गहरी बात कही है पुरुष प्रकृति को बड़ी बारीकी से समझा है आपने। लेकिन हम लब क्यों सिएं ? ये तो पलायन है। अनामिका जी , मुझे नहीं लगता कि आप जैसी विदुषी युवती पलायन को सही मानेगी। शायद आप लब इसलिए सी रही हैं कि जिसका विश्वास डगमगाने वाला हो हो वह तो वैसे भी करुना और दया का पात्र है। है न। बहुत अच्छा लगा, आपको पढना।
mai tumhati hsi hsu
mai tumhari juba bolu
jo tum dekho vo mai dekhu
jo tum socho vo mai sochu
jo mai khu iska ult kr do to kya ye khamoshiya apna pala bdl lengi ? nhi na ! to fir qu na in udasiyo ko drkinar krte huye apne ird gird chhitki chhoti chhoti khushiyo ko chun kr apne damn ko sja le our khe ---
''rbba shukr hai tera ''
anamika ! tum yu udas achchhi nhi lgti . please muskurao .
abhivyakti ka sundar prastutikaran. Marmik rachana......abhaaar.
मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.
....sundar rachna, tasvir bhi acchhi.
खामोशियों की पीडा और इन खामोशियों का चीत्कार दोनो का बहुत ही सुन्दरता से चित्रण किया है।
bahut khoob........ ma'm.......
Hi..
Yun to kavi ke man main aate..
Bhavon sang ahsaas..
Klant hruday bhi ho jata hai..
Agar ghate kuchh sath..
Kavita padhkar teri jaane..
Hota kyon abhaas..
Kisi ne dil tera hai dukhaya..
Karke koi kataksh..
Bhale kalpana hi teri ho..
Par khamosh nahi rahna..
Khoob chakna..aur mahakna..
Har pal tum khush hi rahna..
Yahi dua bhi hai..aur yahi elteja bhi hai..
Deepak..
अंतर मन की कशमकश मे चहकना छोड देती हो ?भई क्यों? ये ज़िन्दगी है इसे खूब जीवट से जीओ। रचना बहुत अच्छी संवेदनशील है शुभकामनायें
सशक्त अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
A nice poem with anew thought.
Asha
bahut hi sundar prastuti...
acha laga pad kar...
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : 37 Congress, 22 BJP nominees elected unopposed in civic polls
मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा
बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति। नारी की व्यथा को बहुत ही अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है, बधाई।
मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.
मैं खामोशियों की
चादर ओढ़
अपने लब
सी लेती हूँ.
behad khubsurat rachna...
bahut sundar khamoshi ki apni aavaaz hoti hai ...
फिर तीसरा प्रश्न
थकते नहीं तुम..
जब तक कि
मेरे खामोशियों के
चक्रव्यूह को
तोड़ नहीं देते हो.
हर चक्रव्यूह अंततोगत्वा टूटता ही है फिर खामोशियाँ क्यों नहीं !!
सुन्दर ... बहुत सुन्दर रचना
behtreen rachna......wah..
http://simtelamhen.blogspot.com/
Anamikaji,bada tadap ke likha hai...zaroor padhen!
Aapki rachana ab padhti hun!
जितना भी
खामोशियों को
अपनाती हूँ
प्रश्नों के कटघरे में
खडी कर दी जाती हूँ .
Aap to bas hontonkee baat chheen letee hain! Kaise dilse diltak raah bana letee hain?
...sundar rachanaa !!!
..मेरा चहकना भी तो
पसंद नहीं है तुम्हें
उस पर भी तो
विश्वास डगमगाता है तुम्हारा..
..मेरी समझ से कविता का यहीं अंत हो जाना चाहिए था. बात पूरी हो जाती है यहाँ.
..अच्छी कविता.
अपने कबिता क़े द्वारा बहुत कुछ कह दिया
बहुत सुन्दर कबिता
धन्यवाद
बहुत सुन्दर कविता।
मैं चहचहाना छोड़
खामोशियों को
अपना लेती हूँ
मौन की दीवारें
खडी कर लेती हूँ
अपने चारों तरफ
मगर वो भी तो
स्वीकार्य नहीं है तुम्हें.
खामोशी तो एक तूफान ले कर आती है ... उससे बचना आसान नही .... गहरे ज़ज़्बात पिरोए हैं ....
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